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20120319
हिंदी फिल्मों की आयरन लेडी का हश्र
हाल में ही ब्रिटिश महिला प्रधानमंत्री मारगरेट थैचर की जिंदगी पर आधारित फिल्म द आयरन लेडी प्रदर्शित हुई. फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई मरील स्टि्रप ने. मरीयल फिलवक्त 63 उम्र की हैं. उन्होंने 22 साल की उम्र से फिल्मों में काम करना शुरू किया था. और वह 63 की उम्र में भी सक्रिय हैंं. फिल्म द आयरन लेडी देखने के बाद दर्शक अनुमान लगा सकते हैं कि मारगरेट की वास्तविक जिंदगी क्या रही होगी. मरीयल स्ट्रीप के रूप में मारगरेट दर्शकों के सामने आती हैं. उन्होंने 63 उम्र में भी बेहतरीन अदाकारी की है. वाकई निदर्ेशिका फिलालीडा लॉयड तारीफ की हकदार हैं. बतौर महिला निदर्ेशक होकर उन्होंने ऐसे विषय का चुनाव किया और उसे बखूबी परदे पर उतारा भी. ब्रिटिश व अमेरिकन फिल्मों में अब भी ऐसी बायोपिक फिल्में बनाई जा रही हैं. और मुख्य किरदारों में अब भी कई उम्रदराज कलाकारों को मौके दिये जा रहे हैं. खासतौर से महिलाओं पर केंद्रित फिल्में बन रही हैं और उम्रदराज महिला अभिनेत्रियों को केंद्रीय भूमिका निभाने के मौके भी मिल रहे हैं. फ्रेंच-इंग्लिश के को प्रोडक्शन में लू बेसन द्वारा बनाई गयी फिल्म द लेडी में 50 वर्षीय योह ने क्रांतिकारी महिला आंग सांग सुई से प्रभावित किरदार निभाया है. सुजन सारानडन, डेमी मूरे, मेघ रियान जैसी अनगिनत बेहतरीन अभिनेत्रियां हैं, जो आज भी 50 बसंत पार करने के बावजूद केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं. अमेरिकी अभिनेत्री शिरले मैकलेन उन अभिनेत्रियों में से एक हैं जिनकी उम्र 77 है. और अब भी यह सक्रिय हैं. लेकिन क्या भारत में हम ऐसी परिकल्पना कर सकते हैं? क्या हिंदी सिनेमा जगत में कोई आयरन लेडी मौजूद हैं, जो 50 वर्ष पार करने के बाद भी केंद्रीय भूमिका निभाएं और फिर सम्मान भी हासिल करें.चूंकि हिंदी सिनेमा की अभिनेत्रियों को 30 के बाद ही रिटायर मान लिया जाता है. गौर करें, तो पुराने दौर की बेहतरीन अभिनेत्रियां इन दिनों फिल्मों में मां या दादी के किरदार में नजर आती हैं. शबाना आजिमी एकमात्र अभिनेत्री हैं जिन्होंने बाद के दौर में भी गॉडमदर में केंद्रीय भूमिका निभाई और जल्द ही वह एक भ्रष्ट महिला राजनेता की भूमिका निभानेवाली है. वरना, शेष किसी भी अभिनेत्री को यह अवसर नहीं मिल पाया. बैंडिट क्वीन में शानदार अभिनय करने के बाद सीमा विस्वास को भी इन दिनों फिल्मों में मां के किरदार में ही दिखती हैं. बैंडिट क्वीन के बाद अब तक उन्हें कोई सशक्त भूमिकाएं नहीं मिली हैं. जबकि हिंदी में भी कई बायोपिक फिल्में बनाई जा सकती हैं. बशतर्े निदर्ेशक हिंदी फिल्मों की नायिकाओं को उस छवि में ढालने की कोशिश करें. किसी दौर में फिल्म आंधी को इंदिरा गांधी की कहानी माना गया था. लेकिन फिर सरकारी प्रतिबंधों के कारण इसे खुले रूप में स्वीकार नहीं किया गया. यह हिंदी सिनेमा की विडंबना है कि वे आयरन लेडी जैसे विषयों पर खुल कर फिल्में बनाने की हिम्मत नहीं रखते. जबकि हिंदी फिल्मों में अब भी बेहतरीन अभिनेत्रियां हैं, जिन्हें ऐसी फिल्मों की भूमिकाओं में दर्शा जा सकता है. बशर्ते निदर्ेशक व लेखक ऐसी कहानियां कहने की हिम्मत जुगाड़ें और हिंदी सिनेमा की आयरन लेडी का लौहा भी विश्व के सामने मनवायें.
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nari ke astitwa ko itani jaldi manyata dena aur use swikar karna sath hi pacha lena mushkil hai .
ReplyDeletena to hum use kahaniyon me ji pate na hi use sahi arthon men han naron me jikar aabhasi jiwan ji lete hain .aapake bhawnaon ko pranam.