My Blog List
20120327
हिंदी फिल्मों में रवि किशन
एजेंट विनोद के शुरुआती कुछ दृश्यों में ही एक रॉ एजेंट राजन नजर आता है. कुछेक दृश्यों के बाद ही फिल्म में उनका किरदार खत्म हो जाता है. लेकिन फिर भी फिल्म के बारे में सोचते हुए बार बार राजन का किरदार याद आता है. क्योंकि भले ही वह किरदार छोटा था. लेकिन प्रभावशाली था. कुछ इसी तरह फिल्म 4084 में चार पारंगत कलाकार अतुल कुलकर्णी, नसीरुद्दीन शाह व केके मेनन के साथ जब यही कलाकार नजर आते हैं. तो वह कभी भी यह एहसास नहीं होने देते कि वह हिंदी सिनेमा का नहीं, बल्कि भोजपुरी फिल्मों का सुपरस्टार है. वह उतने ही सशक्त व प्रभावशाली किरदार में नजर आते हैं. यहां बात हो रही है रवि किशन की. रवि किशन भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार हैं. लेकिन उनकी वास्तविक अभिनय क्षमता का प्रमाण मिलता है हिंदी फिल्मों में. यहां रवि किशन की तारीफ करने का बिल्कुल इरादा नहीं. लेकिन यह गौरतलब है, रवि किशन हिंदी फिल्मों में लगातार बेहतर अभिनय कर रहे हैं. वे विभिन्न किरदारों में नजर आ रहे हैं. 4084 में नसीर साहब के साथ उनके अधिकतर दृश्य फिल्माये गये हैं, जिनमें वह बिल्कुल नर्वस नजर नहीं आते. फिल्म तनु वेड्स मनु में भी वह अपने एक मुक्के से ही अपने किरदार को स्थापित कर जाते हैं. मणिरत्नम की फिल्म रावण में भी मुख्य किरदारों से अधिक सशक्त किरदार उनका ही नजर आता है. आप गौर करें तो श्याम बेनेगल जैसे निदर्ेशक ने हाल की दोनों ही फिल्मों में उन्हें अच्छा किरदार दिया.वेलकम टू सज्जनपुर के बाद वेलडन अब्बा में भी उन्हें दोहराया. और जब कोई निदर्ेशक किसी कलाकार को दोहराता है तो इसलिए क्योंकि उन्हें उन कलाकारों की क्षमता का एहसास हो जाता है. इससे साफ जाहिर होता है कि रवि किशन में वह क्षमता है कि वह हिंदी फिल्मों में अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं और इन दिनों कई फिल्मों में उन्हें मौके मिल रहे हैं. हम उन्हें केवल फीलर के रूप में नहीं देखते. वे अपनी भाव भंगिमा व आंखों के अंदाज से ही बहुत कुछ बयां कर जाते हैं जो दर्शकों को आकर्षित करता है. लेकिन उसी रवि किशन को जब हम भोजपुरी फिल्मों में देखते हैं तो वे कोई प्रभाव नहीं छोड़ते. वे उनमें टाइपकास्ट नजर आते हैं. उनमें विभिन्नता नजर नहीं आती. इसकी वजह यह है कि उन्हें शायद भोजपुरी सिनेमा में न तो वैसे किरदार मिलते हैं और न ही वैसे निदर्ेशक जो उनके दमदार अभिनय को निचोड़ कर निकाल सकें.भले ही रवि हिंदी फिल्मों में मुख्य किरदार में न हों. लेकिन उनकी 50 भोजपुरी मुख्य अभिनय वाली फिल्मों पर हिंदी फिल्मों में निभाये गये उनके विभिन्न किरदार अधिक प्रभावशाली हैं. दरअसल, भोजपुरी सिनेमा की यह विडंबना है कि वह कलाकारों की प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं कर रहा. अबतक भोजपुरी फिल्मों के निदर्ेशकों ने उनकी ऊर्जा व उनकी क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं किया है.भोजपुरी फिल्मों के निदर्ेशकों को यह सोचना होगा कि उनके पास एक बेहतरीन कलाकार है. भोजपुरी जिस प्रदेश की भाषा है उसका इतिहास विस्तृत है और रवि को ध्यान में रखते हुए वहां कई बायोपिक फिल्में बनाई जा सकती हैं.अगर ऐसे प्रयोग हो तो भोजपुरी सिनेमा का स्तर भी उठेगा.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment