20120305

हिंदी सिनेमा के इतिहास की कद्र



हिंदी सिनेमा अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. ऐसे में यह बिल्कुल सही समय है, जब हिंदी सिनेमा के उन महान शख्सियतों को याद करें, जिन्होंने हिंदी सिनेमा जगत का विस्तार किया. लेकिन यह अफसोस की बात है कि ऐसे कई शख्स जिन्होंने हिंदी सिनेमा को खास पहचान दिलायी. हिंदी सिनेमा प्रेमी या हिंदी सिनेमा से ताल्लुक रखनेवाले कई लोग उन्हें जानते भी नहीं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भविष्य तभी समृध्द होता है. जब हम इतिहास को भी साथ लेकर चलें. लेकिन हिंदी सिनेमा में इस बात को खास तवज्जो नहीं दी जाती है. बॉलीवुड इन दिनों विकास की गति पर है. बॉक्स ऑफिस पर फिल्में कमाल कर रही हैं. और ओवरसीज माकर्ेट में भी इसे सम्मान मिल रहा है. यह अच्छी बात है कि हम आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन इसके साथ ही साथ हमें अपने इतिहास और उन लोगों को भूलना नहीं चाहिए, जिन्होंने दरअसल, शुरुआती दौर में इस जगत में बीज बोये. फिर इन्हें सींचा. लेकिन यह अफसोसजनक है कि वर्तमान के सक्रिय कलाकार या निदर्ेशक हिंदी सिनेमा की इन शख्सियतों के नाम भी नहीं जानते. देविका रानी, जद्दनबाई, दुर्गा खोटे, सेभ दादा, हिमांशु राय,आदर्ेशर ईरानी जैसे कई नाम हैं, जिनसे वर्तमान के कलाकार अनजान हैं. इन लोगों के बारे में पूछने पर उनके चेहरे पर अलग से भाव नजर आने लगते हैं. आश्चर्य तो तब हुआ जब कई कलाकार निरंजन पाल की किताब की लांचिंग में मौजूद थे. लेकिन उन्हें निरंजन पाल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. वे सभी आपस में बात कर रहे थे कि हू इज एक्चुअली निरंजन पाल. इज ही राइटर और समथिंग...इससे साफ जाहिर होता है कि हम अपने ही इतिहास से कितने वाकिफ हैं. हाल ही में नेशनल फिल्म आरकाइव ऑफ इंडिया द्वारा निरंजन पाल ः द फोरगोटेन लिजेंड नामक किताब का विमोचन किया गया. इस किताब को ललित मोहन जोशी व कुसुम पी जोशी ने तैयार किया है. इस मौके पर साउथ एशियन फिल्म फाउंडेशन लंदन द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गयी है. मौके पर निदर्ेशक श्याम बेनगल भी मौजूद थे, जिन्होंने कहा कि निरंजन पाल एक महत्वपूर्ण शख्सियत थे. जिन पर किताब लिखी जानी चाहिए थी. दरअसल, निरंजन पाल उन शुरुआती लोगों में थे, जिन्होंने स्क्रीनराइटर, िनदर्ेशक के रूप में हिंदी सिनेमा के साइलेंट दौर में व टॉकी सिनेमा के दौर में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी फिल्म द लाइट ऑफ एशिया उस दौर की शुरुआती फिल्मों में से एक है, जिसमें पूरे एशिया की सही तसवीर दर्शायी गयी. हिमांशु राय के साथ उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा और फिर हिंदी सिनेमा को कई ऊंचाईयों पर ले गये. निरंजन पाल उस दौर के शुरुआती निदर्ेशकों में थे जिन्होंने अछुत कन्या, जीवन नैया व जवानी की हवा जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दी थी. जिनमें अछुत कन्या को हिंदी सिनेमा का बेंचमार्क माना गया. उन्होंने शुरुआती दौर में अपनी मेहनत से फिल्मों के लिए फंडिंग एकत्रित करना शुरू किया था. ऐसे में निरंजन पाल पर लिखी गयी किताब एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. यह जरूरी है कि हम इतिहास को समृध्द बनायें और इन दस्तावेजों को सहेज कर रखें.

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