आज महिला दिवस है और जल्द ही हिंदी सिनेमा जगत अपने 100 वर्ष में प्रवेश करेगा. इन 100 सालों में हिंदी सिनेमा में महिलाओं के कई रूप बदले. वर्तमान में हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियां कम बार्बी डॉल की संख्या ही अधिक है. वह इस लिहाज से कि आज भी अभिनेत्रियां अपने लुक पर अधिक ध्यान देती हैं.
वे पुराने दौर की नायिकाओं की तरह दिखना, संवरना चाहती हैं, लेकिन उनके द्वारा निभाये गये सशक्त किरदारों को निभाने की हिम्मत नहीं रखतीं. अगर उनसे पूछा जाये कि उनका रोल मॉडल कौन सा किरदार है तो वर्तमान की ज्यादातर अभिनेत्रियां हमेशा हॉलीवुड की फ़िल्मों की नायिकाओं के ही किरदारों की बात करेंगी. विद्या बालन सरीकी कम ही अभिनेत्री हैं जो कहती हैं कि वे रेखा या नरगिस की तरह किरदार निभाना चाहती हैं.
दरअसल, बॉलीवुड की यह सच्चाई है कि आज भी अभिनेत्रियां फ़िल्मों में किरदार को कम, अपने कॉस्टयूम, मेकअप, पुरुष लीड पर ही ध्यान देती हैं. क्योंकि इससे उनकी हॉलीवुड वाली छवि धूमिल होती है. वर्तमान में कंगना रानाउत ने फ़िल्म शूटआउट एट वडाला के लिए अपने लुक पर विशेष ध्यान दिया है. उनकी कोशिश है कि वह फ़िल्म में स्मिता पाटिल की तरह नजर आयें. इस फ़िल्म में वह स्लेन गैंगस्टर मान्या सर्वे की गर्लफ्रेंड का किरदार निभा रही हैं. इस फ़िल्म के लिए उनकी पूरी कोशिश है कि वे रेखा की तरह अपना लुक रखें. इसलिए वे लगातार रेखा से टिप्स भी ले रही हैं.
इससे पहले भी कंगना की यही कोशिश रही है कि वह माधुरी दीक्षित की तरह नजर आयें.अभिनेत्री सोनम कपूर की भी हार्दिक इच्छा है कि वे लुक में वहीदा रहमान की तरह नजर आये. कुछ दिनों पहले अफ़वाह थी कि कैटरीना कैफ़ भी कागज के फ़ूल की वहीदा बनेंगी. चित्रांगदा सिंह की तूलना स्मिता पाटिल से की जाती है. विद्या बालन रेखा की तरह ही हमेशा साड़ी पहनना पसंद करती हैं. चूंकि वे भी जानती हैं कि उस दौर की अभिनेत्रियां कभी मेकअप से नहीं बल्कि अपनी सादगी में भी खूबसूरत नजर आती हैं.
उनका वास्तविक सौंदर्य उनका अभिनय था. नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी, नूतन, वहीदा रहमान उन सक्रिय अभिनेत्रियों में से एक रही हैं. जिन्हें उनकी सादगी भरी खूबसूरती व सशक्त अभिनय के लिए जाना जाता रहा है. उस दौर की अभिनेत्रियां अपने मेकअप व कॉस्टयूम को लेकर बहुत सजग नहीं रहती थीं, लेकिन आज के दौर में ऐसी कोई भी अभिनेत्री नहीं हैं, जो हिम्मत रखती हो कि वह बिना मेकअप के कैमरे पर पलभर के लिए नजर आये.
24 घंटे उनका वैनिटी वैन व मेकअप मैन उनके साथ होता है. वे एक कॉस्टयूम कभी दोहराती नहीं. हालांकि विद्या बालन ने द डर्टी पिक्चर्स व कहानी जैसी फ़िल्मों से साबित किया है कि वह वास्तविक अभिनेत्री बन चुकी हैं. लेकिन शेष पूरी अभिनेत्री समूह का क्या? बेहतर हो कि अभिनेत्रियां फ़िल्मों को फ़ैन्सी ड्रेस कांप्टीशन समझना छोड़ सशक्त भूमिकाएं निभाएं. बेहद जरूरी है कि बॉलीवुड अभिनेत्रियां पाउडर थोपी गुड़िया बनने की बजाय किरदार को अहमियत दें.
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