20140531

प्रयोग का समर्थन


  फिल्म हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया के किसिंग सीन को लेकर काफी विवाद हो रहे हैं. इस पर सेंसर की कैची चली है. इस पर सुप्रसिद्ध फिल्मकार महेश भट्ट ने एक वेबसाइट पर महत्वपूर्ण बातें कही है. चीन में आज भी सिनेमा स्तंभ न बन पाया और न ही सिनेमा को वह सम्मान हासिल है. जो भारत में है. भारत में सिनेमा मजबूत स्तंभ इसलिए बन पाया, चूंकि यहां फिल्म को लेकर व्यापक सोच रखा जा रहा था. यही वजह है कि अब तक कई फिल्में अपने विषय के मुताबिक खरी उतरी. महेश भट्ट ने उस आलेख में इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह उनकी फिल्म जख्म को कई प्रदेशों में रिलीज नहीं होने दिया गया था. फना को गुजरात ने रिलीज होने से रोका गया था. अब तक फिल्मों को लेकर राज्यों तक उसका विरोध ही होता रहता है. लेकिन इस खबर के मुताबिक धीरे धीरे फिल्मों की नाल कसी जा रही है और यह आने वाले समय के लिए सही नहीं. भारत में सिनेमा ने अपना रूप बदला है और यह बेहद जरूरी भी है. भारत को जितनी जरूरत पारिवारिक फिल्मों की है, सांस्कृतिक फिल्मों की है उतनी ही जरूरत वास्तविक फिल्मों (रियलिस्टिक फिल्मों) की भी जरूरत है. चूंकि फिल्मों के माध्यम से ही भारत में कई ऐसी कहानियां कही गयी. जिससे हम सभी अब तक अज्ञात थे. सो, यह जरूरी है कि सिनेमा को वह आजादी मिले जो अब तक मिलती आयी है. किसी व्यक्ति विशेष और राज्य विशेष की चाहत से फिल्में बनीं तो फिल्में अपना अस्तित्व खो बैठेंगी. सिटिलाइट्स, शाहिद जैसी फिल्में खुल कर दर्शकों को सामने नहीं आ पायेंगी. द डर्टी पिक्चर्स को एक अश्लील फिल्म करार दिया जायेगा. गंैग्स आॅफ वासेपुर जैसी फिल्मों को अश्लील शब्दों वाली फिल्में कह दिया जायेगा. प्रयोग होने जरूरी हैं और प्रयोग का समर्थन होना भी अति आवश्यक है.

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