फिल्म कहानी 9 मार्च को रिलीज हुई थी. यानी एक महीने पहले. लेकिन अब भी इस फिल्म को दर्शक मिल रहे हैं. वर्तमान में जहां तीन दिन भी फिल्में नहीं टिकती हैं, कहानी अब भी सफलता की कहानी लिख रही है. नि:संदेह इसका श्रेय लेखक-निर्देशक सुजॉय घोष को जाता है. इस फिल्म को बनाने व विद्या बालन से जुड़े कुछ पहलुओं के बारे में बता रहे हैं स्वयं सुजॉय घोष..
सुजॉय घोष की फिल्म कहानी को सफलता मिल चुकी है. लेकिन यह सफलता आसानी से नहीं मिली. इस सफल कहानी के पीछे उनकी दो असफल फिल्में भी हैं, क्योंकि सुजॉय मानते हैं कि आप बेहतर तभी बना सकते हैं, जब आप शुरुआत करें. वे मानते हैं कि बस ऑडियंस को जो चीजें अच्छी लगीं, वह अच्छी हैं.
अगर आप निर्देशक हैं तो आपको एक अच्छी कहानी कहने की कला आनी चाहिए. क्योंकि आप जो कहना चाहते हैं अगर वह दर्शकों तक पहुंच जाता है तो आप अच्छे निर्देशक हैं. फिल्म अलादीन के माध्यम से मैं यह बताना चाहता था कि कोई मैजिक लैंप नहीं होता. लेकिन वह बात दर्शकों तक नहीं पहुंच पायी. फिल्म कहानी में मैं अपनी बात दर्शकों तक पहुंचा पाया, इसलिए वह कामयाब रही.
कैसे बनी कहानी
कहानी थ्रिलर फिल्म थी और मुझे इस बात का खास ख्याल रखना था कि कैसे मैं दर्शकों को तीन घंटे तक बांधे रख सकूं.
जेहन में विद्या पहले आयीं
मैं विद्या के साथ हमेशा से काम करना चाहता था. उनसे कहता भी रहता था कि हम साथ में फिल्म बनायेंगे. मैंने विद्या को ध्यान में रख कर फिल्म कहानी लिखी. विद्या जब फिल्म इश्किया की शूटिंग कर रही थीं, उस वक्त उन्होंने कहा था मुझे हीरोइन बाउंड स्क्रिप्ट दो.. अंतत: मैंने कहानी लिखी और दोनों ने साथ काम किया.
कहानी में विद्या ही क्यों
विद्या उन अभिनेत्रियों में से एक हैं, जिन्हें हर कोई पसंद करता है. हर वर्ग के दर्शक खुद को कनेक्ट करते हैं उनसे. विद्या केयरिंग फिगर हैं. मैं भी अपनी कहानी में किसी ऐसे ही किरदार को लेना चाहता था, जिसके साथ लोगों को प्यार हो. लोग उसके साथ हमदर्दी रखें. इस फिल्म के लिए मुझे विद्या जैसी ही मासूम लेकिन मजबूत लड़की चाहिए थी.
किरदार गर्भवती क्यों
फिल्म में विद्या बागची के किरदार को गर्भवती दिखाने की खास वजह यह थी कि गर्भवती महिला को हर कोई प्यार करता है. उसका ख्याल रखता है. उसके साथ जुड़ जाता है. फिल्म में दर्शकों को अंत तक बिठाये रखने के लिए यह जरूरी था कि लोग उस मां के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जायें.
किसी भी फिल्म में यही सबसे बड़ी चुनौती होती है कि आप कैसे दर्शकों को फिल्म में इमोशनली इन्वॉल्व करें. दूसरी बात मेरी फिल्म एक महिला की जर्नी की कहानी है. उसकी परेशानी की कहानी है. उसने अपने पति व अपने बच्चे, दोनों को खोया था. उसका दर्द दिखाना था. इसलिए, किरदार को इस रूप में प्रस्तुत किया.
आंखों से बोलती हैं विद्या
मैंने महसूस किया है कि वह आंखों से अभिनय करती हैं. अब तक उनके इस भाग का अभिनय पूरी तरह परदे पर नहीं दिखा था. मैंने फिल्म में विद्या से आंखों से अभिनय करवाया. एक और खास बात यह भी थी कि मैंने विद्या बागची व विद्या बालन में बहुत कुछ समान चीजें देखीं. दोनों ही मजबूत महिलाएं हैं.
वास्तविक जिंदगी में विद्या निर्भीक होकर चलने वाली लड़की हैं और इमोशनल भी हैं. आपने गौर किया होगा फिल्म में विद्या ने कई जगहों पर पैर हिलाया है. दरअसल, वास्तविक जिंदगी में भी वह जब परेशान होती हैं या कुछ सोचती रहती हैं तो पैर हिलाती हैं. मैंने उनकी इन चीजों को नोटिस कर विद्या बागची का किरदार गढ़ा था.
डिटेलिंग जरूरी
मैं एक और बात का ख्याल रखता हूं कि मेरे छोटे किरदारों में भी डिटेलिंग हो,कॉस्टयूम, संवाद सभी चीजों में दर्शक को कुछ अटपटा न लगे. वे देखें तो उन्हें लगे, अरे यह तो हमारी जिंदगी का हिस्सा है. मैं ऑब्जरवेशन पर खास ध्यान देता हूं.
हिंदी सिनेमा से बेइंतहा प्यार
मैं बंगाली हूं और मुझे बेहद प्यार है अपनी भाषा से. लेकिन फिल्में मैं हिंदी में ही बनाऊंगा. क्योंकि मुझे हिंदी फिल्मों में ड्रामा, एक्शन, मस्ती सबकुछ देखने में मजा आता है. मैं शक्ति, शोले, शान जैसी फिल्में देख कर बड़ा हुआ हूं और यही फिल्में मुझे आकर्षित करती हैं.
No comments:
Post a Comment