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20120406
सीमित बजट में हिंदी फिल्में
विनोद चोपड़ा द्वारा आयोजित फिल्मोत्सव में उनके बैनर की बनी लगभग सभी फिल्मों पर चर्चा हो रही है. और ऐसी कई बारीकियां हैं, फिल्म के प्रोडक्शन के पहलू की, जो लोगों के सामने आ रही हैं. और इन सभी फिल्मों में एक बात खास नजर आ रही है, वह यह कि विदु विनोद ने लगभग अपनी सभी फिल्मों का निर्माण बेहद सीमित बजट में किया है. वर्तमान में जहां करोड़ों रुपये तो केवल फिल्म की माकर्ेटिंग में खर्च कर दिये जाते हैं. वहां किसी दौर में केवल 8 से 15 लाख में फिल्में बन जाया करती थीं. ऐसा नहीं है कि इन फिल्मों में उस दौर के लोकप्रिय कलाकार नहीं होते थे. अनिल कपूर, मनीषा कोइराला, जैकी श्राफ, अनुपम खेर, शबाना आजिमी, अमोल पालेकर, नसीरुद्दीन शाह जैसे लगभग सभी लोकप्रिय कलाकारों ने इन बैनर के साथ काम किया है. लेकिन फिर भी उस दौर में अच्छी फिल्में सीमित बजट में बन जाया करती थी. और दर्शकों को वह पसंद भी आती थी. वर्ष 1985 में बनी खामोश फिल्म केवल 8 लाख की लागत में बनी है. जबकि फिल्म की शूटिंग पहलगांव में की गयी थी. और फिल्म में उस दौर के लोकप्रिय अभिनेता थे. यह चौंकानेवाली बात है कि उस वक्त विदु ने अपने प्रोडक्शन का कॉस्ट इस तरह सीमित रखा था कि जब उन्हें पहलगांव में वॉटर टैंक की जरूरत पड़ी थी तो उन्होंने वहां की नदी के पानी का ही इस्तेमाल कर लिया था. 1942 लव स्टोरी महज 15 लाख में बनी है. जबकि फिल्म में बरसात के दृश्य हैं और लगभग सभी लोकप्रिय कलाकार हैं. दरअसल, केवल विदु ही नहीं, बल्कि उस दौर के वे सभी निदर्ेशक जो फिल्म को कला का रूप मानते थे.वे फिल्म की पब्लिसिटी पर नहीं, बल्कि मेकिंग पर ध्यान देते थे. वे हर तरह से अपनी स्क्रिप्ट को दुरुस्त रखते थे. सारी प्लानिंग पहले होती थी. ताकि शूटिंग के दौरान किसी भी तरह का कोई संदेह न हो और कॉस्ट बिल्कुल सीमा में रहे. श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी और महेश भट्ट जैसे निदर्ेशक भी अपने दौर में कम बजट की फिल्में बनाते थे. लेकिन वे सभी फिल्में लोकप्रिय रहीं. दरअसल, वर्तमान दौर में किसी फिल्म की कामयाबी फिल्म की मेकिंग पर नहीं, बल्कि उसकी पब्लिसिटी वैल्यू पर निर्भर हो गया था. ऐसा नहीं है कि आज भी कम बजट की फिल्में नहीं बनती. लेकिन उन कम बजट की फिल्मों में भी पब्लिसिटी के बजट को तैयार रखा जाता है. मसलन आमिर अपने बैनर की सभी फिल्में सीमित बजट में बनाते थे और फिर उसकी पब्लिसिटी पर जम कर खर्च करते थे. और अपने इस बिजनेस फंडे में कामयाब हैं. इस लिहाज से अनुराग कश्यप जैसे निदर्ेशक भी उन निदर्ेशकों की श्रेणी में आते हैं जो सीमित बजट की फिल्में बनाते हैं. लेकिन अनुराग की यह भी खूबी है कि वे अपनी फिल्मों की पब्लिसिटी पर भी बहुत खर्च नहीं करते. वे आज भी मेकिंग को ही अहमियत देते हैं. ऐसे में उनकी दैट गर्ल इन यलो बुट्स जैसी फिल्में दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती. लेकिन उन्हें फर्क नहीं पड़ता. दरअसल, वर्तमान में निदर्ेशकों व निर्माताओं को पुरानी सीमित बजट की फिल्मों से सीख लेनी चाहिए कि फिजूलखर्ची के बगैर फिल्मों का निर्माण किस तरह किया जा सकता है.
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