20120412

फिल्म बनी जिंदगी की पाठशाला !

हम लिखते-लिखते ही कहानीकार बनते हैं. फिल्में देखकर निर्देशक व कलाकारों के अभिनय से प्रभावित होकर ही हम अपने अंदर छिपे कलाकारों को भी पहचान पाते हैं. हिंदी फिल्म जगत की कई जानी मानी हस्तियां भी सृजन की इसी प्रक्रिया से गुजरी हैं. उन्होंने भी अपने जीवन में कई चीजें देखी, पढ़ी, सुनी हैं और जिसकी वजह से ही वह उस मुकाम पर पहुंचीं, जहां पहुंचना चाहती थीं. ऐसा वे खुद मानती हैं.
अर्थ से मिला मुझे जीवन का अर्थ
शबाना आजमी
मेरी जिंदगी में महेश भट्ट की फिल्म अर्थ हमेशा अहम रहेगी. इस फिल्म में मैंने पूजा का किरदार निभाया था. इस फिल्म ने मेरी अंतरात्मा को पूरी तरह झकझोर दिया था. खासतौर से फिल्म का वह हिस्सा जिसमें मैं स्मिता पाटिल से बात कर रही हूं. मुङो याद है, इस सीन के लिए मैंने कई बार रिहर्सल की थी. एक और खास बात यह थी कि यह सीन अंतिम दिन शूट किया गया था. स्मिता फोन के दूसरे तरफ थीं फिल्म में. लेकिन शूटिंग के वक्त मैंने वह सीन दीवारों के साथ किया था. क्योंकि स्मिता दूसरे सीन की शूटिंग कर रही थीं. मुङो महेश ने कहा शबाना तुम बस बोलती जाओ फोन पकड़ कर. कल्पना कर लो कि आपकी दूसरी तरफ स्मिता हैं. और मैं बोलती जा रही थी. मेरे टाइट क्लोज अप लिये गये थे फिल्म में. और वह फिल्म का सबसे बेहतरीन दृश्य बना. इस फिल्म से मैंने अपने आपमें एक वर्सेटाइल अभिनेत्री को पा लिया था. इस फिल्म से मैंने महसूस किया कि अगर किसी औरत के साथ ऐसा हो, तो उस पर क्या गुजरेगी.अर्थ ने मुझे जीने का अर्थ दे दिया.
पारिवारिक मूल्यों की अनूठी फिल्म
करन जौहर
मेरे जीवन में फिल्म हम आपके हैं कौन की बहुत अहमियत है. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं आज भी यह महसूस करता हूं कि हम आपके हैं कौन भारत की उन महत्वपूर्ण हिंदी फिल्मों में से एक है, जिसमें भारत के परिवारों की आत्मा छिपी है. परिवार के मूल्य छिपे हैं. परिवारों की खुशियां छिपी हैं. मैं इस फिल्म की शूटिंग के दौरान आदित्य चोपड़ा के साथ कई बार सेट पर मौजूद रहता था.
उन्हीं दिनों आदित्य को फिल्म दिलवाले दुल्हनिया .. के लिए अनुपम खेर से बात करनी होती थी और वे उस वक्त इस फिल्म में काम कर रहे थे, तो ऐसे में मुझे मौका मिल जाता था शूटिंग देखने का.
इसी फिल्म से मैंने सीखा था कि मुङो भी अपनी फिल्मों में पारिवारिक मूल्यों को अहमियत देनी है. एक दृश्य में आलोक नाथ व रीमा लागू रेणुका की तसवीर को देख कर गीत गाते हैं. आप गौर करें तो वह आंखों से अपना आभार प्रकट करते हैं. वह दृश्य मेरे लिए बहुत भावुक था.
अलग ही था वह अंदाज
जूही चावला
आप शायद इसे मजाक समझ सकते हैं, लेकिन यह सच है कि मुङो फिल्म अंदाज अपना अपना ने बहुत प्रभावित किया था. मैंने उससे फनी फिल्म आज तक नहीं देखी थी. एक दृश्य में आमिर, सलमान एक पिस्तौल के जरिए रवीना और करिश्मा को गुंडों से छुड़वाते हैं और अंत में पता चलता है कि उसमें गोली ही नहीं, वह बेहद रोचक था.
साथ ही आमिर व सलमान की जुगलबंदी मजेदार थी फिल्म में. जिसमें सलमान को आमिर जमाल गोटा मिला कर पिला देते हैं, वह दृश्य भी बहुत रोचक है. मैंने उस फिल्म से कॉमेडी के कई टिप्स लिये हैं. यह एक ऐसी फिल्म है जिसे मैं बार बार देख सकती हूं.
मासूम की मासूमियत नहीं भूल सकता
शेखर कपूर
मासूम मेरी पहली फिल्म थी, सिर्फ इसलिए वह मेरे लिए खास नहीं, और इसलिए भी नहीं कि उसे मैंने बनाया है, बल्कि इसलिए क्योंकि इस फिल्म की मासूमियत मुङो हमेशा रास आती है. मैं इस फिल्म में जुगल हंसराज व नसीरुद्दीन शाह के किरदार से कुछ इस तरह प्रभावित था कि उन दोनों के बीच जब भी संवाद फिल्माता, तो रो देता था. आपको शायद वह दृश्य याद हो जिसमें जुगल, नसीर से पूछते हैं कि क्या आप मेरी मम्मी को जानते हैं.
साथ ही वह दृश्य जब वह कहते हैं कि चिट्ठी में लिखा है कि आप मेरे पापा हैं. ये सभी दृश्य जब एडिट होते भी देखता था तो मैं रो देता था. एक दृश्य में जहां जुगल पूरे परिवार की तसवीर बना रहे हैं. उसमें वह खुद नहीं, लेकिन कितनी मासूमियत से वह पूछते हैं कि मैं अपनी तसवीर भी बना दूं क्या. आज भी इस फिल्म के दृश्यों को मैं खुद से अलग नहीं कर पाया.
मास्टरपीस थी पाथेर पांचाली
श्याम बेनेगल
मैं हमेशा से सत्यजीत रे से प्रेरित रहा हूं और प्रभावित भी. मैंने फिल्में बनाते वक्त यही कोशिश की है कि मैं उनकी ही तरह दृश्यों को संजो कर रखूं. मेरे कानों में आज भी पाथेर पांचाली के बैकग्राउंड स्कोर गूंजते हैं, जिस दृश्य में छोटे बच्चे दौड़ते हैं खेत में और जिस तरह से संवाद अदायगी की गयी, वह बिलकुल अलग थी. बच्चे ट्रेन के पीछे दौड़ते हैं..मैं उन दृश्यों को भूल नहीं सकता. यह पहली फिल्म थी जिसे देख कर मैं रोया था.
आनंद से हुआ था प्रभावित
राजकुमार हिरानी
मैं बहुत छोटा था जब मैंने आनंद फिल्म देखी थी और इससे मैं बहुत प्रभावित हुआ था. लंबे अरसे तक यह फिल्म मेरे जेहन में रही थी. खास बात यह थी कि मैं जब फिल्म इंस्टीट्यूट गया और फिल्म मेकिंग का ग्रामर सीखा, तो मैंने दोबारा आनंद देखी तब मुङो एहसास हुआ कि फिल्म में किसी तरह का कोई ग्रामर नहीं था, लेकिन फिर भी लाजवाब थी. उसी वक्त मैंने तय कर लिया था कि मैं ऐसी ही फिल्में बनाया करूंगा.

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