फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप की बिग बजट फिल्म बांबे वेल्वेट की पूरी शूटिंग श्रीलंका में हुई हंै. खबर है कि यह अनुराग की ही नहीं बल्कि बॉलीवुड की भी बिग बजट फिल्मों में से एक है. इसकी वजह यह है कि इस फिल्म में मुंबई का पुराना स्वरूप फिर से क्रियेट किया गया है. अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीस फिल्म किक के माध्यम से फिर से चर्चा में हैं. और जब भी जैकलीन की बात होती है तो श्रीलंका की फिल्म इंडस्ट्री की भी चर्चा हो जाती है. खुद जैकलीन ने कभी श्रीलंका की फिल्म इंडस्ट्री पर खास बातचीत नहीं की है. श्रीलंका भारत के रिश्ते पर मद्रास कैफे जैसी भी महत्वपूर्ण फिल्म बनी.कुछ सालों पहले वहां आइफा अवार्ड समारोह हुआ था. मसलन बॉलीवुड का इंटरनेशनल अवार्ड. इन सभी श्रीलंका कनेक् शन से आम लोग यह अनुमान लगा सकते हैं कि शायद श्रीलंका में सिनेमा को लेकर बहुत जिज्ञासा है.लोग वहां बेहद सजग हैं. मैं भी कुछ ऐसा ही सोचती थी. लेकिन हाल ही में डियर सिनेमा डॉट कॉम पर नंदिता दत्ता का एक चौकानेवाला आलेख पढ़ा. श्रीलंका में सिनेमा को लेकर वही स्थिति है, जो भारत में स्थानीय भाषाओं( मराठी, बांग्ला, पंजाबी अपवाद हैं) की फिल्मों को लेकर है. इस आलेख से यह जानकारी मिलती है कि किस तरह वहां 2009 के सिविल वार के खत्म होने के बावजूद वहां सिनेमा थियेटर की संख्या नहीं बढ़ पायी है. जिस तरह यहां स्थानीय फिल्मों को रिलीज में तकलीफ होती है. वहां भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. यहां भी स्थानीय फिल्मों को लेकर अब तक सही तरीके से कोई फिल्म पॉलिसी नहीं बन पायी है. श्रीलंका में भी कमोबेश वही स्थिति है. यहां हर वर्ष केवल 20 फिल्में ही बन पा रही हैं. यहां फिल्मों की रिलीज के लिए भारत की तरह कोई बड़े प्रोडक् शन या कॉरपोरेट हाउस नहीं आते. यह बेहद निराशाजनक है.
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20140623
श्रीलंका में सिनेमा
फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप की बिग बजट फिल्म बांबे वेल्वेट की पूरी शूटिंग श्रीलंका में हुई हंै. खबर है कि यह अनुराग की ही नहीं बल्कि बॉलीवुड की भी बिग बजट फिल्मों में से एक है. इसकी वजह यह है कि इस फिल्म में मुंबई का पुराना स्वरूप फिर से क्रियेट किया गया है. अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीस फिल्म किक के माध्यम से फिर से चर्चा में हैं. और जब भी जैकलीन की बात होती है तो श्रीलंका की फिल्म इंडस्ट्री की भी चर्चा हो जाती है. खुद जैकलीन ने कभी श्रीलंका की फिल्म इंडस्ट्री पर खास बातचीत नहीं की है. श्रीलंका भारत के रिश्ते पर मद्रास कैफे जैसी भी महत्वपूर्ण फिल्म बनी.कुछ सालों पहले वहां आइफा अवार्ड समारोह हुआ था. मसलन बॉलीवुड का इंटरनेशनल अवार्ड. इन सभी श्रीलंका कनेक् शन से आम लोग यह अनुमान लगा सकते हैं कि शायद श्रीलंका में सिनेमा को लेकर बहुत जिज्ञासा है.लोग वहां बेहद सजग हैं. मैं भी कुछ ऐसा ही सोचती थी. लेकिन हाल ही में डियर सिनेमा डॉट कॉम पर नंदिता दत्ता का एक चौकानेवाला आलेख पढ़ा. श्रीलंका में सिनेमा को लेकर वही स्थिति है, जो भारत में स्थानीय भाषाओं( मराठी, बांग्ला, पंजाबी अपवाद हैं) की फिल्मों को लेकर है. इस आलेख से यह जानकारी मिलती है कि किस तरह वहां 2009 के सिविल वार के खत्म होने के बावजूद वहां सिनेमा थियेटर की संख्या नहीं बढ़ पायी है. जिस तरह यहां स्थानीय फिल्मों को रिलीज में तकलीफ होती है. वहां भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. यहां भी स्थानीय फिल्मों को लेकर अब तक सही तरीके से कोई फिल्म पॉलिसी नहीं बन पायी है. श्रीलंका में भी कमोबेश वही स्थिति है. यहां हर वर्ष केवल 20 फिल्में ही बन पा रही हैं. यहां फिल्मों की रिलीज के लिए भारत की तरह कोई बड़े प्रोडक् शन या कॉरपोरेट हाउस नहीं आते. यह बेहद निराशाजनक है.
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