मुकेश छाबड़ा कास्टिंग निर्देशक हैं. और उन्होंने अपने एक नये वेंचर की शुरुआत की है. मुकेश छाबड़ा कास्टिंग स्टूडियो शुरू किया है. यह बॉलीवुड में अपने तरीके का पहला ऐसा स्टूडियो है. जहां एक्टर्स जब आॅडिशन के लिए आयेंगे तो उन्हें क्रियेटिव स्पेस दिया जायेगा. आमतौर पर अब भी बॉलीवुड में कास्टिंग प्रोडक् शन हाउस के आॅफिस में किये जाते हैं. लेकिन मुकेश मानते हैं कि कई नये कलाकार यह मान बैठते हैं कि किसी कास्टिंग निर्देशक से मिलना एक कठिन काम है और वह पहुंच से बाहर होते हैं. इसलिए उन्होंने कास्टिंग स्टूडियो की परिकल्पना की है, ताकि वहां स्टार्स आये और वह सही तरीके से कास्टिंग की प्रक्रिया में शामिल हों. इस स्टूडियो में आॅडिशन के लिए सारे उपक्रम हैं, जो आॅडिशन के लिए जरूरी होते हैं. साथ ही उन्हें माहौल भी दिया जायेगा. इस स्टूडियो में वे एक्टिंग के वर्कशॉप भी आयोजित करें. निस्संदेह कास्टिंग हिंदी सिनेमा में वर्तमान दौर का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है. यह कास्टिंग का ही कमाल है कि अब भारत के किसी गांव कस्बे से आये प्रतिभाओं को भी बड़े मौके मिल रहे हैं और उन्हें पहचान मिल रही है. ऐसे में कास्टिंग को यह स्वरूप देना काबिलेतारीफ है. चूंकि हिंदी सिनेमा को ऐसे प्रोफेशनल्स की सख्त जरूरत है, जो सिनेमा को बेहतरीन एक्टर्स दे पायें. नये कलाकार दे पाये. ऐसे में यह मुकेश की यह सोच सराहनीय है. चूंकि वर्तमान दौर में अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं और यही वह दौर है जब सिटीलाइट्स जैसी फिल्में भी दर्शकों तक पहुंच पा रही है. स्टारविहीन फिल्मों के लिए कास्टिंग निर्देशक की बहुत जरूरत है. चूंकि इन दिनों छोटे किरदार भी अहम किरदार निभा जाते हैं. सो, कास्टिंग निर्देशन को भी एक प्रयोगात्मक और व्यवहारिक सोच देना बेहद अनिवार्य है और यह बॉलीवुड के विकास का ही संकेत है.
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20140623
कास्टिंग स्टूडियो की शुरुआत
मुकेश छाबड़ा कास्टिंग निर्देशक हैं. और उन्होंने अपने एक नये वेंचर की शुरुआत की है. मुकेश छाबड़ा कास्टिंग स्टूडियो शुरू किया है. यह बॉलीवुड में अपने तरीके का पहला ऐसा स्टूडियो है. जहां एक्टर्स जब आॅडिशन के लिए आयेंगे तो उन्हें क्रियेटिव स्पेस दिया जायेगा. आमतौर पर अब भी बॉलीवुड में कास्टिंग प्रोडक् शन हाउस के आॅफिस में किये जाते हैं. लेकिन मुकेश मानते हैं कि कई नये कलाकार यह मान बैठते हैं कि किसी कास्टिंग निर्देशक से मिलना एक कठिन काम है और वह पहुंच से बाहर होते हैं. इसलिए उन्होंने कास्टिंग स्टूडियो की परिकल्पना की है, ताकि वहां स्टार्स आये और वह सही तरीके से कास्टिंग की प्रक्रिया में शामिल हों. इस स्टूडियो में आॅडिशन के लिए सारे उपक्रम हैं, जो आॅडिशन के लिए जरूरी होते हैं. साथ ही उन्हें माहौल भी दिया जायेगा. इस स्टूडियो में वे एक्टिंग के वर्कशॉप भी आयोजित करें. निस्संदेह कास्टिंग हिंदी सिनेमा में वर्तमान दौर का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है. यह कास्टिंग का ही कमाल है कि अब भारत के किसी गांव कस्बे से आये प्रतिभाओं को भी बड़े मौके मिल रहे हैं और उन्हें पहचान मिल रही है. ऐसे में कास्टिंग को यह स्वरूप देना काबिलेतारीफ है. चूंकि हिंदी सिनेमा को ऐसे प्रोफेशनल्स की सख्त जरूरत है, जो सिनेमा को बेहतरीन एक्टर्स दे पायें. नये कलाकार दे पाये. ऐसे में यह मुकेश की यह सोच सराहनीय है. चूंकि वर्तमान दौर में अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं और यही वह दौर है जब सिटीलाइट्स जैसी फिल्में भी दर्शकों तक पहुंच पा रही है. स्टारविहीन फिल्मों के लिए कास्टिंग निर्देशक की बहुत जरूरत है. चूंकि इन दिनों छोटे किरदार भी अहम किरदार निभा जाते हैं. सो, कास्टिंग निर्देशन को भी एक प्रयोगात्मक और व्यवहारिक सोच देना बेहद अनिवार्य है और यह बॉलीवुड के विकास का ही संकेत है.
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