विद्या बालन को रिस्क लेना पसंद है. वह अपने किरदारों के लिए प्रयोग करती हैं. चूंकि उन्हें भूख है. भूख अभिनय की.भूख हर बार कुछ नया करने की. हिंदी सिनेमा की सबसे सशक्त अभिनेत्रियों में से एक विद्या एक बार फिर से एक नये अवतार में आ रही हैं. इस बार उन्होंने जासूस का रूप धारण किया है.
हिंदी सिनेमा की पहली महिला जासूस बनने का अनुभव कैसा रहा. फिल्म जब आॅफर हुई तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
मुझे विश्वास नहीं हुआ. मुझे लगा कि वो लोग बोलेंगे कि बॉबी जासूस एक मेल डिटेक्टीव है.और उसमें या तो मुझे बीवी का रोल निभाना है.या फिर मंगेतर का रोल निभाना है.लेकिन जब उन्होंने मुझे बताया कि बॉबी लड़की है. मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैं उस दिन पांडिचेरी के लिए निकल रही थी.मैं स्क्रिप्ट लेकर गयी और मैंने स्क्रिप्ट पढ़ना शुरू किया तो स्क्रिप्ट को नीचे रख ही नहीं पायी. एक झटके में पढ़ ली. फिर मैंने आकर कहा कि मुझे निर्देशक से मिलना है. चूंकि वह फर्स्ट टाइम डायरेक्टर हैं.तो किसी भी डायरेक्टर को अच्छी तरह जान लेना बहुत जरूरी होता है मेरे लिए.क्योंकि सेट पर अपने आप को मैं उनके हवाले सौंप देती हूं. तो वो अगर तभी होता है. जब पूरी तरह से विश्वास का माहौल होता है. मैं संयुक्ता और समर दोनों से मिली. मेरी हां, कहने की वजह यह भी है कि यह सिर्फ एक डिटेक्टीव स्टोरी नहीं है.यह एक लड़की की कहानी है.एक छोटे शहर की आम लड़की की कहानी है. जिसका सपना कुछ अलग करने का है. और बॉबी जिस तरह अपने सपने को साकार कराती है. मुझे बॉबी जासूस की खास बात यही लगी कि यह जासूस जासूसों से कपड़े नहीं पहनतीं. वह आम लोगों के बीच से जासूस बनने की कोशिश करती है.
विद्या, आपकी वजह से हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को लेकर धारणा अब बदली है. तो क्या आप इसका श्रेय लेना चाहेंगी?
ये सुन कर तो वाकई बेहद अच्छा लगता है . और हां इसका श्रेय लेना भी चाहती हूं. लेकिन मैं अकेले नहीं लेना चाहती. हां, यह आप कह सकते हैं कि मैं इस बदलाव का चेहरा बन गयी हूं क्योंकि विजुअल मीडियम में एक्टर सबसे ज्यादा दिखता है और उसे क्रेडिट भी मिलता है अच्छी चीजों का. तो मेरा मानना है कि ये दौर ऐसा है कि ये चेंजेज हो रहे हैं. यह चेंजेज रातों रात नहीं होते.काफी वक्त से धीरे धीरे होता चला आ रहा है. लेकिन जब ये बदलाव का बम फूटा तो मैं वहां थी.और ये मेरी खुशनसीबी है.क्योंकि मैंने कुछ ऐसे डिसीजन लिये. कुछ ऐसी फिल्में की. लेकिन इसमें बहुत लोगों का हाथ है.
इस फिल्म में आपके कई लुक्स हैं तो उन लुक्स के बारे में बतायें?
हां, शायद जितने लुक् स मैंने इस फिल्म में बदले हैं. शायद ही किसी और फिल्म में बदले होंगे. सो बहुत मजा भी आया. मेरा पहला दिन ही था शूट का. और मैं नामपल्ली स्टेशन के बाहर बैठी थी. भिखारियों की वेशभूषा में. वहां मैंने महसूस किया कि एक भिखारी की जिंदगी क्या होती है. किसी ने मुझे पहचाना नहीं.एक महिला स्टेशन की तरफ जा रही थी. लेकिन मैंने उनका हाथ पकड़ लिया क्योंकि मुझे ऐसे निर्देश मिले थे. उस महिला ने मुझे कहा कि हट्टे कट्ठे हो तो कोई काम क्यों नहीं करते. भीख क्यों मांग रहे हो. एकबारगी मेरा दिमाग ठनका, कि कोई मुझसे ऐसे बात कर रहा है. लेकिन बाद में ख्याल आया कि मैं किरदार में हूं, इस फिल्म में कई लुक्स बदले हैं. लेकिन सबसे तकलीफ मौलवी के किरदार को निभान ेमें हुई चूंकि वो लोग नाक में कुछ अलग सा पहनते हैं और उसे पहन कर मुझे काफी तकलीफ हुई.
हैदराबाद में शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
बेहतरीन रहा. वहां मैंने डर्टी पिक्चर्स भी शूट की थी. लेकिन उस वक्त और इस वक्त में काफी अंतर था. चूंकि उस फिल्म में हम हैदराबाद शहर में शूट कर रहे थे. जबकि इस बार हम हैदराबाद के बिल्कुल पुराने अंदाज वाले जगह पर शूट कर रहे थे. चारमिनार के आस पास के इलाके में. वहां के लोगों ने बेहद प्यार दिया. सभी ने कहा कि आपके लिए हैदराबाद लकी है. क्योंकि उन्हें पता था कि उनके शहर की फिल्मायी गयी फिल्म द डर्टी पिक्चर्स हिट हुई है.
विद्या आपके पास इतनी हिम्मत जिसे हम अंगरेजी में कहें तो गट्स कहां से आता है इस तरह के किरदार निभाने के लिए. आमतौर पर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों को तो सिर्फ सुंदर दिखना है परदे पर?
जी हां, सच यह है कि मैं बेहद भूखी हूं. मुझे अच्छा काम चाहिए. मैं जिंदगी में कभी अभिनय के सिवा कुछ सोचा ही नहीं. मैं कुछ नया किये बगैर नहीं रह पाती. और मेरा परिवार भी ऐसा मिला मुझे जिसने मेरे ऐसे निर्णय में हमेशा मेरा साथ दिया. तो मुझे हिम्मती बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. मुझे हर बार अच्छे किरदार चाहिए, क्योंकि मैं मेहनती हूं और काम नया करना मुझे अच्छा लगता है. वो लोग कहते हैं कि प्यास है बड़ी. मैं कहती हूं भूख है बड़ी. जितना अच्छा काम मिलेगा. मैं करती जाऊंगी.
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