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20111228
विश्व सिनेमा द लेडी, एक महत्वपूर्ण फिल्म
उन्होंने एक साथ बहुत कम समय व्यतीत किया.लेकिन फिर भी उन दोनों का प्यार कम न हुआ. आंग सान सुई व उनके पति मिकेल एरिस के मिलने की अवधि उनकी जुदाई से बेहद कम है. वे लगभग 17 सालों तक अलग रहे. लेकिन इसके बावजूद एरिस ने अपनी पत्नी का उनके आंदोलन में साथ दिया. लुक बसन द्वारा निदर्ेशित फिल्म द लेडी में सूई के संघर्ष व इस संपर्णवाली प्रेम कहानी की वास्तविक झलक नजर आती है. अनुप्रिया की रिपोर्ट
वर्ष 1989 में आंग सान सुई ने सूरज नहीं देखा . चूंकि उन्हें नजरबंद कर लिया गया था. उन्हें वर्ष 1990 के चुनाव के दौरान नजरबंद किया गया था. चूंकि उन्होंने सच्चाई के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन छेड़ा था. उन्होंने अपने बलबुते अपने देश में ऐसी क्रांति लायी, कि पूरी दुनिया के लिए वह आदर्श बनी.लुक बसन की फिल्म द लेडी हर लिहाज से एक महत्वपूर्ण फिल्म है. चूंकि इस फिल्म में इस महान क्रांतिकारी महिला की जीवनी के साथ साथ उनके पति मिकेल एरिस के प्रेम समर्पण की गाथा को वास्तविक प्रस्तुति दी गयी है. जिस वक्त आंग को गिरफ्तार किया गया था. उस वक्त से लेकर कई सालों तक उनके पति एरिस ने मरते दम तक उनका साथ दिया. फिल्म द लेडी में आंग के जीवन को चरितार्थ करने में अभिनेत्री मिकेल पूरी तरह कामयाब हुई हैं. खुद मिकेल योह बताती हैं कि उन्हें जब इस फिल्म की स्क्रिप्ट मुझे मिली थी. उस वक्त उन्हें सूई के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी. लेकिन धीरे धीरे जब उन्होंने सूई के बारे में जानना शुरू किया. उन्हें महसूस हुआ कि एक महिला होने के बावजूद सूई ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी. उस वक्त ही उन्होंने तय किया कि वह फिल्म जरूर करेंगी. इस फिल्म में न सिर्फ चेहरे से बल्कि चेहरे के भाव से भी मिकेल ने इस किरदार को पूरी तरह जिया है. फिल्म में परत दर परत आंग के जीवन की पूरी गाथा खुलती जाती है. फिल्म में मुख्यतः सूई व उनके पति की समर्पित प्रेम कहानी पर भी प्रकाश डाला गया है. जिसमें यह दर्शाने की कोशिश की गयी है कि दूर रह कर भी दोनों का प्यार कम न हुआ. शादी के कुछ सालों बाद ही आंग ने आंदोलन को अपनी जिंदगी बना ली. ऐसे में उनके पति ने ही इनके बच्चों का ख्याल रखा. गिरफ्तारी के दौरान 10 सालों में दोनों केवल पांच बार ही मिले. लेकिन उनका प्यार फिर भी बरकरार रहा. वर्ष 1999 में जब मिकेल कैंसर से पीड़ित थे. उस वक्त भी बर्मन पुलिस ने दोनों को मिलने नहीं दिया. फिल्म में सूई के जीवन के इन कड़वे सच व कटु अनुभवों को खूबसूरती से दर्शाया गया है..फिल्म में खासतौर से इस पहलुओं को भी दर्शाया गया कि लगातार अत्याचार सहते हुए भी आंग ने कभी हिंसा का साथ नहीं लिया. किसी शख्सियत पर आधारित फिल्मों की बारीकि क्या हो सकती है, यह इस फिल्म से सीखी जा सकती है. फिल्म में उन सभी बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है, जिनसे आंग प्रभावित थीं. आंग गांधीजी की किताबें पढ़ा करती थीं. सो, कई दृश्यों में लेडी की नायिका भी गांधीजी की किताबें पढ़ती नजर आती हैं. खुद मिकेल मानती हैं कि उन्होंने गौर किया है कि आंग के व्यवहार में गांधीजी की बातों की झलक नजर आती है. सो, फिल्म में मिकेल भी बेहद विनम्र बनी हैं. साथ ही जिस तरह आंग भारत व भारत के आंदोलन से हमेशा प्रभावित रही हैं, उनके लगाव को भी फिल्म में खूबसूरती से दर्शाया गया हो. अगर वाकई दुनिया की नयी पीढ़ी किसी क्रांतिकारी महिला के शांतिपूर्ण आंदोलन की गाथा सुनना या देखना चाहते हैं तो उस लिहाज द लेडी महत्वपूर्ण दस्तावेज है और इसका प्रदर्शन पूरे देश में किया जाना चाहिए.
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