20111205

नयी प्रतिभाओं के टैलेंट हंटिंग मशीन देव

त्रिदेव

एक सदाबहार स्टार की उपाधि उसी कलाकार के साथ जुड़ सकती है, जो वाकई अपने अभिनय से, अपनी मोहक अदाओं व अंदाज से हमेशा लोगों के जेहन में रह जाये. सदाबहार वही है जिसे दर्शक या लोग कभी अपने दिल से या जिंदगी से बाहर नहीं करे. जो वाकई बहार लेकर आये. उसकी प्रक्रिया लोगों को सदाबहार होने का एहसास कराता रहे. अपने खास अंदाज में और हाथों को हिला कर सिर पर टोपी, गले में मॉफलर व स्वेटर को गले में बांध कर टांगनेवाले शख्स देव आनंद एक ऐसे ही सदाबहार नायक थे, जिनकी फिल्मों की किसी दौर में लड़कियां इस कदर फैन थीं कि जब वे काले रंग के लिबाज में आते तो वे आपे से बाहर आ जाती थीं. यही वजह थी कि देव आनंद साहब पर कई सालों तक काले रंग के कपड़े न पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. दरअसल, यह काले रंग का नहीं बल्कि देव आनंद के डांसिंग स्टाइल व उनके अंदाज का जादू था जो लोगों के सिर चढ़ कर बोलता था. जिस दौर में राज कपूर समाज से जुड़े विषयों को लेकर फिल्में बना रहे थे. अपनी रोमांटिक फिल्मों में भी वे सामाजिक उद्देश्य का ख्याल रखते. अपने किरदारों व कहानियों में गंवई व देसीपन लाने से गुरेज नहीं करते. ऐसे दौर में देव आनंद साहब ने युवा वर्ग को ही अपना दर्शक माना. उन्होंने लगातार ऐसी फिल्में की, जिसमें युवाओं को मौज मस्ती और जिंदगी का आनंद लेते हुए दिखाया गया. वह कभी गांव के छोरे नहीं बल्कि बंबई के बाबू बन रहे. मसलन युवाओं ने हमेशा उन्हें शहरी लिबाज में देखा. वही दूसरी तरफ जहां दिलीप कुमार ट्रेजेडी किंग के लिए जाने जा रहे थे. देव आनंद साहब ने इन दोनों सुपरसितारों से अलग अपनी एक हरफनमौला वाली छवि बना ली और अंत तक उस पर बरकरार रहे. वे रोने धोने की बजाय या समाज को किसी भी तरह का पाठ पढ़ाने की बजाय फिक्र को धुएं में उड़ाते नजर आये. तो कभी अपनी प्रेमिका का पीछे करते हुए जब प्यार किसी से होता है गीत गाते नजर आये. राज कपूर की फिल्मों के गीत जहां दर्शकों को प्रेरित करते, तो वही देव आनंद के फिल्मों के गीत सुन कर दर्शक का दिल चहक उठता. देव आनंद, राज कपूर दिलीप कुमार उस वक्त सुपर सितारे बिल्कुल अलग तरह की फिल्में बनाने के बावजूद. मिजाज में भी एक दूसरे से मेल नहीं खाते थे. लेकिन इसके बावजूद तीनों बेहद अच्छे दोस्त थे. तीनों ने मिलकर हिंदी फिल्म जगत के लिए कई बार उस दौर में साथ में मिल कर कार्यक्रम का संचालन किया. आयोजन किया उपस्थित रहे. अलग होने के बावजूद वे एक दूसरे का विरोध तो करते थे लेकिन सिर्फ मुद्दों पर. शेष तीनों अपनी जिंदगी अपनी तरह ही जीते थे. इन तीनों सुपर सितारों में देव आनंद साहब ने सबसे देर से काम करना शुरू किया था. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने राज कपूर दिलीप कुमार के समकक्ष खुद की अलग राह बनायी. उन्होंने दोनों में से किसी कलाकार की नकल नहीं की. एक अलग राह बनायी. जिसमें वे बिंदास, हरफनमौले, मस्तीखोर अपनी नायिकाओं के पीछे भागनेवाले और फिर जॉनी मेरा नाम ज्वेल थीफ जैसी फिल्मों में नेगेटिव या ग्रे किरदार निभाने से भी गुरेज नहीं किया. जबकि राज कपूर हमेशा आम व्यक्ति के नायक रहें. उन्होंने अपने जीवन में कोई नकारात्मक भूमिका नहीं निभायी. दिलीप कुमार कुछ विशेष किरदारों में ही बंधे रहे. लेकिन इन सबके बीच देव साहब की खास बात यह थी कि उन्होंने अपने आप को किसी बंधन में नहीं बांधा. उन्होंने हरे रामा हरे कृष्णा से भारत में हिप्पा सभ्यता की शुरुआत पर विशेष प्रकाश डाला तो आगे चलकर गाइड जैसी फिल्मों में महिला की छवि को बदला. उन्होंने अपने लिये किसी भी तरह के आदर्श तय कर नहीं रखे थे. वे जानते थे कि फिल्म आलोचक उन्हें गंभीरता से नहीं लेते. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मरते दम तक अपने राह पर काम करना जारी रखा. और यही वजह थी कि बिना किसी खास मेहनत के वे राजकपूर दिलीप कुमार के समकक्ष सुपर सितारा कलाकारों में शामिल हो गये थे. उन्हें जो प्रेम फिल्म निर्माण से वर्ष 1949 में हुआ वह वर्ष 2011 तक भी कम नहीं हुआ. उन्होंने अपने जीवन में कुल 19 फिल्में बनायी. 31 फिल्में प्रोडयूस की. और जिनमें 18 को बॉक्स ऑफिस पर सफलता मिली. उन्होंने अपनी 13 फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट भी लिखा. अपने काम के लिए यह ललक अगर किसी व्यक्ति में हो तो इसे सिर्फ पैसे की भूख या शोहरत की भूख नहीं कह सकते. देव आनंद हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहना चाहते थे. चूंकि मौत तो उनकी डिक्शनरी में शामिल ही नहीं था. दिलीप कुमार ने वर्ष 1998 में अभिनय से विराम ले लिया. उन्होंने अपने जीवन में ताउम्र अभिनय को समर्पित रखा. राज कपूर ने बहुत पहले ही जीवन को अलविदा कह दिया था लेकिन देव आनंद साहब की उपस्थिति से आज भी भले ही उनकी फिल्में नहीं चल रही थीं लेकिन किसी व्यक्ति के सदाबहार नजरिये का एहसास होता था. कोई व्यक्ति 88 साल की उम्र में भी किसी शोहरत के लिए बल्कि जीने के लिए जीना चाहता है. निरंतर काम करते रहना, नये लोगों को मौका देना. यह सब केवल वही व्यक्ति कर सकता है, जो वाकई सदाबहार है. यह सिर्फ उनका समर्पण नहीं था. बल्कि जिंदगी में रहने की जड़ी-बुटी भी थी. संजीवनी थी. शायद यही वजह है कि राजकपूर के उम्र के पुराने लोग भी देव आनंद को पूजते हैं और रणबीर कपूर के उम्र के युवा भी आज भी देव साहब को अपना मेंटर मानते हैं. जवां मानते हैं.

हमेशा जवां रहेगा नवकेतन

देवआनंद और नवकेतन

वह वर्ष 1948 था जब बांबे टॉकिज के बैनर तले बनी फिल्म जिद्दी में उन्हें अपने जीवन का पहला ब्रेक मिला. लाहौर से आये एक व्यक्ति जिसकी पहचान फिलवक्त भाई चेतन आनंद के भाई देव आनंद के रूप में थी. लेकिन फिल्म जिद्दी के कामयाब होते ही लोगों ने उन्हें देव आनंद के रूप में पहचाना शुरू किया. किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी पहली सफलता बेहद मायने रखती है. उस सफलता को अर्जित करने में उसे जितने साल लगते हैं. खोते चंद लम्हे भी नहीं लगते. यही वजह है कि सफलता मिलने के बाद हर व्यक्ति फूंक फूंक कर कदम रखता है. लेकिन शायद एक सख्श ऐसे भी थे, जिन्हें अपने आप पर पूरा भरोसा था. वह जानते थे कि अगर वह सिर्फ पर विश्वास रखे तो कामयाब जरूर होगा. अपनी पहली ही फिल्म की सफलता के बाद अगर कोई नायक यह तय करे कि वह खुद अपनी प्रोडक्शन कंपनी तैयार करेंगे तो निश्चित तौर पर लोग फब्तियां तो कसेंगे ही साथ ही उस व्यक्ति को अति उत्साही भी मानेंगे. लेकिन देव आनंद साहब ने बिना किसी की फिक्र किये वर्ष 1949 में ही अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत कर दी. अब वह अभिनेता के साथ साथ फिल्में बनाने का भी जोखिम उठाने लगे. ऊर्जावान, जिंदादिल, हर पल चंचल चितवन सा रहनेवाला व्यक्ति जब कुछ नया लेकर आये तो निश्चित तौर पर वह नवकेतन ही होगा. भाई चेतन आनंद के पुत्र केतन के नाम से नव को जोड़ा गया था. मसलन संस्कृति में नवकेतना का मतलब नयापन ही होता है. देव आनंद साहब ने अपनी कंपनी का नाम भी यही रखा. चूंकि वे जानते थे कि वे कुछ नया कर रहे हैं. अलग कर रहे हैं. उन्होंने नवकेतन के बैनर तले फिल्मों का निर्माण शुरू किया. अपने भाई विजय आनंद का उन्हें पूरा सहयोग मिला और देखते ही देखते नवकेतन ने वर्ष 2009 में 60 साल पूरे किये. जिस इंडस्ट्री में हर दिन कई प्रोडक्शन कंपनियां बन कर तैयार होती हैं और फिर बंद भी हो जाती हैं. उस दौर में आज भी नवकेतन द्वारा फिल्मों का निर्माण जारी है. हाल के कुछ वर्षों में लगातार फ्लॉप फिल्में देने के बावजूद देव आनंद साहब अपनी ऊर्जा सकारात्मक सोच के साथ फिल्में बनाते रहे. वे साफ कहते रहे कि उन्हें किसी की फिक्र नहीं है. वे हमेशा क्रियेटिव स्वतंत्रता की बात करते रहे. उन्होंने हमेशा माना कि नवकेतन का मतलब क्रियेटिव सोच से है. देव साहब हमेशा मानते रहे हैं नवकेतन द्वारा बनाई गयी फिल्मों में सबसे कठिन फिल्म गाइड और प्रेम पुजारी का निर्माण था. चूंकि फिल्म की कहानी बेहद अलग थी. प्रेम पुजारी मेरे लिए हमेशा बहुत खास रहेगी. चूंकि इससे मैंने निदर्ेशक के रूप में प्रयोग की दुनिया में कदम रखा था. नवकेतन ही हमेशा खास बात यह रही कि इसने हमेशा नये लोगों को मौके दिये. खुद देव साहब भी मानते थे कि नवकेतन नयी प्रतिभाओं के लिए लांचिंग पैड साबित हुआ. नव केतन एक कंपनी नहीं है. वह एक विश्वास है. देव साहब मानते ते कि नवकेतन ने पैसे बनाये हों लेकिन स्टार्स को जरूर बनाया है. वे मानते थे कि चेतन आनंद, गुरुदत्त, राज खोसला, अमजीत, विजय आनंद इन सभी लोगों ने नवकेतन को खास पहचान दिलाने में मुख्य योगदान दिया. टीना मुनिम, शत्रुघ्न सिन्हा, जीनत तमान, जैकी, तब्बू, वहीदा रहमान जैसे कलाकारों को कलाकार के रूप में जन्म नवकेतन से ही मिला. देव हमेशा मानते रहे कि नवकेतन फ्रेश और युवा टैलेंट्स के लिए हमेशा बैकबोन बना रहेगा.

एक्स्ट्रा शॉट्स

नवकेतन ने गुरुदत्त, जयदेव, राज खोसला, कल्पना कार्तिक, जॉनी वॉकर, किशोर कुमार, यश जोहर, साहिर लुधियानवी, नीराजस, बप्पी सोनी, मोहन सहगल, अली अकबर खान, प्रताप सिंह, गोगी आनंद, क्रिसिटनो नेल, सुनिल आनंद, नताशा, शेखर कपूर, जैकी, डीके प्रभाकर, हर्ष कोहली, एकता, मिंकस फातिमा शेख, रमन कपूर, जस अरोड़ा,सबरीना, तब्बू, कबीर बेदी, अमित खन्ना, हीना कौशिक, अभिजीत जैसे कई टैलेंट्स की खोज की.

प्रेम पुजारी, काला पानी, बाजी, गाइड, हरे रामा हरे कृष्णा, देस परदेस, स्वामी दादा, लव एट द टाइम स्कायर, चार्जशीट, अफसर, आधियां, हम सफर, टैक्सी ड्राइवर, फंटूस, हम दोनों, तेरे घर के सामने. काला बाजार, मिस्टर प्राइम मिनिस्टर नवकेतन की फिल्में हैं.

नवकेतन का नाम भाई चेतन आनंद के बेटे केतन पर रखा गया था. मुंबई के ब्रांदा में केतन के नाम पर ही केतनव नामक थियेटर व स्टूडियो स्थित है.

देव आनंद और गाइड

आरके नारायण द्वारा रचित उपन्यास गाइड पर फिल्म बनाने की परिकल्पना सबसे पहले अमेरिका के निदर्ेशक ताद डैनियलेवेस्की और पर्ल बक के जेहन में आयी थी. चूंकि इस उपन्यास की कहानी उस दौर में बिल्कुल अलग थी और उस दौर के भारतीय सामाजिक ढांचे के बिल्कुल अलग राह में ले जाती सी थी. सो, जब इन निदर्ेशकों ने देव साहब को अप्रोच किया तो उन्होंने पहले इस पर फिल्म बनाने से मना कर दिया. लेकिन फिर से जब वे 1862 में बर्लिन फिल्मोत्सव के दौरान उनसे मिले तो देव आनंद साहब ने उस वक्त जाकर किताब खरीदी फिर उन्होंने पर्ल को बुलाया. बातचीत के बाद उन्होंने आर के नारायण से बातचीत की. आरके नारायण तैयार हुए. फिल्म को बनाने की जिम्मेदारी दी गयी भाई विजय आनंद को. विजय ने फिल्म की कहानी लिखनी शुरू की. जिस दौर में गाइड बन कर तैयार हुई. उस दौर में भारतीयों दर्शकों के दिमाग में ऐसी कहानी जहां महिला शादी के बाद किसी और पुरुष से प्यार करने लगती है. एक जोखिम भरा आइडिया था. चूंकि उस दौर में सिनेमा में महिलाओं को हमेशा आदर्श पत्नी के रूप में ही दर्शाया जा रहा था. भले ही साहेब बीवी गुलाम जैसी फिल्मों में पुरुष अपनी शादी के बाद किसी अन्य महिला से संपर्क रख सकता था. लेकिन अगर वही कोई महिला ऐसा करती तो उप पर छींटाकशी होती. लेकिन इसके बावजूद देव साहब और विजय आनंद साहब ने तय किया वह यह जोखिम उठायेंगे. अब प्रश्न यह था कि फिल्म में नायिका कौन होगी. नंदा, साधना, आशा ने फिल्म में काम करने से इनकार कर दिया था. वहीदा गुरुदत्त के करीबी थी और गुरुदत्त देव के. देव की निगाह वहीदा पर गयी और फिल्म बनी. राजू और रोजी की प्रेम कहानी को लोगों ने पसंद किया और यह सार्थक र्प्रेम कहानी बन गयी. इस फिल्म से देव आनंद साहब को सिर्फ एक अभिनेता बल्कि एक बेहतरीन दष्ट्रा के रूप में भी स्थापित कर दिया. फिल्म को कई अवार्ड मिले. ऑस्कर के लिए भी फिल्म को मनोनित किया गया. फिलवक्त गाइड की पटकथा को कान जैसे प्रतिष्ठित फिल्मोत्सव की लाइब्रेरी में रखा गया है. गाइड उस दौर में हिट रही, लेकिन ब्लॉकबस्टर नहीं. लेकिन देव साहब जानते थे कि वे भविष्य में खास स्थान बना पायेगी. गाइड जैसी महान फिल्म बनाने की वजह से आज भी देव आनंद उनकी कंपनी नवकेतन विश्व के सर्वश्रेष्ठ फिल्म प्रोडक्शन कंपनी में से एक मानी जाती रही है. खुद देव साहब मानते थे कि जब गाइड हिट रही तो मैंने यही सोच लिया था कि अब फिल्में बनाता ही रहूंगा और अपनी सोचवाली फिल्म. क्योंकि जिस वक्त गाइड बना रहा था, सबने कहा था पागल हो गये हो. क्या बना रहे हो. भारत के दर्शक पसंद नहीं करेंगे. और आज देखिए हर व्यक्ति गाइड की ही तारीफ करता है. वाकई देव साहब को गाइड से अनोखी पहचान मिली थी. उन्हें इस फिल्म में अभिनय करते देख कई निदर्ेशकों ने उनके बारे में अपनी सोच बदली. अब लोग मान चुके थे कि वह सिर्फ रोमांसिंग स्टार ही नहीं, बल्कि सफल नजरिया रखनेवाले एक द्रष्टा भी हैं. वे दूरदर्शी हैं. आइडिया जेनेरेटर हैं. देव खुद मानते थे कि उन्हें गाइड से बेहद ऊर्जा मिली. और वही ऊर्जा उनमें आज भी कायम थी. आज भी वे सबसे उत्साहित गाइड फिल्म पर बातचीत करने पर होते थे. देव साहब को हमेशा इस बात की खुशी रही कि उनकी इस फिल्म से एक नयी महिला रोजी का जन्म हुआ और फिल्मों के माध्यम से ही सही. लोगों ने महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदला.


आज जो काम टीवी रियलिटी शोज कर रहे हैं. किसी दौर में स्वयं देव आनंद साहब टैलेंट हंटिंग मशीन थे. उनकी पारखी निगाह ने ऐसी कई प्रतिभाओं को परखा जिनका नाम आज कामयाब हस्तियों की फेहरिस्त में शामिल हैं. जिस दौर में नयी नायिकाओं को फिल्म का मुख्य चेहरा बनाने में निर्माता कई बार सोचते थे. देव आनंद साहब के लिए किसी की पहली मुलाकात तो कभी किसी की पहली झलक ही काफी रही. उन्होंने मौका दिया तभी आज जीनत, तब्बू, टीना मुनिम, ॠचा शर्मा जैसी नायिकाओं को मौके मिले. सिर्फ नायिकाओं को उन्होंने कई नये चेहरे वाले अभिनेताओं को भी मौके िये.

गुरु थे, दिल का रिश्ता हमेशा कायम रहेगा ः जैकी श्राफ

जैकी श्राफ भी देव साहब की ही खोज थे. वर्ष 1973 में उन्हें पहली बार फिल्म हीरा पन्ना में देव साहब ने ही मौका दिलाया. इसके बाद स्वामी दादा में जैकी को मौका मिला. फिल्म में जैकी ने बेहद कम संवाद बोले थे. लेकिन फिर भी सुभाष घई की नजर में गये. देव साहब के कहने पर ही जैकी ने अपनी संवाद अदायगी पर काम किया था. उन्होंने टपोरी भाषा का इस्तेमाल छोड़ परदे पर बेहतरीन संवाद अदायगी करने की ठानी. बतौर जैकी अपुन देव आनंद साहब का एहसान जिंदगी भर नहीं भूल सकता. यही वजह है कि जब उन्होंने अपुन से चार्जशीट में काम करने को कहा. मैंने हां कहा. अच्छी तरह याद है सिर्फ उनकी वजह से मैंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और संवाद बोलना सीखा. वह अपन को बोलता था. नकल मत करो किसी की. जैसे है वैसे रहो. तुम में वह बात है बाबू तुम देखना लोग आयेगा और लोग धीरे धीरे अपने को अपनी फिल्मों में लेने लगा. हम दोनों का दिल का रिश्ता था. हमेशा कायम रहेगा. अपुन हमेशा उनको गुरु मानता रहा और मानता रहेगा, अपन के लिए तो वे ऐसे टैलेंट हंटिंग मशीन थे, जो हमेशा एक्टिव रहना चाहते थे. उन्हें किसी के द्वारा संचालित होने की जरूरत नहीं थे. उनके पास अपना विजन था. नजरिया था. वे वाकई दुनिया की हर फिक्र को धुएं में उड़ाते चले जाते थे. उन्होंने दरअसल, आज के दौर में भी जहां इंडस्ट्री में कमर्शियलाइजेशन ही सबकुछ है. उन्होंने अपनी हर फिल्म में नये लोगों को मौका दिया. ऐसा रिस्क हर कोई नहीं उठा सकता था. उनकी सबसे खास बात तो यही थी कि वह हंसते हंसते रिस्क उठाते गये. एक के बाद एक फ्लॉप फिल्में दी. लेकिन खुश रहे. उनके जैसा जिंदादिल, खुशमिजाज, हंसमुख और समाज से जुड़ा, जमीन से जुड़ा व्यक्ति अखा पूरी इंडस्ट्री में नहीं होगा. हम उनको कभी नहीं भूल पायेगा.

जीनत तुम तो जन्नत हो जीनत अमान

हरे रामा हरे कृष्णा में एक नये चेहरे की जरूरत थी. फिल्म हिप्पी सभ्यता पर आधारित थे. सो, फिल्म में उस दौर के जितने भी चेहरे थे. उन्हें शामिल नहीं किया जा सकता था. देव आनंद साहब ही हरे रामा हरे कृष्णा की कहानी लिख रहे थे. वे नये चेहरे की तलाश में ही थे. उस वक्त मैं मिस एशिया थी. मेरी भी इच्छा थी कि मैं फिल्मों में काम करूं. लेकिन तरीका मालूम नहीं था. यह भी जानती थी कि वहां पहुंचना बेहद कठिन होता है. लेकिन देव आनंद साहब ने ही उस कठिनाई को दूर किया. हमारी मुलाकात अमरजीत की पार्टी में हुई थी. अमरजीत फिल्म हम दोनों के निदर्ेशक थे. मुझे पता था कि देव साहब इस पार्टी में आयेंगे. मैं वहां बिल्कुल उसी अंदाज में पहुंची. जिस अंदाज में देव साहब नायिका को ढूंढ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और कहा यही लड़की है वह. और मैं हरे रामा हरे कृष्णा का हिस्सा बनी. वे हमेशा मुझे जीनत नहीं जन्नत बुलाते थे. जब कुछ दिनों बाद उनसे घुल मिल गयी तो मैं कहती आप मुझे जन्नत क्यों बुलाते हैं. तो वे यही कहते कि जीनत तुम्हें नहीं पता तुम जन्नत ही हो. जन्नत की तरह चंचल भी हो और खूबसूरत भी.

भीड़ में भी पहचान लिया टीना का टैलेंट

टीना मुनिम को भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से मुखातिब कराने का श्रेय टीना मुनिम को ही जाता है. किसी फिल्म की शूटिंग के दौरान टीना अपनी कुछ दोस्तों के साथ देव साहब का ऑटोग्राफ लेने आयी थीं. देव साहब ने भीड़ में भी जब टीना को देखा तो उन्हें लगा कि वह फिल्मों में काम कर सकती हैं. उस वक्त देव साहब ने टीना ने पूछा कि वे क्या करती हैं. टीना ने बताा कि वह टीन प्रीसेंस कांटेस्ट अरुबा में भाग लेने आयी हैं और उन्हें मिस फोटोजेनिक का खिताब भी मिला है. देव साहब ने पूछा कि क्या वह फिल्मों में एक्टिंग करेंगी. टीना ने पहले इनकार कर दिया. लेकिन बाद में वह मान गयीं. और उन्हें स्क्रीन टेस्ट द्वारा चुन लिया गया. फिल्म देस परदेस से टीना ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा.

और फिर वहीदा के साथ हमेशा गाता रहा दिल

मशहूर फिल्म अभिनेत्री वहीदा रहमान को फिल्म सीआइडी से पहला मौका मिला. उस फिल्म में देव साहब अभिनेता थे. गुरु दत्त वहीदा को आंध्र प्रदेश से लेकर आये थे. गुरुदत्त और देव साहब अच्छे दोस्त थे. सो, वहीदा को पहली फिल्म से ही देव साहब से जुड़ने का मौका मिल गया. फिल्म गाइड के फॉरेन निदर्ेशक किसी और को कास्ट करना चाहते थे. लेकिन देव साहब की जिद्द पर ही वहीदा को कास्ट किया गया.

उन्होंने हमेशा अपना वादा निभाया ःहेमा मालिनी

उस दौर में मैं कई फिल्मों में काम कर रही थी. मेरी कुछ फिल्में जिस वक्त बेहतर नहीं कर रही थी. जॉनी मेरा नाम मेरे लिए उस वक्त टर्निंग प्वाइंट साबित हुई थी. मैंने ही विजय आनंद साहब से कहा कि वे मुझे देव साहब के साथ कास्ट करें और हमें साथ साथ जॉनी मेरा नाम में काम करने का मौका मिला. आज हमारे बीच नहीं देव साहब. लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि उन्होंने हमेशा अपना वादा निभाया है.

बेहद करीब रहे साधना और देव साहब

देव साहब अभिनेत्री साधना के बेहद करीब रहे. चूंकि साधना उस दौर में नयी थीं. और देव साहब उनकी एक्टिंग के कायल थे. यही वजह थी कि उन्होंने हम दोनों में साधना को ही अभिनेत्री चुनने पर जोर दिया. दोनों साथ साथ बर्लिन फिल्मोत्सव में भी गये. साधना को पहली बार किसी किसी विदेशी दौरे पर जाने का मौका मिला था.

यूं बनीं वैजयंतीमाला ज्वेल थीफ की नायिका

वैजयंतीमाला उस दौर की लोकप्रिय अभिनेत्री भी थीं. साथ ही वे नवकेतन में बतौर स्टाफ के रूप में भी काम करती थीं. विजय आनंद उस वक्त स्क्रिप्ट लिख रहे थे. फिल्म ज्वेल थीफ की. विजय आनंद के दिमाग में यह बात थी कि वैजयंतीमाला को फिल्म के लिए कास्ट किया जा सकता है. उन्होंने देव आनंद साहब से बात की कि क्या हम इस लड़की को कास्ट कर सकते हैं. देव साहब ने हां कहा और वैजयंतीमाला बनीं ज्वेल थीफ की नायिका.

हम नौजवां से आयीं तब्बू

15 साल की छोटी सी उम्र में देव आनंद साहब ने पहली बार एक बेहतरीन अदाकारा को लोगों के सामने लाकर खड़ा कर दिया. फिल्म में वह चुलबुली लड़की के किरदार में थीं. फिल्म वह देव आनंद साहब की बेटी बनी थी. आज तब्बू बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो चुकी हैं. तब्बू भी देव आनंद साहब की ही खोज थीं.

देव के प्यार के रस ने सुरैया की आवाज में मिठास भर दिया

देवआनंद और सुरैया

सुरैया उस वक्त बेहद लोकप्रिय गायिका व अभिनेत्री बन चुकी थीं. जब देव आनंद साहब ने इंडस्ट्री में बस कदम रखा था. सुरैया उस दौर में भी बहुत रॉयल जिंदगी जीती थीं. देव सुरैया की इन्हीं अदाओं पर फिदा हो गये.वे हमेशा उनकी तारीफ करते रहते थे. दोनों ने फिर साथ साथ विद्या, जीत, सैर, अफसर, नीली, दो सितारें जैसी फिल्मों में सात काम किया. लंबे वक्त तक किसी को पता नहीं था कि इन दोनों के बीच प्यार के बीज बोये जा चुके हैं. सुरैया के परिवार वाले बेहद सख्त था. शायद यही वजह थी कि सुरैया और देव एक हो सके. फिल्म अफसर के बाद दोनों के रोमांस की बातें लोगों के सामने आने लगी. सुरैया और देव साहब लाहौर से संबंध्द रखते थे. दोनों इसलिए भी एक दूसरे के करीब आये. फिल्म नीली के दौरान वे और करीब गये. यह देव के प्यार का ही जादू था कि सुरैया की आवाज पहले की अपेक्षा और मीठी होती गयी. प्यार से सुरैया की आवाज में भी रस घोल दिया. लोगों ने इस बात पर गौर भी किया था. लेकिन सुरैया की दादी द्वारा इस प्यार पर ग्रहण लगा दिया गया. उन्होंने सुरैया को देव से मिलने से मना कर दिया. जब भी सुरैया से मिलने आते थे देव. दादी उनके साथ होती. अब देव सुरैया से कभी अकेले बात नहीं कर पाते ते. दादी ने देव को कई बार धमकी भी दी थी. एक दिन सुरैया की मां ने देव और सुरैया की बात करायी. 11.30 का समय तय हुआ. दोनों मिले. देव के दोस्त तारा चंद ने उनकी मदद की. उस वक्त तारा चंद मुंबई में पुलिस ऑफिसर थे. दोनों मिले. लेकिन दोनों एक दूसरे को पकड़ कर रोते रहे और उन्होंने तय तिया कि वे फिर कभी नहीं मिलेंगे. अपनी जिंदगी से रोमांस करनेवाले देव आनंद को इस बात का दुख हमेशा रहा कि उन्हें अपना पहला प्यार नहीं मिला. वे गायिका अभिनेत्री सुरैया से बेइतहां प्यार करते थे. लेकिन दोनों एक हो सके. दोनों का प्यार परवान पर चढ़ा. लेकिन शादी नहीं हो पायी. देव आनंद और सुरैया का प्रेम परवान चढ़ा तो दोनों ने शादी करने की ठानी. सुरैया की दादी इस शादी के खिलाफ थीं. लिहाजा बात शादी तक नहीं पहुंची. दोनों आखिरी बार एक होटल के कमरे में मिले बच्चों की तरह रोये और सुरैया ने देव आनंद द्वारा पहनाई गयी वह अंगूठा समुद्र में फेंक दी. हालांकि सुरैया ने मोहब्बत के प्रति अपनी निष्ठा साबित किया और ताउम्र शादी नहीं की. उधर सुरैया से अलगाव के बाद देव टूट गये. तो भाई विजय आनंद ने उन्हें समझाया. सुरैया ने देव साहब से अलग होने के बाद कुछ ही दिनों में सुरैया ने गायिकी अभिनय से मुंह मोड़ लिया. उन्होंने कभी गाना नहीं गाया और ही अभिनय किया.ताउम्र शादी भी नहीं की.

इसके बाद जीनत अमान उनकी जिंदगी में आयीं. एक दिन जीनत अमान से उन्होंने कहीं घूमने फिरने के लिए चलने को कहा. इससे पहले दोनों पार्टी में गये. वहां राज कपूर भी थे. नशे में टल्ली राजकपूर और जीनत की केमेस्ट्री देखी तो देव आनंद को बुरा लगा. दोनों अलग हो गये. बाद में शिमला ब्यूटी मोना सिंह उर्फ कल्पना कार्तिक से उन्होंने गुपचुप तरीके से शादी कर ली. शादी से पहले के अफेयर की वजह से दोनों के रिश्ते में खटास ही रही.लेकिन फिर भी दोनों एक साथ एक ही छत के नीचे रहे.

उन्होंने मुझे रोजी बनाया था वहीदा रहमान

जिस दौर में गाइड बनी थी, उस दौर में यह कहानी बेहद अलग थी. उस दौर के हिसाब से कहानी बहुत आगे थी. मैंने यह सुन रखा था कि कई नायिकाओं को फिल्म के लिए अप्रोच किया जा चुका है. लेकिन चूंकि फिल्म में एक शादीशुदा महिला को रोमांस करते हुए दिखाया गया था. उस दौर में यह भी हो सकता था कि अगर जो अभिनेत्री यह किरदार निभाये. उसका करियर दावं पर लग सकता था, चूंकि कई लोग उसे फिर उसी तरह से लेने लगते. लेकिन देव साहब ने मुझमें हिम्मत जगायी थी. तब जाकर मैंने तय किया कि मैं काम करूंगी. उन्होंने मुझे जब इस फिल्म का मूल भाव समझाया तो मैं तैयार हो गयी. आश्चर्य की बात यह थी कि जब फिल्म हिट हुई तो लोग हॉल से बाहर निकल कर रोजी रोजी कर रहे थे. मुझे देव साहब से अधिक लोकप्रियता मिल रही थी. हर तरफ मेरी तारीफ हो रही थी. तो देव साहब ने मुझसे कहा कि रोजी देखा रोजी के सामने राजू को तो कोई पूछ भी नहीं रहा. जबकि मैं फिल्म का निर्माता हूं एक्टर भी. मैंने कहा था वहीदा रोजी के रूप में लोग तुम्हें स्वीकार करेंगे और तुम बहुत आगे जाओगी. वाकई मेरी जिंदगी में गाइड एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. उस दौर में महिलाओं की यह बोल्ड छवि तोड़नेवाली फिल्म लोगों को बेहद पसंद आयी और अंततः मैं एक यादगार फिल्म के लिए जानी गयी. आज भी जब गाइड देखती हूं तो वाकई लगता है कि मैंने सारे बंधन तोड़ दिये थे. मुझे रोजी देव साहब ने ही बनाया. इस फिल्म के बाद मैं अधिक स्वंच्छ हुईं अपने जीवन में भी मुझमे आत्मविश्वास आया. देव साहब से जब भी मुलाकात होती थी वह मुझे रोजी ही बुलाते थे और उनका यह प्यार से दिया गया नाम मुझे हमेशा याद भी रहेगा. मैं उनकी हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी. मैंने नवकेतन से वाकई अपने आप में नया जीवन नयी चेतना लायी. जो मेरे लिए हमेशा प्रेरणादायी रही. मैं उन्हें हमेशा अपना गुरु मानती रहूंगी. मार्गदर्शक भी. हम आज भी संपर्क में थे. फोन पर बातचीत होती थी हमारी. उस दिन वे बेहद खुश हुए थे जब कान फिल्मोत्सव द्वारा गाइड की स्क्रिप्ट को वहां की लाइब्रेरी में रखने का निर्णय लिया गया था.उन्होंने फोन करके यह खबर दी थी और बधाई भी दिया था. वाकई देव साहब दूरदर्शी थे. वे जानते थे कि गाइड की गूंज वर्षों बाद गुंजेगी. मैं नवकेतन और देव साहब को नमन करती हूं.

ॠषि कपूर

राजू गाइड हमेशा याद आयेगा...

सबहेड ः इंडस्ट्री में हर नायक ने उनसे कोई न कोई अदा तो सीखी ही है.

वह नयी प्रतिभाओं के मार्गदर्शक थे.

राज कपूर साहब के प्रिय दोस्त. लेकिन मुद्दों पर होती थी जम कर बहस

एक अवार्ड समारोह के दौरान निदर्ेशक विदु विनोद चोपड़ा ने देव आनंद साहब से एक प्रश्न पूछा था...कि देव साहब हम सभी जानना चाहते हैं कि आपमें वह कौन सी खास बात है, जो आज भी आपको सकारात्मक सोच रखने के लिए प्रेरित करती है. वह कौन सी ऊर्जा है. देव आनंद साहब ने हंसते हुए कहा कि मैं जो हूं मैं हूं, बनावटी नहीं. और जब तक रहूंगा ऐसे ही रहूंगा. बी योरसेल्फ तो आप भी हमेशा मेरी तरह ही मुस्कुराते रहेंगे. मैं उसी समारोह में मौजूद था. वाकई देव साहब में वह ऊर्जा थी. वह तेज था. जो हर किसी को जीने के लिए प्रेरित करता था. फिल्म इंडस्ट्री के लिए देव आनंद होने का मतलब था, हमेशा जिंदगी से प्यार. वे खुद कहा करते थे अगर मैं जवां दिल और रुमानी ख्यालात का ना होता तो फिल्में नहीं बना पाता. मैं मानता हूं फिल्म युवाओं का माध्यम है. इसलिए आप गौर करेंगे उन्होंने हमेशा अपनी फिल्मों में युवापन को बरकरार रखा. मुझे याद है जिस तरह लोग पिता राजकपूर को उस दौर में एक्टिंग की पाठशाला मानते थे. उस तरह देव आनंद साहब ने भी लोगों में युवा सोच की एक्टिंग की खोज की थी. वे राज कपूर की तरह ही दूरदर्शी थे. राजकपूर उनके बीच आत्मीय रिश्ता थे. लेकिन फिल्मों के विषयों को लेकर वे कई बार अच्छी बहस भी करते थे. उनका नाम शायद देव आनंद इसलिए था. चूंकि उनके जीवन में हमेशा आनंद को एहमियत दी. वे दुख से कोसो दूर रहे. देव आनंद का मतलब आनंद, युवा सोच, नयापन, हमेशा काम करने का जज्बा था. देव आनंद का मतलब फिक्र को धुएं में उड़ाना ही था. एक बार मैंने उनसे यह सवाल पूछा था, लगातार फिल्में बनाने के बावजूद जब वह नहीं चलती, तो आपको दुख नहीं होता. वे यही कहते तो फिर मैं देव आनंद कैसे होता. चिंटू ( ॠषि कपूर का पेट नेम) मैं बस यह जानता हूं कि मैंने अच्छा किया, तो भी मैं देव हूं. बुरा किया तो भी देव ही हूं. मैं ऐसा ही हूं. रहूंगा. लोगों ने मुझे हमेशा स्वीकार किया है. बस इसी बात की खुशी है. जब मैं कोई फिल्म बनाता हूं तो मैं उस वक्त यही मानता हूं कि मेरे लिए जीवन में उससे महत्वपूर्ण कुछ नहीं. उनकी इन बातों से मुझे एहसास होता है कि वाकई देव साहब की उम्र पिता राज कपूर के उम्र की थी. लेकिन उनका दिल युवा रणबीर की तरह था. मसलन उनकी उम्र उनकी जिंदादिली पर कभी हावी नहीं हुई. मैं मानता हूं कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कोई अभिनेता नहीं होगा, जिन्होंने उनसे कुछ कुछ सीखा हो. मैं उनका बहुत बड़ा फैन था. वह पापा के साथ घर पर आये थे. दिलीप साहब भी साथ दे. मैं उनके अंदाज से बेहद प्रभावित था. खासतौर से उनके कपड़े पहनने के सलीके से. उस दिन भी वे पूरे शर्ट के बटन बंद वाले अंदाज में ही आये थे. मैंने उनकी कॉपी करने की सोची. मैं आईने के सामने गया और उनकी नकल उतारने लगा. वे हंसते हुए आये और बोले चिंटू ऐसे नहीं ऐसे करो...मैंने अपने जीवन में सबसे अधिक बार गाइड देखी है. राजू गाइड का वह किरदार मेरे दिमाग में हमेशा यादगार रहेगा. इस फिल्म में उन्होंने जो भूमिका निभाई है. वह उस वक्त की बोल्ड फिल्मों में से एक थी,एक विवाहित महिला के साथ प्रेम पर आधारित यह कहानी उस दौर से बहुत आगे की सोच वाली फिल्म थी. फिल्म के गीत, लोकेशन देव साहब की बेहतरीन अदाकारी. मैं कभी राजू गाइड को भूल नहीं पाऊंगा. मेरी हमेशा से ख्वाहिश रही कि मैं कभी उस तरह के किसी किरदार को निभा पाऊं. देव साहब कभी गांव के नायक नहीं रहे. लेकिन उन्होंने महानगर के युवाओं को हमेशा आकर्षित किया. उनके गीतों में जिंदादिली इसलिए थी, क्योंकि वह जिंदादिल इंसान थे. देव आनंद का मतलब ही उन सारी चीजों से है, जो कभी खत्म नहीं हो सकती. वह सदाबहार हैं. खुशमिजाज हैं. आप गौर करें तो उन्होंने अंतिम दौर तक उन्होंने अपने पोशाक पर हमेशा ध्यान दिया है. वे आज भी युवा अंदाज में गले में मॉफलर डाल कर बिंदास अंदाज में भी बातें करते ही नजर आते थे. उनके गीतों में नयापन था. जीवन में नयापन था. इसलिए शायद उन्होंने अपनी फिल्मों में युवा किरदारों को मौके मिलते रहे. मैंने कहीं पढ़ा था कि फिल्म चार्जशीट की शूटिंग के दौरान काफी ऊंचाई पर कोई सीन शूट करना था. ऐसे में फिल्म के नायक आश्चर्य में पड़ गये थे, जब वे उतनी ऊंचाईयों पर जाकर खड़े हो गये. और आसानी से शूटिंग की. गर्मी के दिनों में भी उन्होनें इसी फिल्म के लिए सीन की मांग के मुताबिक डबल ओवर कोट पहना. और मॉफलर भी लगाया था. वाकई. फिल्मों को लेकर इस तरह का समर्पण देव साहब भी कर सकते थे. उनकी पारखी निगाहें अगर होतीं तो जीनत तमान, टीना मुनिम तब्बू जैसी अदाकाराएं आज इंडस्ट्री को नहीं मिलती. वह एक अभिनेता भी थे और एंटरटेनर भी और एक एंटरप्रेनर भी. वह वाकई राजू गाइड की तरह ही इंडस्ट्री में नयी प्रतिभाओं के गाइड थे. मार्गदर्शक थे.

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