20111221

पान सिंह व मिल्खा के बहाने



निदर्ेशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा की निगाह आ टिकी है भारत के सुप्रसिध्द एथलिट उर्फ फ्लाइंग सिंह मिल्खा सिंह पर. राकेश मिल्खा की जिंदगी पर फिल्म भाग मिल्खा भाग का निर्माण करने जा रहे हैं. मुख्य किरदार फरहान अख्तर निभायेंगे. फरहान अच्छे लेखक,निदर्ेशक, अभिनेता व गायक हैं. बहरहाल, अब उनका पूरा ध्यान मिल्खा के किरदार पर है. वे अपनी सारी व्यस्तताओं को छोड़ कर पूरी शिद्दत से मिल्खा के साथ वक्त बिता रहे हैं. और उनकी जिंदगी को नजदीक की बारीकियों को देखने व समझने की कोशिश कर रहे हैं. वही दूसरी तरफ तिंग्माशु धुलिया ने धावक पान सिंह तोमर पर फिल्म बनायी है. इरफान मुख्य किरदार निभा रहे हैं. इन दोनों ही निदर्ेशकों द्वारा ऐसे विषय का चयन किया जाना सराहनीय है. चूंकि अब तक हिंदी सिनेमा में किसी व्यक्ति की जीवनी पर आधारित फिल्मों के निर्माण का प्रचलन ना के बराबर है. और अगर रुचि रही भी है तो राजनैतिक या ऐतिहासिक शख्सियतों की कहानियों पर ही रही हैं, जिनमें भी महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस व भगत सिंह सबसे लोकप्रिय विषय रहे हैं. जबकि भारत में ऐसे कई व्यक्तित्व हैं, जिनकी जीवन यात्रा बेहद दिलचस्प है. दर्शकों को वह विषय जरूर पसंद आयेंगे और उन पर फिल्में बनायी जानी ही चाहिए. चूंकि सिनेमा सिर्फ एक मनोरंजन का माध्यम ही नहीं है,बल्कि इसके माध्यम से कई कहानियों का डॉक्यूमेंटेशन किया जा सकता है. लेकिन हिंदी सिनेमा में आज भी इस ओर निर्माता-निदर्ेशक का ध्यान नहीं जाता. यह अध्ययन का विषय है कि आखिर क्यों भारतीय निदर्ेशक किसी व्यक्ति की जीवनी पर आधारित कहानियां बनाने से कतराते हैं, जबकि पूरे विश्व के सिनेमाओं में लोग उन सभी कलाकारों, व्यक्तित्व पर फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में उस देश के लिए महत्व रखते हों. फिर चाहे वह विवादित व्यक्ति ही क्यों न हो. मामी फिल्मोत्सव में दिखाई गयी पिन्ना ऐसी ही फिल्मों में से एक थी, जिसने एक कोरियोग्राफर की जिंदगी की वास्तविकता को लोगों तक पहुंचाया. खेल के परिपेक्ष्य में देखें तो हिंदी सिनेमा में फुटबॉल, क्रिकेट व हॉकी के विषय को फिल्म का विषय चुना गया है. लेकिन कभी किसी स्पोट्र्स पर्सन की जिंदगी को नहीं. इस क्रम में राकेश ओम प्रकाश की भाग मिल्खा भाग व तिंगमाशु धुलिया की फिल्म पान सिंह तोमर एक बेहतरीन उदाहरण है. जबकि यह सच्चाई है कि अगर इन व्यक्तित्व पर फिल्में बने तो दर्शक उन कई महत्वपूर्ण पहलुओं से वाकिफ होंगे, जिनके वे नाम तक से वाकिफ नहीं. इसका ताजा उदाहरण फिल्म डर्टी पिक्चर्स है, जो दक्षिण की पॉर्न एक्ट्रेस सिल्क स्मिथा पर आधारित है. फिल्म बनने से पहले सिल्क को पूरी दुनिया नहीं जानती थी. लेकिन आज छोटे शहर के दर्शक भी सिल्क स्मिथा की विकिपिडिया बार बार खंगाल रहे हैं. कुछ इसी तरह दरअसल, ऐसे कई व्यक्तित्व हैं जिन पर फिल्में बननी चाहिए. ताकि चंबल में रहनेवाले पान सिंह तोमर जैसे धावक के संघर्ष की कहानी व मिल्खा सिंह जैसे एथलिट की वास्तविकता लोगों तक पहुंच पाये. वाकई ऐसी कहानियों को अगर बारीकी के साथ प्रस्तुत किया जाये. तो हिंदी सिनेमा में ऐसे कई अनछुए व्यक्तित्व की कहानियां लोगों के सामने आयेंगी. जिनका उन्होंने नाम तक नहीं सुना. दरअसल, सच्चाई यह भी है हिंदी सिनेमा में कहानियों पर शोध कर फिल्म बनाने का प्रचलन रहा ही नहीं है. व्यवसायिक सिनेमा की मांग को देखते हुए किसी व्यक्ति की जिंदगी को सिनेमा के रूप में हूबहू प्रस्तुत करने की हिम्मत नहीं रखते. वे अपनी जरूरत के अनुसार वास्तविक चीजों में मसाला का पुट डालते हैं, जो उस व्यक्ति के लिए स्वीकारणीय नहीं होता. हिंदी सिनेमा के निदर्ेशक यह भी जोखिम नहीं उठाना चाहते कि अगर किसी व्यक्ति की जीवनी पर फिल्म बनायी जाये तो इसका लाभ उस व्यक्ति को भी दिया जाये. सो, वे हमेशा इस बात से कतराते हैं. डर्टी पिक्चर्स के निर्माता भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. बावजूद इसके की पूरी दुनिया जानती है कि फिल्म सिल्क पर आधारित है. फिल्म सिल्क स्मिथा के जन्मदिन पर ही रिलीज हो रही है. निर्माता का कहना है कि फिल्म बायोपिक नहीं है. जबकि सिल्क स्मिथा के भाई वी नागा नारा ने इस पर सवाल भी खड़ा किया है. दरअसल, वजह यह है कि निर्माता नहीं चाहते कि वह लाभ की हिस्सेदारी उनके परिवार को भी दें. सो, वे इस बात से साफ इनकार कर देते हैं. चक दे इंडिया देखने के बाद पूरी दुनिया ने माना कि फिल्म हॉकी प्लेयर मीर रंजन नेगी पर है. लेकिन निर्माता इस बात से कतराते रहे. बहरहाल राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने साफ किया है कि फिल्म पूरी तरह मिल्खा सिंह की निगरानी में बनेगी. प्रसून जोशी पटकथा लिख भी रहे हैं. और साथ ही फिल्म की कमाई मिल्खा सिंह ट्रस्ट को भी दी जायेगी. राकेश व तिंग्माशु जैसे निदर्ेशकों से हिंदी सिनेमा के कई निदर्ेशकों को सीख लेनी चाहिए और फिल्मों में बायोपिक विषयों को शामिल करना ही चाहिए वरना जिस कदर हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म व आदर्ेशर ईरानी के महान योगदान के कोई भी दस्तावेज अब मौजूद नहीं. कुछ इसी तरह हम दिन ब दिन कई महत्वपूर्ण चीजें खोते जा रहे हैं. शायद इन सबकी वजह यह है कि हिंदी सिनेमा जगत अपने इतिहास, ऐताहासिक लोग, उनके योगदान व भारत के कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों के योगदान से वास्ता ही नहीं रखता चाहता न ही उन्हें याद करना चाहता है. हिंदी सिनेमा जगत का इसे दुर्भाग्य ही कह सकते हैं.
चलते चलते
तिंग्माशु बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने पान सिंह तोमर जैसे धावक की कहानी पर फिल्म बनाने का रिस्क लिया. तिंग्माशु के मन में यह ख्याल उस वक्त आया था जब वह चंबल में बैंडिट क्वीन पर काम कर रहे थे.
मराठी निदर्ेशक परेश मोकाक्षी ने राजाहरिचंद्र फैक्टरीचा का निर्माण दादा साहेब फाल्के की जीवनी पर किया.इस फिल्म के निर्माण के लिए उन्होंने मुंबई के अपने घर को भी बेच दिया. कई लोग इस फिल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे. लेकिन परेश इसके लिए तैयार न हुए.
बंगाली सिनेमा में भी रवींद्रनाथ की कृतियों पर फिल्में बनी हैं. लेकिन उनकी जीवनी पर नहीं.
भोजपुरी लोकसंगीत से संबंध्द रखनेवाले महेंद्र मिसिर पर फिल्म बनाने की योजना बन रही है.

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