20111228

ये बेटियां तो बाबुल की रानियां हैं







संजय दत्त ने साफ शब्दों में कहा है. दत्त खानदान की कोई बेटियां फिल्म जगत में कदम नहीं रखेंगी. फैसला फिलवक्त उन्होंने अपनी बेटी त्रिशिला के लिए सुनाया है. उनकी बेटी इसे स्वीकारेंगी भी. यही फरमान अपनी गोद में खेलती बिटियां ( मान्यता की बेटी) के संदर्भ में भी कहा है. जबकि संजय दत्त की मां नरगिस किसी जमाने की सुपरस्टार रह चुकी हैं. स्वयं संजय दत्त की पहली पत्नी ॠचा भी अभिनेत्री रह चुकी हैं. मान्यता दत्त ने भी शुरुआती दौर में कुछ फिल्मों में आयटम सांग किये हैं. काम के दौरान ही संजय दत्त से इन दोनों की नजदीकियां बढ़ीं. उनके पिता सुनील दत्त और नरगिस का मिलन भी सिनेमा जगत ने ही कराया. उस दौर में नरगिस पर राजकपूर को लेकर चरित्र पर कई सवाल उठाये गये थे. इसके बावजूद सुनील दत्त ने उन्हें संगिनी के रूप में स्वीकारा. तो, फिर दत्त खानदान के दूसरे जेनरेशन मसलन संजय दत्त अपनी अगली जेनरेशन की बेटियों को क्यों इस इंडस्ट्री से दूर रखना चाहते हैं? इस सवाल से केवल संजय दत्त पर ही नहीं, बल्कि उन तमाम सुपरसितारा अभिनेताओं पर प्रश्न चिन्ह लगता है, जिन्होंने सिनेमा जगत में राज किया है. लेकिन वह अपनी यह परंपरा अपनी बेटी को बढ़ाते नहीं देख सकते. हिंदी सिनेमा के 98 सालों के इतिहास को खंगाल लें तो ऐसे स्टार पिताओं के उदाहरण की कमी नहीं. फिर चाहे वह सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हों, हीमैन धमर्ेंद्र हों, या फिर रंधीर कपूर, ॠषि कपूर या राजेश खन्ना. इसके विपरीत स्टार बेटियों की मम्मियां ने हमेशा बेटियों का साथ दिया. बबीता-रंधीर कपूर, डिंपल कपाड़िया-राजेश खन्ना के रिश्तों की दूरियों की वजह भी यही मुद्दा बना. पिता हरगिज नहीं चाहते थे कि बेटियां इंडस्ट्री में जायें और मां की जिद्द थी कि वे बेटियों को स्वतंत्रता देंगी. हेमा मालिनी-धमर्ेंद्र में भी लंबे समय तक इसी मुद्दे को लेकर जिंदगी में खटास रही. कपूर खानदान के बेटे रंधीर कपूर ने करिश्मा करीना पर सख्ती बरती. लेकिन बबीता ने इसे नहीं स्वीकारा. नतीजन आज रंधीर-बबीता में तलाक नहीं. लेकिन फिर भी दोनों दूर हैं. बबीता ने पहली बार कपूर खानदान की परंपरा तोड़ी. रंधीर कपूर ने लंबे समय तक करिश्मा की फिल्में नहीं देखीं. खानदान की परंपरा तोड़नेवाली पहली लड़की बनने का खामियाजा भुगता करिश्मा ने लेकिन करिश्मा ने अपने बल पर पहचान बनायी. और अब कमान उनकी छोटी बहन करीना कपूर भलिभांति संभाल रही हैं. इसी खानदान की ॠषि कपूर और नीतू कपूर की बेटी ॠध्दिमा कपूर के बारे में नीतू स्वीकारती हैं कि उन्होंने शुरुआती दौर से ही ॠध्दिमा की परवरिश इस कदर की थी कि वह इस क्षेत्र के बारे में सोचे ही न. इससे साफ जाहिर होता है कि फिल्म इंडस्ट्री के कटु अनुभवों से एक अभिनेत्री अपनी बेटी को वाकिफ नहीं कराना चाहती थी. संभव हो कि बच्चन परिवार ने भी शुरू से ही श्वेता को इस इंडस्ट्री में आने के लिए प्रेरित नहीं किया हो. यह सत्य है कि हर पिता हर मोड़ पर अपनी बेटी का सुरक्षा कवच बनना चाहता है. लेकिन जिस इंडस्ट्री में उन पिताओं की पूरी उम्र गुजरी है. उस इंडस्ट्री की हर रग तो वह पहचानते ही होंगे. लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद वह बेटियों को आने नहीं देते. आखिर क्यों? धमर्ेंद्र के लाख मना करने के बाद भी हेमा की जिद्द पर ऐषा ने मनमानी की. जाट परिवार की बेटी होने की वजह से उन्हें इंडस्ट्री में कदम रखने के बाद कभी देओल परिवार या पिता का सहयोग नहीं मिला.धमर्ेंद्र की होम प्रोडक्शन कंपनी और हेमा की प्रोडक्शन कंपनी एक नहीं. हाल ही में रिलीज हुई टेल मी ओ खुदा से हेमा ने जब ऐषा को रीलांच किया, तो धमर्ेंद्र आगे तो आये. लेकिन उन्होंने औपचारिकता मात्र ही निभायी. टि्वकंल खन्ना के भी इंडस्ट्री में आने के खिलाफ ही थे राजेश खन्ना. आखिर एक पिता की इस हिचक, इनकार, ऐतराज की वजह क्या है. वजह साफ है कि एक अभिनेता पिता इस दलदल की हकीकत को बखूबी जान चुका होता है. वह जानता है कि यहां अभिनेत्रियों की स्थिति क्या है. हैसियत क्या है. लोग उन्हें किस नजर से देखते हैं. खासतौर से तब भी जब वे सभी पिता का नाम भी किसी न किसी अभिनेत्री से जुड़ा रहा. धमर्ेंद्र, अमिताभ, शत्रुघ्न, राजेश खन्ना, राज कपूर व दिलीप कुमार के रिश्ते उनके साथ काम कर चुकीं हर अभिनेत्री से जोड़े गये. शायद खुद जब राज कपूर जैसे दिग्गजों ने भी अभिनेत्रियों के साथ रिश्ते जोड़े, तो निश्चित तौर पर कोई पिता नहीं चाहेगा कि उसके खानदान की बेटियों पर कोई बुरी नजर डाले. यही वजह है कि बॉलीवुड में खानदानी बेटियां अपनी मन मर्जी की मालिक नहीं . बात अगर सोनम कपूर और सोनाक्षी की करें, जिनके पिता ने उनका साथ तो दिया. लेकिन उन पर पाबंदियां जारी है. सोनाक्षी को देर रात काम करने की इजाजत नहीं.सोनम कपूर को भी अनिल कपूर द्वारा पुरुष मित्रों से अधिक मेल जोल बढ़ाने पर पाबंदियां हैं. इससे यह साफ जाहिर है कि वे सभी स्टार पिता नहीं चाहते कि उनकी बेटियों को वह सारी परिक्रिया से गुजरना पड़े, जिससे एक अभिनेत्री बनने की प्रक्रिया पूरी होती है. यह कटु सत्य है. मुमकिन हो कि मधुर भंडारकर की आनेवाली फिल्म हीरोइन में हीरोइन बनने की इस पहलू पर से भी परत हटायें तो शायद हीरोइन की जिंदगी के इस हकीकत से भी दर्शक रूबरू हो पायेंगे.
चलते -चलते
1.धमर्ेंद्र ने अब तक ऐषा की कोई भी फिल्म नहीं देखी है. शुरुआती दौर में रंधीर कपूर ने भी करिश्मा की फिल्में देखने से इनकार कर दिया था. अब जाकर रंधीर ने करीना की फिल्में देखनी शुरू की.
2. राजकपूर ने नरगिस को कहा था कि तुम हमेशा मेरे घर की तुलसी हो. घर नहीं ला सकता. नरगिस अंतिम समय तक राजकपूर के लिए अपने मन से स्नेह कम न कर सकीं.
3. इंडस्ट्री में किसी भी पिता ने अपने प्रोडक्शन हाउस के माध्यम से बेटियों को लांच नहीं किया. जबकि धमर्ेंद्र ने विजेता प्रोडक्शन से देओल बेटों को लांच करने में अहम भूमिका निभायी. राजकपूर ने आरके बैनर से अपने तीनों बेटों को लांच किया. शत्रुघ्न ने लवकुश को लांच किया. हैरी बवेजा ने हरमन को लांच किया. वासु भगानी ने जैकी को लांच किया.

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