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20111228
सिनेमा की नयी सुपरस्टार
हिंदी सिनेमा में ऐसे अवसर कम ही मिलते हैं, जब परदे पर अभिनेत्री की उपस्थिति हो तो उनके कपड़ों से अधिक ध्यान उनके चेहरे के एक्सप्रेशनंस खींचते हों. दरअसल, उनके वह एक्सप्रेशन, उनकी भाव भंगिमा व किरदारों को शिद्दत से जीने की वजह से हीं आज वह विद्या बालन हैं, जो अपनी एकल पहचान बना पाने में कामयाब हो चुकी हैं. आज उन्हें कामयाबी के लिए किसी खान के साथ काम करने की जरूरत नहीं. परिणीता, नो वन किल्ड जेसिका, इश्किया व अब द डर्टी पिक्चर में अपनी बिल्कुल अलग व सशक्त भूमिकाओं से उन्होंने साबित कर दिया है कि वह फिल्मों में हीरो हैं. परिणीता से डर्टी पिक्चर तक के सफर में उन्होंने वे सारी परिस्थितियों का सामना किया है, जिसका सामना हर अभिनेत्री को करना पड़ता है. वे सिर्फ हीरोइन नहीं अभिनेत्री हैं.
मुंबई के बांद्रा इलाके में स्थित गेइटी थियेटर व जूहू स्थित चंदन सिनेमा के दर्शकों की प्रतिक्रिया फिल्मों के हिट होने या होने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है. माना जाता है कि अगर फिल्में यहां पसंद आ गयी तो पूरे भारत के सिंगल थियेटर में धूम मचायेगी. चूंकि इन दो थियेटरों में हर वर्ग के दर्शक आते हैं और शायद यही वजह है कि आम दर्शकों की सोच का अनुमान लगाने के लिए हर निदर्ेशक इन दोनों थियेटर के कलेक्शन पर गौर फरमाते हैं. अब तक इन थियेटरों में अभिनेता सलमान खान की फिल्में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं. लेकिन 2 दिसंबर, 2011 को यह रिकॉर्ड टूटा. जब सिल्क की जिंदगी पर आधारित फिल्म द डर्टी पिक्चर ने धमाल मचायी. थियेटर से निकलने के साथ हर किसी की जुबां पर सिर्फ और सिर्फ विद्या का नाम था. सोशल नेटवर्किंग साइट्स, अखबार, एसएमएस जोक्स पर इन दिनों विद्या का ही राज है. डर्टी पिक्चर्स की बॉक्स ऑफिस की शानदार कामयाबी के बाद जब विद्या ने यह कहा कि उन्हें अब खान सरनेम की जरूरत नहीं, बल्कि खान अभिनेताओं को बालन सरनेम लगा लेना चाहिए, तो कई लोगों ने इसे विद्या का बड़बोलापन व उनका घमंड माना. लेकिन सच्चाई यह है कि यह उनका बड़बोलापन नहीं. यह उनके आत्मविश्वासी शब्द हैं. चूंकि उन्होंने यह मुकाम आसानी से हासिल नहीं किया. अपनी मेहनत, लगन व बिना किसी सहारे के अपनी अलग पहचान स्थापित की है. वह भी अकेले.
टूटा भ्रम
डर्टी पिक्चर देखने के बाद दर्शक विद्या के कपड़ों या उनके ठुमकों की नहीं, बल्कि उनके संवाद अदायगी, उनके बोल्ड अंदाज व सिल्क के किरदार को संजीदगी से जीनेवाली अदाकारा की चर्चा कर रहे थे. यह जादू सिर्फ निदर्ेशक की कहानी का नहीं, बल्कि विद्या की मेहनत का ही है, जो आज आम दर्शक से लेकर खास दर्शकों तक को विद्या ने मोह लिया है. विद्या सुपरसितारों की भीड़ में शामिल होते हुए भी सबसे जुदा हैं. उनमें पाखंड, घमंड या बड़बोलापन नहीं. और ऐसा होगा भी नहीं, चूंकि वे जान चुकी हैं कि उन्हें लंबे रेस का घोड़ा बनना है. महज साढ़े पांच सालों में ही उन्होंने इस दुनिया के कई रंग देख लिये हैं. इस मायाजाल को समझने में जहां लोगों के कितने वर्ष बीत जाते हैं विद्या बेहद सजग होकर फूंक फूंक कर अपना हर कदम रख रही हैं. गलतियां उनसे भी हुई, गलत फैसले उन्होंने भी लिये. लेकिन फिर भी वह जल्द ही उन गलतियों को सुधारने में जुट गयीं, और शायद इन्हीं गुणों के कारण वह भीड़ से जुदा होकर बिना किसी सहारे के सफल हैं. संतुष्ट हैं. अभिनय भी हर विषय की तरह एक अध्ययन का विषय है. निस्संदेह अगर आप शिक्षित हों तो इसका असर आपकी पूरी जीवनशैली पर पड़ता है. विद्या ने भी मानवशास्त्र में एमए किया है. जबकि हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियां पढ़ाई को महत्व नहीं देतीं. लेकिन विद्या ने अपने पिता के कहने पर ही पहले अपनी पूरी पढ़ाई खत्म की. और यह बात पूरे दावे के साथ कही जा सकती है कि मानवशास्त्र विषय का ही जादू है जो विद्या किरदारों की मनोस्थिति व अपने दर्शकों के मानवशास्त्र को समझ पाने में कामयाब हैं. अपने अध्ययन के दौरन ही वे इन बातों से वाकिफ हो चुकी होंगी कि आम लोगों की जिंदगी से जुड़े वे कौन कौन से तत्व होते हैं और कैसे एक रिश्ते स्थापित किये जा सकते हैं. यही वजह है कि अपनी शिक्षा के मूल्यों को वह अपने अभिनय क्षेत्र में दर्शाती हैं और अपने किरदारों की बारीकियों व उनकी विशेषताओं को समझते हुए वे आम दर्शक के किरदारों से खुद को जोड़ लेती है. जब वह परिणीता होती है तो वाकई एक बांग्ला आम लड़की नजर आती है तो वही मुंबई के आरजे में मुंबईकर. पा में एक दुखी लेकिन आत्मविश्वासी मां नजर आती हैं तो इश्किया में वह उत्तरीभारत की महिला-सी चालाक चतुर पत्नी, द डर्टी पिक्चर में वे सिल्क बन कर बिंदास , बेबाक, बोल्ड होते हुए भी बेशर्मियत की हद को पार नहीं करती. तमाम बातों के बावजूद विद्या आम दर्शकों से खुद को जोड़ पाने में कामयाब हैं, क्योंकि उन्होंने विषय मानवशास्त्र की बारीकियों को अपने वास्तविक जिंदगी में व्यवहारिक रूप से ढाला है. यही वजह है कि धीरे धीरे ही सही अब वह विद्या का तिलिस्म पैदा करने में कामयाब हो चुकी हैं.
निराला व्यक्तित्व
विद्या की सबसे खास बात यह है कि वे हर भ्रम को तोड़ देती हैं. वे आतंकित नहीं करतीं. वे ग्लैमर का मोह जाल नहीं फैलातीं. वे जो हैं. वे नजर आती हैं. उनकी संवाद अदायगी का अंदाज सबसे निराला है. वे शुध्द, साफ व बेबाक बोलती हैं. उनकी हिंदी अपनी समकक्ष अभिनेत्रियों में सबसे अच्छी है. उन्हें सुन कर आप महसूस करेंगे कि वे हर शब्द को बोलती नहीं जीती हैं. नाप तोल कर बोलना नहीं आता उन्हें. अन्य अभिनेत्रियों की तरह वे अपने अफेयर की बात पर किसी पत्रकार पर नाक भाव नहीं सिकोड़ती. आपत्तिजनक बातों पर भी वह मीडिया का अनादर नहीं करतीं. मजाक बनने के डर से भी वह अपनी शालीनता व आदर सत्कार नहीं भूलती. अपने बड़ों से वह भॣड़ में भी पैर छूकर ही आशीर्वाद लेती हैं. नये पत्रकारों से भी खुल कर बात करती हैं. ऐसे में अगर किसी पत्रकार की कोई खास बात अच्छी लगे तो तारीफ करने से भी नहीं चूकतीं. अपने जवाबों में वह ईमानदार रहती हैं. दिखावाटीपन बिल्कुल नहीं. उनका यही व्यक्तित्व उनके किरदारों में भी नजर आता है. परदे पर दिख रही विद्या वास्तविक जिंदगी में भी उतनी ही मृदुभाषी, संजीदा, और अपनी आलोचनाओं से सबक लेनी वाली अभिनेत्री हैं. एक शब्द में कहें तो अन्य अभिनेत्रियों की तरह वह दोहरी भूमिका नहीं जीतीं.
डगमगाये थे कदम लेकिन जल्द ही हुई सजग
विद्या ने अपनी गुणवता फिल्म परिणीता में ही साबित कर दी थी. महज 26 साल की उम्र में उन्होंने एक संजीदा किरदार निभाया. लेकिन बावजूद इसके उन्हें वह कामयाबी नहीं मिली, जिसकी वह हकदार थीं. धीरे धीरे ग्लैमर की दुनिया में वह डगमगायी और उन्होंने सलामेइश्क, किस्मत कनेक्शन व भूल भुलैया जैसी फिल्मों में काम किया. लेकिन जल्द ही वे मोहजाल से बाहर हुईं और उन्होंने खुद अपने व्यक्तित्व पर काम शुरू किया. इसमें उनका साथ दिया उनकी बड़ी बहन प्रिया ने. जिन्होंने उन्हें समझाया कि अगर वह अभिनेत्री बनना चाहती है तो फिर कुछ अलग करे. विद्या ने फौरन खुद को संभाला और लगे रहो मुन्नाभाई की आरजे जानवी के रूप में सामने आयी. लेकिन उन्हें वास्तविक या यूं कहें एकल पहचान मिली फिल्म पा में अमिताभ की मां के किरदार व साथ ही इश्किया में एक चालाक महिला के किरदार से. और फिर आयी फिल्म डर्टी पिक्चर में उन्होंने अपने बोल्ड अंदाज से इंडस्ट्री की इस हिचक को खत्म करने पर मजबूर कर दिया कि किसी अभिनेत्री के दम पर भी हिंदी फिल्में हिट हो सकती हैं. दरअसल, वास्तविकता यह है कि विद्या में ऐसी कई विशेषता हैं जो उन्हें एकल पहचान दिलाती है. यह विद्या की ही समझदारी है जो उन्होंने इस बात को पूरी तरह समझ लिया है कि हिंदी सिनेमा में अभिनय प्रधान अभिनेत्रियों की कमी है. ऐसे में उनके पास वे सारे मौके हैं, जब वे इनका सही तरीके से इस्तेमाल करें और अपनी अलग राह बनायें. उन्होंने यह तरीका अपनाया भी.
हिचक को तोड़ा
ग्लैमरस अभिनेत्रियों की भीड़ में विद्या को कभी ग्लैमरस नहीं माना गया, यहां तक कि जब उन्होंने चकाचौंध में आकर पाश्चात्य परिधानों को अपनाया. उन्हें आलोचना मिली. लेकिन फिर जब उन्होंने भारतीय परिधानों की तरफ रुख किया तो लोगों ने मान लिया कि वे केवल सती सावित्री व अपनी उम्र से बड़े किरदार निभाने में ही सशक्त होंगी. उनके हर समारोह में साड़ी पहनने पर भी उनका मजाक उड़ाया गया. लेकिन फिल्म इश्किया में उन्होंने सबको हैरत में डाल दिया. यहां भी वह सती सावित्री की तरह साड़ी में ही लिपटी नजर आयी, ेलेकिन हाथों में बंदूक थाम कर दो ठग पुरुषों को भी उन्होंने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. फिल्म पा में अपनी उम्र से कहीं बड़े अभिनेता की मां बनने का निर्णय किसी नयी उम्र की अभिनेत्री के लिए रिस्की हो सकता है. लेकिन विद्या ने इसकी परवाह नहीं की, क्योंकि शायद वह जानती थीं कि यही उनकी सही राह है. लेकिन जब तक लोग इश्किया के आधार पर बोल्ड छवि की बनाते, उन्होंने नो वन किल्ड जेसिका में जेसिका लाल की बहन का सादा लेकिन सशक्त किरदार सबरीना कर सबको चौंका दिया और वर्ष के अंत में उन्होंने धमाका किया. अपनी सभी बनी बनायी छवियों से दूर उन्होंने सिल्क के रूप में तहलका मचा दिया. इस फिल्म में उन्होंने न सिर्फ बोल्ड सीन दिये, बल्कि बोल्ड परिधानों में भी नजर आयीं.साथ ही बोल्ड संवादों से भी उन्होंने हैरत में डाला. दरअसल, विद्या के इन तमाम रूपों को देख कर अब तय हो चुका है कि विद्या को देखते हुए हर बार चौंकने के लिए तैयार रहना होगा. जल्द ही वे सुजॉय घोष की फिल्म कहानी में भी बिन व्याही मां का किरदार निभाने जा रही हैं.
विद्या-सिल्क में समानता.
लंबे अंतराल के बाद हिंदी सिनेमा में किसी फिल्म की कामयाबी का सेहरा किसी अभिनेत्री के सिर बांधा गया है. फिल्म डर्टी पिक्चर की तरह ही अभिनेत्री विद्या बालन को भी रास्तों में कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा. जिस तरह फिल्म में रेश्मा अपने सपनों को लेकर मद्रास जाती है और उसे बार बार फटकार लगाई जाती है. मशक्कत के बाद उसे काम करने का मौका तो मिलता है, वह शूटिंग भी करती है. लेकिन जब वह फिल्म देखने जाती है तो वह फिल्म में कहीं नजर ही नहीं आती. यह देख कर रेश्मा बहुत दुखी हो जाती है. कुछ इसी तरह वास्तविक जिंदगी में भी विद्या को लगभग 12 मलयालम फिल्मों में काम करने के बावजूद जब उन्होंने वह फिल्में देखीं, उनमें वे नजर आयीं. शायद अपनी जिंदगी से मिलती कहानी की वजह से ही विद्या इस किरदार को बखूबी निभा पायी हैं.विद्या खुद मानती हैं कि अगर शुरुआती दौर में उन्हें तिरस्कृत नहीं किया जाता तो शायद आज वह इस मुकाम पर नहीं होतीं.
विद्या के अनछुए पहलू
विद्या कभी आईने में देख देख कर शबाना आजिमी की फिल्म अर्थ के संवाद दोहराती थी. नसीरुद्दीन शाह जैसे अभिनेता के घर पर सिर्फ इसलिए फोन किया करती कि वे व्हाइस मेल पर ही सही उनकी आवाज सुन सके. और आज वे उनके साथ दो फिल्मों में काम कर चुकी हैं. बचपन में वे अपनी पॉकेटमनी बचा कर जरूरतमंदों की सेवा किया करती थी. लेकिन अपने पिता या परिवारवालों से इस बात का जिक्र भी नहीं करतीं.
गेमचेंजर विद्या बालन ः
1.5 से 2.5 करोड़ मेहनताना लेनेवाली विद्या अब 4 से 5 करोड़ रुपये की डिमांड कर रही है.
करीना कपूर जैसी अभिनेत्रियां भी अब हीरोइन जैसी फिल्मों में बोल्ड अंदाज में पेश आने से नहीं हिचक रही हैं.
इंडस्ट्री में यह शोर अब कम हो चुका है कि केवल खान स्टार या किसी पुरुष नायक की वजह से ही बॉक्स ऑफिस की सफलता संभव है.
इस अवधारणा में बदलाव कि किसी नायिका को सफल होने के लिए खान सरनेम या खान की फिल्में करना ही मापदंड नहीं होगा.
बॉलीवुड में वर्तमान में वही अभिनेत्री नंबर वन है, जिन्होंने अब तक इंडस्ट्री के तीन प्रमुख खान शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान के साथ अभिनय किया हो. अर्थात हिंदी सिनेमा में वही अभिनेत्री सुपरस्टार हैं, जो खान की फेवरिट रही हैं. यानी कि अभिनेत्रियों की काबिलियत परखने का आधार भी
इंडस्ट्री के नायक ही है. उस आधार से करीना कपूर ही एक मात्र अभिनेत्री हैं,जिन्होंने तीनों खान के साथ काम किया है. यानी वही सुपरसितारा हैं. खुद करीना कपूर को भी इस बात का गर्व है. लेकिन वर्ष 2011 की 2 दिसंबर की तारीख ने इस पूरे आधार को ही निराधार साबित कर दिया. जब विद्या बालन अभिनीत फिल्म द डर्टी पिक्चर को बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षा से भी कहीं अधिक कामयाबी मिली. जबकि फिल्म में कोई भी सुपरसितारे नहीं थे. न ही फिल्म से दूर दूर तक किसी खान का नाम जुड़ा था. यह करिश्मा था तो सिर्फ और सिर्फ विद्या बालन का. लोगों के अनुमान के बिल्कुल विपरीत जाकर उन्होंने बिना किसी खान की उपाधि लिये फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता दिलायी. यह वाकई हिंदी सिनेमा में पहली बार हुआ, जब किसी महिला प्रधान फिल्म होने के बावजूद फिल्म को जबदस्त कामयाबी मिली और पूरा का पूरा श्रेय भी महिला कलाकार को मिला. फिल्म की कामयाबी का सेहरा सिर्फ और सिर्फ विद्या के सिर पर बांधा गया. और आश्चर्य तो यह कि विद्या ने अब तक किसी भी खान कलाकारों के साथ काम न करते हुए भी अपने अभिनय से बाकी सभी अभिनेत्रियों को पीछे छोड़ दिया है. विद्या को वाकई गेमचेंजर की उपाधि दी जाये तो यह अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि जिस अंदाज से उन्होंने द डर्टी पिक्चर में अभिनय किया व महिला प्रधान फिल्म होने के बावजूद निर्माताओं को अपार सफलता दिलायी. उससे यह साफ जाहिर है कि अगर अभिनेत्री भी चाहें तो अपन बलबुते वह बॉक्स ऑफिस पर भी राज कर सकती है. विद्या बालन को आज किसी खान सरनेम या फिर खान के साथ काम करने का टैग नहीं चाहिए. वे खुद में ब्रांड बन चुकी हैं और खास बात यह रही है कि उन्होंने यह मुकाम बिना किसी सहारे के हासिल किया है. विद्या के साथ साथ फिल्म द डर्टी पिक्चर की निर्माता एकता कपूर भी बधाई की पात्र हैं, जिन्होंने अपने शो व विद्या का पहला शो हम पांच से ही विद्या की काबिलियत परख ली और इतने सालों के बाद शुरुआत से शिखर तक दोनों महिलाओं ने साबित कर दिया कि बॉक्स ऑफिस की सफलता केवल अभिनेताओं की बपौती नहीं है. विद्या ने अपने अभिनय का जो स्वरूप डर्टी पिक्चर्स से पेश किया है, वे अब लेडी खान बन चुकी हैं. फिल्म को सफलता मिलते ही अब लगभग सभी निदर्ेशक व अभिनेता विद्या के साथ काम करने को उत्सुक हैं. निस्संदेह विद्या की यह कामयाबी केवल उनकी ही कामयाबी नहीं, बल्कि इंडस्ट्री की हर अभिनेत्री की कामयाबी है. कम से कम इस फिल्म की सफलता के बाद अब निर्माता भी मानेंगे कि महिला प्रधान फिल्में व्यवसायिक रूप से भी सफल हो सकती है और धीरे धीरे ही सही इस फिल्म की वजह से अब महिलाओं को भी फिल्मों की सफलता का श्रेय दिया जाने लगेगा. इस लिहाज से विद्या लीडर साबित हुई हैं, क्योंकि उन्होंने साबित किया है कि सशक्त अभिनय, स्क्रिप्ट की मांग पर अपना सबकुछ समर्पित करने से कामयाबी हासिल की जा सकती है. वे लोगों को चौंकाने में कामयाब हुई हैं. उन्होंने वाकई इस सोच को बदलने में और लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि केवल साइज जीरो या कपड़ों की चमक धमक दिखाना ही अभिनेत्रियों का काम नहीं. अगर जरूरत पड़े तो अभिनेत्री भी अपनी सीमा में रह कर बोल्ड अंदाज में नजर आ सकती हैं. उन्होंने निदर्ेशकों, अभिनेत्रियों और सबसे प्रमुख निर्माताओं को भी नयी दिशा में सोचने का आगाज किया है. इसके साथ ही विद्या ने एक अहम बदलाव यह लाया है कि अब तक इंडस्ट्री में पुरुष नायकों को ही केवल 4 से 5 करोड़ रुपये मेहताना मिला करते थे. जबकि अभिनेत्रियों को अधिकतम 2.5 करोड़. इस फिल्म की कामयाबी के बाद 1.5 से 2.5 करोड़ लेनेवाली विद्या अब निर्माताओं से 4 से 5 करोड़ रुपये मेहताना की मांग कर रही है. और यह वाजिब भी है. उनके इस कदम से बाकी अभिनेत्रियों को भी प्रेरणा मिलेगी और इंडस्ट्री में हो सकता है कि आनेवाले समय में अभिनेत्रियों को भी अभिनेताओं के समकक्ष मेहनताना प्राप्त होने लगे. गेमचेंजर के रूप में विद्या इस रूप में भी कामयाब हो चुकी हैं कि इस फिल्म की सफलता ने बोल्ड विषयों पर फिल्में बनने का रास्ता साफ किया है. साथ ही ए ग्रेड की नायिकाओं को भी राह दिखाई है कि वे बिना किसी हिचक के ऐसी फिल्में स्वीकारेंगी. गौरतलब है कि इस फिल्म की कामयाबी के बाद ही करीना कपूर ने फिल्म हीरोइन में उन सभी चीजों से पाबंदियां हटा दी हैं, जिन्हें वे पहले करने को तैयार नहीं थी. लेकिन विद्या को देखते हुए बाकी सभी अभिनेत्रियों को हिम्मत भी मिली है और उनमें प्रतिस्पर्धा भी आयी है. जाहिर है कि इससे फिल्मों में बोल्डनेस व साथ ही एक दूसरे से खुद को बेहतरीन साबित करने की सोच से कई अभिनेत्रियां अब चरित्रों को भी प्राथमिकता देंगी. लेकिन कामयाबी के साथ आनेवाला समय विद्या के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण भी रहेगा. चूंकि अब उनसे लोगों की उम्मीदें और बढ़ गयी हैं.तो यह बेहद जरूरी है कि आनेवाले समय में भी उनकी क्षमता बरकरार रहे. कम से कम वर्ष 2012 में आनेवाली उनकी सभी फिल्मों पर लोगों की निगाह रहेगी. उन्हें हर फिल्म में खुद को अलग साबित करना होगा. खासतौर से उनकी आगामी फिल्म कहानी का सफल होना बेहद जरूरी है. चूंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो एक बार फिर उन पर प्रश्नचिन्ह लगाये जायेंगे. सो, यह बेहद जरूरी है कि उनकी आगामी फिल्म को व्यवसायिक रूप से भी सफलता मिले. चूंकि जब कामयाबी आती है तो अपने साथ कई बाधाओं को भी साथ लाती है. लेकिन अगर उन बाधाओं को पार कर व्यक्ति टिक जाये तो वह सफलता हमेशा बरकरार रहती है. विद्या को अभी इसी चुनौती का सामना करना है. चूंकि इस इंडस्ट्री का यह भी कटु सत्य है कि यह इंडस्ट्री सिर्फ उगते सूरज को ही सलाम करती है. शिखर पर पहुंचना व टिके रहना ही असली चुनौती है और इससे फिलहाल विद्या को गुजरना ही पड़ेगा. आनेवाला समय उनके जीवन में और कठिन व चुनौतियों से भरा होगा. यह तय है. लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि विद्या की काबिलियत पर भी शक नहीं किया जा सकता. निस्संदेह बदलाव की जो बयार विद्या ने लायी है, वह किसी क्रांति से कम नहीं. अब देखना बस यह है कि इस क्रांति की लौ कब तक बरकरार रहती है.
प्रेरणा ः विद्या अपनी ताकत व प्रेरणा अपने परिवार के सहयोग को मानती हैं, क्योंकि उन्होंने ही विद्या को लगातार मिल रही निराशा के बावजूद उनका साथ दिया. जिस वक्त उन्हें काम नहीं मिल रहा था. वे हमेशा रोती रहती थीं. लेकिन उनके परिवारवालों ने उनका साथ दिया. विद्या खुद बताती हैं कि उनकी बहन व उनके बहनोई ने विद्या को समझाया कि अगर वह वाकई अभिनेत्री बनने आयी हैं तो फिर वह कुछ अलग करें. विद्या ने उनके सुझाव को अपनाया भी आज कीर्तिमान स्थापित किया. साथ ही विद्या अपनी ही गलतियों से प्रेरणा लेती गयीं. और उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी उनका अपने अभिनय को गंभीरता से लेना. उन्होंने चरित्र प्रधान फिल्मों को तवज्जो देना शुरू किया. फिर चाहे इसके लिए उन्हें अपनी उम्र से बड़े किरदारों को ही क्यों न निभाना पड़ा हो.
बदलाव या मोड़ ः यूं तो विद्या के अभिनय की परख व उनकी खूबियां उनकी पहली फिल्म परिणीता में ही नजर आ गयीं थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में बेहतरीन काम किया. लेकिन किस्मत कनेक्शन व सलामेइश्क जैसी फिल्मों में काम करने के बाद उन पर प्रश्न चिन्ह लगा. सो, जल्द ही विद्या ने यह समझ लिया कि उन्हें बदलाव की जरूरत है. उनकी जिंदगी में अहम मोड़ आया. और वे पा व इश्किया जैसी फिल्मों में काम करने के लिए तत्पर हुईं. फिल्म इश्किया में अपने बोल्ड अंदाज से उन्होंने साबित कर दिया कि वे लोगों की सोच से कहीं आगे की नायिका हैं. फिर फिल्म नो वन किल्ड जेसिका व द डर्टी पिक्चर्स से उन्होंने एक अलग ही पहचान स्थापित कर ली.
चुनौतियां ः विद्या किसी फिल्मी खानदान से संबध्द नहीं रखती. जाहिर है, ऐसे में उन्हें शुरुआती दौर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा. साथ ही विद्या अन्य अभिनेत्रियों की तरह बेहद ग्लैमरस अभिनेत्री नहीं मानी जातीं. लेकिन चकाचौंध की इस दुनिया में खुद को स्थापित और भीड़ के साथ कदम मिला कर चलने के लिए कुछ दिनों के लिए विद्या को भी यहां के रंग ढंग में बदलना पड़ा.चूंकि विद्या के सामने अपनी समकक्ष अभिनेत्रियों के समान खूबसूरत दिखना भी एक चुनौती थी. लेकिन जल्द ही विद्या ने अपनी खूबियों को समझा और बिना किसी दिखावे के वह स्थापित व चरित्र प्रधान अभिनेत्री बन गयीं.बिना किसी तामझाम के आज वह अपनी समकक्ष अभिनेत्रियों से कहीं आगे हैं. वे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम कर रही हैं और निदर्ेशकों की पसंदीदा हीरोइन बन चुकी हैं. लेकिन आनेवाले समय में विद्या के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह अपनी कामयाबी को किस तरह बरकरार रख पाती हैं.
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