20160321

नल्ला कहलाने में हर्ज़ ही क्या है : आसिफ शेख


उन्हें खुद को नल्ला कहलाने में कोई हर्ज नहीं, क्योंकि जब वह किरदार निभा रहे होते हैं तो उसमें वह अपना 100 प्रतिशत देते हैं. वे मानते हैं कि वे कोई माइथोलॉजिकल किरदार नहीं निभा रहे. इसलिए कभी किसी छवि में बंध कर रह जाने का उन्हें डर नहीं है. वे भाभीजी घर पर  हैं के लेखक व निर्देशक की तारीफ इस लिहाज से करते हैं कि इस शो में महिलाओं को बहुत सम्मानित किरदार मिला है. बड़े परदे पर की एंड का की रिलीज में वक्त है. लेकिन छोटे परदे पर विभूति हाउस हस्बैंड के किरदार से दर्शकों को अपना कद्रदान बना चुके हैं.
लंबे अरसे के बाद किसी शो को पारिवारिक मत से कामयाबी मिली है. आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
हां, भाभीजी घर पर हैं की लोकप्रियता की सबसे खास बात यही है कि इसे हर वर्ग के दर्शक पसंद करते हैं. और इसकी वजह यह है कि इस शो में महिला किरदारों को बहुत ही सम्मानजनक किरदार में दिखाया जा रहा है. उनसे दोनों पुरुष किरदार भले ही मजाक करते हैं. लेकिन पूरे लहजे के साथ करते हैं. इस वजह से दर्शकों तक पहुंच पाया है. हम इसमें कनर्वसेशनल कॉमेडी कर रहे हैं. बातचीत में कॉमेडी आ जाती है. आम बोलचाल की भाषा है. और विशेष कर जिस शहर से संबंधित है यह शो वहां के लहजे को हमने अच्छे से पकड़ा है. और इसके लिए शो के लेखक मनोष संतोषी और शंशाक बाली बधाई के पात्र हैं. कई लोग पूछते हैं कि शो में नल्ला कह कर बुलाया जाता है. बुरा लगता है. मैं कहता हूं किरदार है. और किरदार के लिए कुछ भी करूंगा. चूंकि मैं काम को लेकर हमेशा से बहुत अनुशासित रहा हूं. मेरी पत् नी तो मजाक में कहती है कि मुझसे अधिक अनीता और अंगूरी भाभी के साथ वक्त बिताते हो.
बड़े परदे पर हाउस हस्बैंड के कांसेप्ट पर की एंड  का आ रही है. लेकिन छोटे परदे पर आप इसकी अगुवाई कर चुके हैं?
जी हां, और मुझे लगता है कि यह शो सिर्फ कॉमेडी शो नहीं है, इसके माध्यम से अगर संदेश जा रहा है कि महिलाओं को कभी कमतर न आंकें. गौर करें तो प्राय: हम मजाक महिलाओं का बनाते हैं. लेकिन इस बार पुरुष किरदार टारगेट हैं. हाउस हस्बैंड होने में कोई बुराई नहीं है. मैं निजी जिंदगी में भी खाना पकाना बहुत पसंद करता हूं और जब भी छुट्टी हो मैं कोशिश करता हूं कि अपनी पत् नी और बच्चों के साथ नये नये व्यंजन पकाऊं. यकनी पुलाव मेरा सिग्नेचर डिश है. और मुझे इसमें कोई शर्म नहीं आती. 
शो जब हिट हो. किरदार हो तो किसी छवि में बंधने की भी गुंजाईश होती है. आपकी क्या राय है?
मुझे नहीं लगता कि मैं कोई माइथोलॉजिकल किरदार निभा रहा हूं. इससे पहले भी मैंने कई कॉमेडी किरदार निभाये हैं. तब नहीं बंधा. अब भी नहीं बंधूगा. विभूति कोई एक्स्ट्रा आॅर्डिनरी किरदार नहीं है. आम लोगों के बीच का किरदार है. इसलिए अधिक सहज भी लगता है. और इस किरदार को निभाना कठिन इसलिए है कि एफर्टलेस कॉमेडी कठिन होती है. और मैं स्पॉनटेनियस एक्टर हूं . थियेटर से जुड़ा रहा हूं हमेशा से. लेकिन फिर भी स्पॉनटीनिटी देने की कोशिश करता हूं. वही शो की खूबी है. किरदार की भी. इस किरदार के साथ सबसे बड़ी चुनौती है कि किस तरह हर दिन दर्शकों को मनोरंजन दें. वे बोर न हो. वरना, आज तो विकल्प बहुत हैं. हमें अपने किरदार में पोटेनशियल बरकरार रखना होगा. हर दिन बेस्ट देना होगा.तभी टिके रहेंगे.
आपने टेलीविजन और फिल्मी दुनिया में एक लंबा सफर तय किया है. पीछे मुड़ कर देखते हैं तो कैसा लगता है?
मैं संतुष्ट हूं. मुझे याद है, जब मेरे पास काम नहीं था और मैं जिम जाता था. खुद को फिट रखने की कोशिश करता था. तो उस वक्त लोग बोलते थे कि काम नहीं है, इसलिए यह सब कर रहा. लेकिन मेरा मानना था कि एक्टर को सदैव तैयार रहना चाहिए. कभी भी किसी रोल के लिए बुलावा आ सकता है. सो, मैंने हमेशा खुद पर ध्यान दिया है. खुदा ने आपको बेहतरीन जिंदगी और शरीर दिया है. उसकी खिदमत क्यों न की जाये. सो, मैं अपने खाने-पीने पर भी पूरी निगरानी रखता हूं. मां की बातों पर चलता हूं कि पेट से ही बीमारियों की शुरुआत होती है. यह सब बातें इसलिए कि पिछले लंबे समय से मैंने कोशिश की है कि मैं खुद को फिट रखूं, क्योंकि एक एक्टर की यह डिमांड है. मैं थियेटर लगातार करता रहा. तो मेरे अंदर की भूख शांत होती रही. हर तरह के किरदार निभाये हैं मैंने. और मैं अपने काम से कभी बोर नहीं होता. सो, बहुत एंजॉय करता रहा हूं अपने करियर को. इसलिए खुश भी हूं. सच कहूं तो मैं अपनी तारीफ को बहुत गंभीरता से नहीं लेता. लेकिन काम को लेता हूं. 
टेलीविजन के बदलते दौर को किस तरह देखते हैं?
मुझे लगता है कि काफी अच्छे बदलाव हुए हैं. हां, मगर यह कहूंगा कि नये नये कांसेप्ट पर काम होना चाहिए,. यह नहीं कि कोई एक शो हिट हो जाये तो उसी ढर्रे पर अगले शोज भी बने. फिर परेशानी होगी.

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