20130204

जिंदगी में दोस्ती की खास अहमियत: अभिषेक



अभिषेक कपूर की पहली फिल्म थी आर्यन. लेकिन उन्हें लोकप्रियता मिली फिल्म रॉक आॅन से. अब रॉक आॅन के बाद अभिषेक कपूर अपनी नयी फिल्म काय पो छे के साथ निर्देशन के लिए तैयार हैं. काय पो छे...चेतन भगत की किताब 3 मिस्टेक्स आॅफ माइ लाइफ पर आधारित है और अभिषेक इस फिल्म को लेकर बेहद रोमांचित हैं

अ भिषेक कपूर ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत अभिनय से की थी. लेकिन वे इसमें संतुष्ट नहीं रहे और उन्होंने अपनी राह बदली. राह बदलने का यह फायदा हुआ कि वे बतौर निर्देशक युवाओं के पसंदीदा निर्देशकों में से एक बन गये हैं. जल्द ही उनकी फिल्म काय पोछे रिलीज हो रही है और दर्शकों को इस फिल्म का इंतजार है.
त्र काय पो छे बनाने का ख्याल कैसे आया?
मैंने कई सालों पहले ही चेतन भगत का उपन्यास पढ़ा था. 3 मिस्टेक्स आॅफ माइ लाइफ़ . उस वक्त मैंने 2 स्टेट्स भी पढ़ी थी और चेतन की इच्छा थी कि मैं इस पर फिल्म बनाऊं. लेकिन मेरी इच्छा हमेशा से 3 मिस्टेक्स को लेकर ही थी. क्योंकि इस कहानी में प्यार दोस्ती मोहब्बत, लड़ाई. युवा लोगों के सपने सबकुछ है. सो, मुझे लगा कि मैं इस पर अच्छे तरीके से फिल्म बना सकता हूं. चूंकि मेरी जिंदगी में भी दोस्ती की खास अहमियत है और मुझे युवाओं पर फिल्में बनाने में अच्छा लगता है.
त्रआपकी फिल्म रॉक आॅन काफी कामयाब रही थी. लेकिन इसके बाद आपने एक लंबी चुप्पी साध ली. फिर लंबे अंतराल के बाद आ रही है आपकी फिल्म. इसकी कोई खास वजह?
नहीं कोई खास वजह नहीं है. इस फिल्म पर भी मैंने काफी पहले से काम शुरू कर दिया. अब जबकि यह थोड़ी अलग तरह की फिल्म है तो निश्चित तौर पर फिल्म बनाने में वक्त तो लगता है. इस फिल्म की स्क्रिप्ट पर मैंने काफी काम किया है. काफी समय दिया है. कई ड्राफ्ट लिखे. कई पसंद आये कई नहीं.
त्र इस बार आपने सारे नये चेहरों को लिया है?
हां, जिस वक्त फिल्म की कास्टिंग हो रही थी उस वक्त राजकुमार की कोई फिल्म नहीं आयी थी. राजकुमार यादव भी नये थे, सुशांत सिंह भी नये थे. पहले मुझे लगा था कि नये चेहरे हैं. पता नहीं कैसा काम करेंगे. लेकिन मेरे कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने यकीन के साथ कहा था कि मेरी कहानी के लिए यही सारे किरदार ही महत्वपूर्ण है और यही फिट बैठेंगे. मुझे खुशी है कि मैं नये चेहरों को मौके दे रहा हूं.
त्र इन दिनों बॉलीवुड में नये चेहरों को लगातार मौके मिल रहे हैं. इस पर आपका नजरिया?
क्या वाकई? मैं नहीं मानता. मुझे तो लगता है कि और भी फिल्में बननी चाहिए और नये चेहरों को मौके मिलने चाहिए. लेकिन बॉलीवुड में अभी भी केवल कुछ स्टार्स ही हैं. सारी फिल्में उनपर ही घूम फिर कर आती हैं. जबकि नये चेहरों की इंडस्ट्री को जरूरत है. नयी कहानियों की जरूरत है. मुझे नये लोगों के साथ काम करके बेहद मजा आया और मैं मानता हूं कि नये चेहरे ज्यादा अच्छी तरह से काम करते हैं. और इस बात से स्पष्ट है कि मेरा काम बेहतरीन तरीके से हुआ है.
त्र फिल्म की शूटिंग आपने गुजरात में की है?
हां. मेरी कहानी का अहम हिस्सा है गुजरात. सो, मैं नहीं चाहता था कि मैं सेट तैयार करवाऊं. मैं चाहता था कि मैं रियल फ्लेवर दूं. सो, मैंने वहां शूटिंग की है. जैसा कि आप देख रहे हैं कि फिल्म का शीर्षक ही वहां से है. इसका सीधा मतलब है कि फिल्म में गुजरात का टच तो होगा ही.
त्र फिल्म स्पोर्ट्स को अधिक तवज्जो दे रही है?
नहीं, यह सिर्फ स्पोर्ट्स की कहानी है. स्पोर्ट्स तो बहाना है. फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गयी है कैसे रिश्तों के बीच दोस्ती और सपनों में सामंजस्य बिठाने की कोशिश की गयी है.
त्र फिल्म का शीर्षक कैसे जेहन में आया.
काय पो छे का मतलब है जब हम पतंग उड़ाते हैं तो कैसे किसी की पेंच काटने पर हम चिल्लाते हैं...काय पो छे. फिल्म में इस शीर्षक की सार्थकता इस लिहाज से है कि तीन दोस्तों की जिंदगी किस तरह बदलती है. वे आपको फिल्म देखने के बाद स्पष्ट हो जायेगा.
त्र आप अभिनय को मिस नहीं करते
ंनहीं, अब तो बिल्कुल नहीं करता. क्योंकि मुझे लगता है कि निर्देशन ही मेरे लिए परफेक्ट फील्ड था. जरूरी नहीं कि हर इंसान सबकुछ करे. वैस ेएक्टिंग से अधिक निर्देशन का क्षेत्र दिलचस्प है. मजा आ रहा है. नये लोगों से सीखने का मौका मिलता है. सिखाने का मौका मिलता है. तो खुश हूं कि मैंने फील्ड चेंज की.

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