मनोज बाजपेयी को हाल ही में एक अंतरराष्टÑीय फिल्म के आॅफर मिले हैं. खुद मनोज इस बात से काफी खुश हैं. अनिल कपूर, इरफान खान, अनुपम खेर जैसे कलाकारों के बाद अब मनोज बाजपेयी को भी विदेशी फिल्मों के आॅफर मिल रहे हैं. मनोज को यह आॅफर उनकी फिल्म गैंग्स आॅफ वासेपुर की वजह से मिल रही है. चूंकि गैंग्स का प्रीमियर कान महोत्सव में किया गया था और फिल्म में उनके सरदार खान वाली दमदार भूमिका को दर्शकों ने काफी पसंद किया है. यही वजह है कि अब उन्हें नये आॅफर भी मिल रहे हैं. यह िहंदी सिने जगत के लिए अच्छी बात है कि यहां के कलाकारों को न सिर्फ बाहरी निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिल रहा है, बल्कि वे सारी फिल्में आॅस्कर व कई पुरस्कार समारोह में नामांकित हो रही हैं. अनुपम खेर की फिल्म सिल्वर लिविंग प्लेबुक को आॅस्कर में आठ नॉमिनेशन मिले हैं. इससे पहले इरफान खान की फिल्म स्लमडॉग को भी अवार्ड मिले थे. इरफान की हालिया रिलीज फिल्म लाइ आॅफ पाइ को भी नॉमिनेशन मिले हैं. लेकिन इसके बावजूद हिंदी फिल्मों में अब भी इन कलाकारों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया है. आज भी ये कलाकार सुपरस्टार की पंक्ति में शामिल नहीं होते.मनोज बाजपेयी, इरफान खान कई अरसे से फिल्मी दुनिया में सक्रिय हैं. नवाजुद्दीन सिद्दकी जिन्हें इस वर्ष के लगभग सभी अवार्ड मिल रहे हैं. वे भी लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे. लेकिन उन्हें पहचान अब जाकर मिली है. इससे स्पष्ट है कि अब भी हिंदी सिनेमा में प्रतिभाओं की पहचान सही तरीके से नहीं की जा रही है. जबकि हिंदी सिने जगत में बेहतरीन कलाकारों की भरमार है. पंकज कपूर को हाल ही में उनके किरदार मंडोला के लिए काफी सराहना मिली. इससे पहले उन्होंने विशाल की ही फिल्म ब्लू अंब्रैला में केंद्र भूमिका निभाई थी. पंकज कपूर भी लंबे समय से हिंदी सिने जगत में हैं. लेकिन अब भी उन्हें वह पहचान नहीं मिली. वे किरदार नहीं मिले, जिसमें वे अपनी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल करें. फिल्म सत्या के बाद ही मनोज ने खुद को साबित कर दिया था. लेकिन इसके बाद उन्हें लंबे अरसे के बाद सरदार खान जैसा किरदार मिला. दरअसल, हकीकत यह है कि हिंदी फिल्मों में ऐसी कहानियां ही कम बनती हैं जो कलाकारों को प्राथमिकता देकर बनाई जाये. बॉलीवुड में अब भी सुपरस्टार्स का ही जलवा है और आगे भी यह बरकरार ही रहेगा. जबकि ऐसी फिल्मों की भी जरूरत है जो कलाकारों को प्राथमिकता दे.
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20130204
किरदारों से वंचित कलाकार
मनोज बाजपेयी को हाल ही में एक अंतरराष्टÑीय फिल्म के आॅफर मिले हैं. खुद मनोज इस बात से काफी खुश हैं. अनिल कपूर, इरफान खान, अनुपम खेर जैसे कलाकारों के बाद अब मनोज बाजपेयी को भी विदेशी फिल्मों के आॅफर मिल रहे हैं. मनोज को यह आॅफर उनकी फिल्म गैंग्स आॅफ वासेपुर की वजह से मिल रही है. चूंकि गैंग्स का प्रीमियर कान महोत्सव में किया गया था और फिल्म में उनके सरदार खान वाली दमदार भूमिका को दर्शकों ने काफी पसंद किया है. यही वजह है कि अब उन्हें नये आॅफर भी मिल रहे हैं. यह िहंदी सिने जगत के लिए अच्छी बात है कि यहां के कलाकारों को न सिर्फ बाहरी निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिल रहा है, बल्कि वे सारी फिल्में आॅस्कर व कई पुरस्कार समारोह में नामांकित हो रही हैं. अनुपम खेर की फिल्म सिल्वर लिविंग प्लेबुक को आॅस्कर में आठ नॉमिनेशन मिले हैं. इससे पहले इरफान खान की फिल्म स्लमडॉग को भी अवार्ड मिले थे. इरफान की हालिया रिलीज फिल्म लाइ आॅफ पाइ को भी नॉमिनेशन मिले हैं. लेकिन इसके बावजूद हिंदी फिल्मों में अब भी इन कलाकारों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया है. आज भी ये कलाकार सुपरस्टार की पंक्ति में शामिल नहीं होते.मनोज बाजपेयी, इरफान खान कई अरसे से फिल्मी दुनिया में सक्रिय हैं. नवाजुद्दीन सिद्दकी जिन्हें इस वर्ष के लगभग सभी अवार्ड मिल रहे हैं. वे भी लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे. लेकिन उन्हें पहचान अब जाकर मिली है. इससे स्पष्ट है कि अब भी हिंदी सिनेमा में प्रतिभाओं की पहचान सही तरीके से नहीं की जा रही है. जबकि हिंदी सिने जगत में बेहतरीन कलाकारों की भरमार है. पंकज कपूर को हाल ही में उनके किरदार मंडोला के लिए काफी सराहना मिली. इससे पहले उन्होंने विशाल की ही फिल्म ब्लू अंब्रैला में केंद्र भूमिका निभाई थी. पंकज कपूर भी लंबे समय से हिंदी सिने जगत में हैं. लेकिन अब भी उन्हें वह पहचान नहीं मिली. वे किरदार नहीं मिले, जिसमें वे अपनी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल करें. फिल्म सत्या के बाद ही मनोज ने खुद को साबित कर दिया था. लेकिन इसके बाद उन्हें लंबे अरसे के बाद सरदार खान जैसा किरदार मिला. दरअसल, हकीकत यह है कि हिंदी फिल्मों में ऐसी कहानियां ही कम बनती हैं जो कलाकारों को प्राथमिकता देकर बनाई जाये. बॉलीवुड में अब भी सुपरस्टार्स का ही जलवा है और आगे भी यह बरकरार ही रहेगा. जबकि ऐसी फिल्मों की भी जरूरत है जो कलाकारों को प्राथमिकता दे.
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