विधु विनोद चोपड़ा को पहली बार हॉलीवुड की किसी फीचर फिल्म को निर्देशित करने का मौका मिला है. विधु ब्रोकेन हॉरसेस नामक एक फिल्म का निर्देश्न कर रहे हैं. विधु ने दरअसल अपनी फिल्ममेकिंग की पढ़ाई लांस एंजिल्स से पूरी की थी. उस वक्त उन्होंने 20 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी और वह आॅस्कर के लिए मनोनित हुई थी. इससे पहले शेखर कपूर ने हॉलीवुड के लिए फिल्म क्वीन एलिजाबेथ बनाई थी और फिल्म काफी सफल रही थी. आॅस्कर में भी इस फिल्म को बेस्ट कॉस्टयूम डिजाइनर के लिए अवार्ड मिला था. विधु की यह पारी हिंदी सिनेमा के निर्देशकों के लिए एक दूसरी पारी की शुरुआत है. चूंकि हिंदी सिनेमा की यह विडंबना है कि यहां दर्जनभर अच्छे निर्देशक हैं. लेकिन उन्हें ऐसे मौके नहीं मिलते. ऐसे में अगर उन्हें ऐसे मौके मिल रहे हैं या फिर वे ऐसे मौकों को स्वीकार रहे हैं तो यह एक बेहतरीन शुरुआत है. हालांकि कई सालों पहले जब दादा साहेब फाल्के को विदेश में वहां के फिल्मी निर्माताओं ने यही कहा था कि वह यही रह कर फिल्में बनायें तो उन्होंने यही कहा था कि अगर वे वहां रह जायेंगे तो फिर भारत में फिल्म की फैक्ट्री शुरू कैसे होगी. उस वक्त दादा फाल्के अपनी सोच में बिल्कुल सही थे. लेकिन आज जब हिंदी सिनेमा ने 100 साल पूरे कर लिये हैं और कई कीर्तिमान स्थापित कर लिया है तो इस राह में भी अब निर्देशकों को आगे बढ़ना चाहिए. क्यों केवल अंगरेजी व हॉलीवुड फिल्मों की नकल में हिंदी सिने जगत सारा वक्त बर्बाद कर रहा है. जरूरत तो है कि विधु और शेखर की तरह ही उस तरह की सोच की फिल्में बनाने की, जो हॉलीवुड में बनती हैं और वही जाकर बनाई जाये. निश्चित तौर पर इससे हॉलीवुड का बॉलीवुड के प्रति बर्ताव व नजरिया तो बदलेगा ही. साथ ही वे भारत को केवल अपनी फिल्मों के प्रोमोशन व आय के लिए महज बाजार मात्र नहीं समझेंगे. सो, यह बेहद महत्वपूर्ण है कि विधु के इस पहल को सराहना मिले. अगह हिंदी सिने जगत के निर्देशक हॉलीवुड के लिए फिल्में बनाते हैं तो निश्चित तौर पर वे वहां की सिनेमा की संस्कृति, वहां होने वाले प्रयोग, वहां के ट्रेंड, माहौल, कमियां, खूबियां तकनीक से भी अवगत होंगे. फिर उस लिहाज से वे हिंदी फिल्मों में भी नये प्रयोग कर सकते हैं. हिंदी सिनेमा अपनी क्रियेटिविटी में हॉलीवुड से आगे हैं. फिलवक्त उसे जरूरत है तो खुद की तकनीक सुधारने की. और यह तभी संभव है जब हॉलीवुड और बॉलीवुड के बीच फिल्मी संस्कृति का विकास हो.
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20130204
टिकट टू हॉलीवुड
विधु विनोद चोपड़ा को पहली बार हॉलीवुड की किसी फीचर फिल्म को निर्देशित करने का मौका मिला है. विधु ब्रोकेन हॉरसेस नामक एक फिल्म का निर्देश्न कर रहे हैं. विधु ने दरअसल अपनी फिल्ममेकिंग की पढ़ाई लांस एंजिल्स से पूरी की थी. उस वक्त उन्होंने 20 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी और वह आॅस्कर के लिए मनोनित हुई थी. इससे पहले शेखर कपूर ने हॉलीवुड के लिए फिल्म क्वीन एलिजाबेथ बनाई थी और फिल्म काफी सफल रही थी. आॅस्कर में भी इस फिल्म को बेस्ट कॉस्टयूम डिजाइनर के लिए अवार्ड मिला था. विधु की यह पारी हिंदी सिनेमा के निर्देशकों के लिए एक दूसरी पारी की शुरुआत है. चूंकि हिंदी सिनेमा की यह विडंबना है कि यहां दर्जनभर अच्छे निर्देशक हैं. लेकिन उन्हें ऐसे मौके नहीं मिलते. ऐसे में अगर उन्हें ऐसे मौके मिल रहे हैं या फिर वे ऐसे मौकों को स्वीकार रहे हैं तो यह एक बेहतरीन शुरुआत है. हालांकि कई सालों पहले जब दादा साहेब फाल्के को विदेश में वहां के फिल्मी निर्माताओं ने यही कहा था कि वह यही रह कर फिल्में बनायें तो उन्होंने यही कहा था कि अगर वे वहां रह जायेंगे तो फिर भारत में फिल्म की फैक्ट्री शुरू कैसे होगी. उस वक्त दादा फाल्के अपनी सोच में बिल्कुल सही थे. लेकिन आज जब हिंदी सिनेमा ने 100 साल पूरे कर लिये हैं और कई कीर्तिमान स्थापित कर लिया है तो इस राह में भी अब निर्देशकों को आगे बढ़ना चाहिए. क्यों केवल अंगरेजी व हॉलीवुड फिल्मों की नकल में हिंदी सिने जगत सारा वक्त बर्बाद कर रहा है. जरूरत तो है कि विधु और शेखर की तरह ही उस तरह की सोच की फिल्में बनाने की, जो हॉलीवुड में बनती हैं और वही जाकर बनाई जाये. निश्चित तौर पर इससे हॉलीवुड का बॉलीवुड के प्रति बर्ताव व नजरिया तो बदलेगा ही. साथ ही वे भारत को केवल अपनी फिल्मों के प्रोमोशन व आय के लिए महज बाजार मात्र नहीं समझेंगे. सो, यह बेहद महत्वपूर्ण है कि विधु के इस पहल को सराहना मिले. अगह हिंदी सिने जगत के निर्देशक हॉलीवुड के लिए फिल्में बनाते हैं तो निश्चित तौर पर वे वहां की सिनेमा की संस्कृति, वहां होने वाले प्रयोग, वहां के ट्रेंड, माहौल, कमियां, खूबियां तकनीक से भी अवगत होंगे. फिर उस लिहाज से वे हिंदी फिल्मों में भी नये प्रयोग कर सकते हैं. हिंदी सिनेमा अपनी क्रियेटिविटी में हॉलीवुड से आगे हैं. फिलवक्त उसे जरूरत है तो खुद की तकनीक सुधारने की. और यह तभी संभव है जब हॉलीवुड और बॉलीवुड के बीच फिल्मी संस्कृति का विकास हो.
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