20160711

हां, स्टारडम खोने से डर किसे नहीं लगता : सलमान खान


सलमान खान फिल्म सुल्तान को अपनी कठिन फिल्मों में से एक इसलिए मानते हैं क्योंकि इस फिल्म में उन्हें शारीरिक रूप से काफी मेहनत तो करनी ही पड़ी है,पहली बार उन्होंने धोबी पछाड़ सीखी है. पेश है अनुप्रिया अनंत से बातचीत के मुख्य अंश

फिल्म को हां कहने की खास वजह क्या रही?
मैं किसी भी फिल्म को हां तभी कहता हूं, अगर मुझे फिल्म का पहला नैरेशन सुन कर मुझे बहुत मजा आता हो. मुझे लगता है कि ऐसी फिल्म करो कि सेट पे जाने का मन करे. यह नहीं कि सेट पर जाऊं और बाद में वहां हर किसी से पूछता रहूं कि पैक अप कब होगा तो वैसी फिल्म में मजा नहीं आता. इस बार फिल्म में मुझसे काफी मेहनत करायी गयी है. इतनी मेहनत मैंने कभी भी नहीं की थी. इस फिल्म में मैं शूटिंग से पहले वर्कआउट करता था. फिर फिल्म की शूटिंग होती थी और फिर लगातार हमलोग रिटेक प्रैक्टिस करते रहते थे. दरअसल, जब अली फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर आये थे, मुझे सुल्तान की एक लाईन में कहानी पसंद आ गयी थी. दबंग में भी कहानी थी. घर की कहानी होगी तब भी हां नहीं करूंगा. जब तक कहानी पसंद न आये. अरबाज को तो मैं हमेशा कहता रहता कि दुरुस्त करो और दुरुस्त करो. मैं अरबाज की फिल्म दबंग 3 का भी हिस्सा रहूंगा.इसलिए मैंने तय किया कि मैं यह फिल्म जरूर करूंगा.
इस उम्र में आप और कौन-कौन सी चीजें सीखना चाहते हैं?
मेरी दुनिया थोड़ी उल्टी चलती है. मैं पहले चीजें कर लेता हूं और फिर सीखता हूं. जैसे मैंने पहले स्विमिंग की और फिर सीखा. मुझे याद है, सात-आठ साल का था. मुझे मेरे कजिन्स ने एक कुएं में फेंक दिया था और फिर मुझे  कहा तैर कर दिखाओ. मैंने कहा स्विमिंग नहीं आती तो सबने कहा. अब सीख जाओगे. मुझे  याद है, वहां एक सांप था,जिसे देख कर मुझे बहुत डर लग रहा था. लेकिन तैरते-तैरते सीख गया. अभी मैं गाना गाना सीखना चाहता हूं. लेकिन गाना सीखने से पहले तो मैं गा चुका हूं. और फिर गाना सीखना चाहता हूं. और मैं सीखूंगा. लोग मुझसे पूछते हैं कि इस फिल्म के लिए हरियाणवी सीखी क्या. मैं साफ कहता हूं कि इतना आसान नहीं है यह सब. मुझसे नहीं होता. आमिर कर लेता है. मेरी तो शूटिंग के बाद ही बैंड बज जाती थी. मैं टूटी फूटी काम चलाऊ, जितनी फिल्म को जरूरत है. उतना ही सीख पाया हूं. मैं फोक्सड काम नहीं कर पाता बहुत ज्यादा.
आपको कभी स्टारडम खोने का डर सताता है?
किस एक्टर को नहीं सताता. हर एक्टर इस बात से तनाव में रहता है. एक दिन उठो और अचानक तुम्हें कोई प्यार करने वाला न मिले. कोई तुम्हें देखना पसंद न करे. डर लगता है कि क्या होगा. मेरे पिताजी हमेशा कहते हैं कि अपना ख्याल रखना जरूरी है, इसलिए उन्होंने कहा कि मुझे अपना ख्याल रखना जरूरी है. मैंने फिर अपनी बॉडी, अपनी फिटनेस पर ध्यान देना शुरू किया. आखिर लोग हॉल में मुझे देखने आते हैं. पैसे खर्च करके. तो वे मेरी भद्दी शक्ल या बॉडी नहीं देखेंगे न, मैं चाहता हूं कि लोग बोले कि अरे देखो 50 का है. लेकिन लगता नहीं है. इसलिए खुद पर मेहनत करता हूं. स्मोकिंग छोड़ी. अल्कोहल छोड़ी. अपना ख्याल रखा है. वरना, अपना तो पत्ता साफ था न.
रईस आपके साथ रिलीज होने वाली थी. लेकिन उसकी रिलीज तारीख आगे बढ़ गयी. इस पर क्या कहना है आपका? 
मेरा मानना है कि इसे इस तरह न लें कि शाहरुख पीछे हटा या सलमान ने शाहरुख को पीछे हटा दिया. दोनों बड़े स्टार हैं और मुझे लगता है कि दो बड़े स्टार्स की फिल्में एक साथ रिलीज नहीं होनी चाहिए. इससे नुकसान होता है. चूंकि दोनों को जितने थियेटर्स चाहिए. उतने थियेटर्स नहीं हैं हमारे यहां. मैं तो बोलता हूं कि थियेटर बनाना बेहद जरूरी है. जितनी फिल्में रिलीज होती हैं. थियेटर्स नहीं होते. फिर निर्माता बेवजह पैसे बढ़ाता है टिकट के. यह सब झोल लगता. दिलवाले और बाजीराव के साथ यही हुआ. सो, सब अलग अलग टाइम पर आयें और सभी की फिल्में कमाई करें. मेरा यही मानना है. 
हॉलीवुड की फिल्मों ने एक के बाद एक हिंदी फिल्मों को पछाड़ा है. इस पर आपकी क्या राय है?
मेरी यही राय है कि हां, यह सोचनीय मुद्दा है. हमें डरना चाहिए. हम सब तो हॉलीवुड की तरह फिल्में बनाना चाहते हैं. लेकिन बना नहीं पाते तो कहीं के नहीं रह जाते. अपने जड़ों और हिंदुस्तानी फिल्में बनाना जरूरी है. हालांकि प्रेम रतन धन पायो जैसी फिल्मों को लोग यही कहते हैं कि वह आउटडेटेड फिल्में हैं. देखी सी लगती है. लेकिन असली सिनेमा वही है, क्योंकि हिंदुस्तानी है. इस फिल्म को विदेशी भारतीयों के बच्चों को पसंद आयी. फैन्स मेल से पता चलता है. इससे पता चलता है कि भारतीय फिल्मों को भारतीय रहना जरूरी है. वरना, हॉलीवुड ने पूरी तरह से धावा बोला है और यह संकेत है. हमारी इंडस्ट्री के लिए दुख की बात है. 
सुल्तान की जिंदगी से खुद कितने प्रभावित हुए हैं?
बहुत प्रभावित हुआ. खास बात यह आकर्षित करती है कि कैसे कोई व्यक्ति बिना किसी सुख सुविधा के आगे बढ़ने का जज्बा रखता है. फिर खुद को खोकर दोबारा अपनी शान को तलाशने और हासिल करने की सोच रखता है. साथ ही फिल्म में अभिनेत्री का जो किरदार, रियल जिंदगी में वैसी महिलाएं होती हैं, क्या जज्बा होता है उनमें, फोक्सड होते. जिंदगी में सिर्फ एक चीज हासिल करना होता. लालची नहीं होते. इन लोगों को देख कर आप आम सोचना शुरू करते हैं. रियलिस्टिक बनते हैं. 

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