बॉलीवुड के लिए वर्ष 2011 खास रहा. बेहतरीन फिल्मों के साथ साथ फिल्मों के माध्यम से कई नये कंसेप्ट पर आधारित फिल्में भी प्रदर्शित हुईं. कई सालों से बच्चों को केंद्र रख कर फिल्में न बनानेवाले निदर्ेशकों का ध्यान भी इस बार बच्चों की कहानियों और उनके किरदारों पर गया. बॉलीवुड के इन नन्हे नये बाल प्रतिभाओं के लिए वाकई यह बाल दिवस खास रहेगा. आगामी बाल दिवस के मद्देनजर बॉलीवुड के कुछ ऐसे ही नन्हे और नये बाल कलाकारों से बातचीत की.
फिल्म स्टैनली के अंत में जब दर्शकों को जानकारी मिलती है कि स्टैनली अनाथ है. उसके माता-पिता नहीं. और वह अपने खड़ूस चाचा की रहमों पर जी रहा है. दर्शकों की आंखों से आंसू छलक जाते हैं. वही दूसरी तरफ चिल्लर पार्टी का जंघिया अपने मस्त अंदाज में महात्मा गांधी की परिभाषा देता है. दर्शक हंसी से लोट पोट हो जाते हैं. और वही फिर जब उनकी निगाहें आइएम कलाम के छोटू पर जाती है, तो वे बच्चे की मासूमियत और पढ़ने की ललक देख कर दंग रह जाते हैं. दरअसल, वर्ष 2011 में हिंदी सिनेमा जगत ने कई नये लोगों का स्वागत किया है. नये कंसेप्ट का स्वागत किया है. यही वजह है कि अन्य वर्षों की अपेक्षा इस बार उपेक्षित कर दिये जानेवाले बच्चे भी अब मुख्यधारा की फिल्मों में लौट आये हैं. निस्संदेह इससे पहले भी हिंदी सिनेमा में बच्चों को ध्यान में रख कर फिल्में बनाई जाती रही हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से एनिमेशन और कार्टून फिल्मों को ही बच्चों तक सीमित कर दिया गया है. किसी केंद्रीय भूमिका में बच्चे कम ही नजर आते थे. लेकिन एक बार फिर से बॉलीवुड ने बच्चों को केंद्र में रख कर बेहतरीन कहानियों का निर्माण करना शुरू कर दिया है. हाल ही में रिलीज हुई भारत की सबसे महंगी हिंदी फिल्म रा.वन में भी बाप-बेटे की कहानी कही गयी है, जिसमें एक गेम प्रोगामर के बेटे का किरदार अरमान ने निभाया है. पहली फिल्म होने के बावजूद वह इस फिल्म में बेहद आत्मविश्वासी नजर आये हैं. तारे जमीन पे फेम दर्शील सफारी ने निस्संदेह अपनी खास पहचान स्थापित कर ली है. लेकिन इस साल रिलीज हुई फिल्म जोकोमैन में उनका काम सराहनीय नहीं रहा. लेकिन हिंदी सिनेमा जगत के निदर्ेशकों को अब इस बात का कोई अफसोस नहीं, चूंकि फिल्म चिल्लर पार्टी से ही लगभग 12 नये बाल कलाकारों की खोज हो चुकी है. पुराने दौर में बच्चों पर कई फिल्में बनाई जाती थीं, जिनमें ब्रह्मचारी, परिचय जैसी फिल्में प्रमुख हैं. इनके अलावा बच्चों की फिल्म मिस्टर इंडिया में बेहद पसंद की गयी थी. हाल की फिल्मों पर गौर करें तो वाकई कुछ बाल कलाकारों ने हिंदी सिनेमा जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज कर ली है. भविष्य में निश्चित तौर पर वे और भी कई फिल्मों में नजर आ सकते हैं. बच्चों के विषयों पर फिल्में बनाने के मुद्दे पर फिल्म स्टैनली का डब्बा के निदर्ेशक अमोल गुप्ते कहते हैं कि भारत में हमने सही तरीके से दर्शकों को तैयार नहीं किया है.दर्शक यह जरूरी नहीं समझते कि उन्हें बच्चों के विषयों पर आधारित फिल्में देखनी चाहिए. वे मल्टीप्लेक्स पर तभी खर्च करेंगे, जब किसी फिल्म में स्टार होगा. वही विकास बहल का कहना है कि अब भी हिंदी में बच्चों पर आधारित फिल्में कम इसलिए बनती हैं. चूंकि सही कंसेप्ट के साथ आप फिल्में लेकर नहीं आते. अगर आयें तो चिल्लर पार्टी की तरह ही सभी फिल्मों को भी पसंद किया जायेगा. विकास मानते हैं कि चिल्लर पार्टी के स्टार तो वे बच्चे ही थे, जिन्होंने खूबसूरती से काम किया और संजीदगी से अपने किरदार को निभाया. विकास का मानना है कि बच्चों पर आधारित फिल्मों में अगर कुछ संदेश भी देना है तो हमें बच्चों के अंदाज में ही बातें कहनी होगी.
1. जंघिया उर्फ नमन जैन
फिल्म चिल्लर पार्टी में जंघिया की भूमिका निभा कर सबके फेवरिट बन चुके नमन मुंबई के लाल बाग में रहते हैं. बेहत हंसमुख स्वभाव के नमन ने कई विज्ञापन फिल्मों में भी काम किया है. बकौल नमन मैंने जब चिल्लर पार्टी के लिए ऑडिशन दिया था. तो थोड़ा डरा हुआ था. लेकिन फिर भी मैंने मजे में कह दिया था. फिर नितेश(फिल्म के निदर्ेशक) ने मुझे ओके कह दिया और मुझे चिल्लर पार्टी मिल गयी. बाद में जब पता चला कि सलमान सर भी हमारे साथ हैं तो मैं बेहद खुश हुआ. लेकिन जब वह मेरे सामने आये तो मैं उन्हें बता ही नहीं पाया कि वह मेरे पसंदीदा हीरो हैं. मुझे शर्म आ गयी थी. लेकिन उन्होंने मुझे बेहद प्यार से कहा कि मैं अच्छी एक्टिंग करता हूं. आगे भी करता रहूं. मुझे अच्छा लगा और अच्छा लगता है. फिल्म चिल्लर पार्टी का वह संवाद मेरा पसंदीदा संवाद है, जहां मैंने महात्मा गांधी की बात की है. जब सभी तारीफ करते हैं. लेकिन मेरी मॉम ने मुझसे कहा है कि एट्टीटयूड नहीं लाने का...अभी मैं छोटा हूं और बहुत कुछ सीखना है, तो मुझे बिल्कुल आराम से काम करना है. मैं कैमरे के सामने जाता हूं तो बहुत एंजॉय करता हूं.लंबे संवाद बोलने में मुझे किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती. मैंने कैडबरी, हीरो होंडा और कई विज्ञापन किये हैं. लेकिन अमिताभ बच्चन सर के साथ वाला विज्ञापन मेरा फेवरिट है. आप जल्द ही मुझे अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग ऑफ वसीपुर में देखेंगे. उस फिल्म में मैं मनोज बाजपेयी के बचपन का किरदार निभा रहा हूं. मुझे अच्छा लगता है, जब सभी कहते हैं कि मेरे एक्सप्रेशंस बेहद अच्छे हैं. मैं चेहरे के हाव भाव बिल्कुल प्राकृतिक रूप से करता हूं. और वही कैमरे पर नैचुरल दिखते हैं.
बाल दिवस पर खास ःबाल दिवस मेरे लिए बेहद खास होता है. मैं इस दिन अपनी बहन के साथ मिल कर बहुत मस्ती करता हूं. सभी कॉलोनी के बच्चे खूब खेलते हैं और मजा आता है.
2. अरमान वर्मा( रा.वन के प्रतीक)
शाहरुख खान की बहुचर्चित फिल्म रा.वन में उनके बेटे का किरदार निभा रहे प्रतीक उर्फ अरमान वर्मा की यह पहली फिल्म है. लेकिन फिल्म में बेहद आत्मविश्वास दिखे हैं और लोगों को उनका अभिनय बेहद पसंद आया है. वे सांताक्रूज के इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ते हैं. उन्होंने कई विज्ञापनों में काम किया है. लेकिन रा.वन उनके लिए बड़ा ब्रेक है. बकौल अरमान मेरी स्कूल की फाउंडर लीना अशर को पता था कि मुझे एक्टिंग का शौक है. वह मेरी मां की दोस्त हैं. उन्होंने ही मुझे रा.वन के कास्टिंग निदर्ेशक शानू से मिलवाया. फिर मैंने ऑडिशन दिया. इसके बाद मैं शाहरुख खान से उनके घर पर मिला. शाहरुख को मैं पसंद आया. उन्होंने हां कह दिया. मुझे एक्टिंग का शौक इसलिए है.चूंकि मुझे नये लोगों से मिलने का मौका मिलता है. और कई नयी चीजें सीखने को मिलती हैं. मैं मानता हूं किसी फिल्म में अभिनय करना बेहद कठिन काम है. चूंकि आपको कई तैयारियां करनी पड़ती है. यह बच्चों का खेल नहीं है. मैंने इस फिल्म के लिए मार्शल आर्ट सीखा. कुछ स्टंट भी सीखे. फिल्म के उस शॉट में मुझे बेहद मजा आया था, जिसमें मैं अपने कमरे से उड़ते हुए सड़क पर आ जाता हूं. सलमान मेरे पसंदीदा अभिनेता में से एक हैं. वैसे मुझे शाहरुख खान के साथ काम करने में बेहद मजा आया. जब उन्हें पता चला कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं तो उन्होंने मुझे कई नयी चीजें सिखायीं. फिल्म की शूटिंग के दौरान जब भी वक्त मिलता मैं पढ़ता था.फिल्म की तरह वास्तविक जिंदगी में भी मुझे विलेन अधिक पसंद आते हैं.
बाल दिवस पर खास ः बाल दिवस पर मैं अपने दोस्तों के साथ पार्टी करना बेहद पसंद करता हूं. इस बार का बाल दिवस खास रहेगा. चूंकि लोगों को मेरा काम पसंद आया है.
3. पार्थो गुप्ते ( स्टैनली का डब्बा के स्टैनली)
फिल्म लेखक व निदर्ेशक अमोल गुप्ते के बेटे पार्थो गुप्ते को अपनी पहली ही फिल्म स्टैनली का डब्बा ने सराहना मिली. हाल ही में उन्हें स्किनजल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट चाइल्ड एक्टर का भी खिताब मिला है. यह अवार्ड विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठित बाल कलाकार पुरस्कारों में से एक है. बकौल पार्थो मैंने कभी सपना नहीं देखा है कि मैं बहुत बड़ा स्टार बन जाऊंगा. मैंने स्टैनली का डब्बा में जो कुछ भी किया है. मैं वैसा ही हूं. लेकिन मुझे खुशी है कि मेरे पापा को और मेरी मां को मेरी वजह से खुशी मिली है. यही मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है. फिलवक्त पढ़ाई पर पूरा ध्यान है. धीरे धीरे मैं अपने मां-पापा से काम सीख रहा हूं. मुझे अपने पापा के साथ काम करके बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. खासतौर से यह कि बारीकी से काम कैसे की जाती है.
बाल दिवस ः दोस्तों के साथ मस्ती और मां मेरी पसंदीदा मिठाई बनाती है.
4. हर्ष मयार ( आइ एम कलाम के छोटू)
फिल्म आइ एम कलाम को न सिर्फ दर्शकों ने बल्कि समीक्षकों से भी बेहद सराहना मिली है. फिल्म में शानदार अभिनय की वजह से वर्ष 2011 का बेस्ट चाइल्ड अवार्ड हर्ष को ही मिला. साथ ही यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सराही जा चुकी है. हर्ष बताते हैं कि वे हमेशा से अभिनय में ही जाना चाहते थे. वे उस वक्त बेहद दुखी हो गये थे, जब उनका चुनाव चिल्लर पार्टी में नहीं हो पाया था. बकौल हर्ष मैं खुशनसीब हूं कि मुझे आइएम कलाम जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला. यह फिल्म बच्चों के कई अहम मुद्दों को दर्शाती है. मेरा हमेशा से सपना रहा है कि मैं अभिनय करूं. और जब राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो खुशी हुई कि वाकई दर्शक मुझे पसंद कर रहे हैं. मेरे पापा एक टेंट हाउस चलाते हैं. और मेरा सपना है कि मैं अपने पापा की मदद करूं. जिस दिन मुझे अवार्ड मिला था. जब हमने पड़ोसियों को बताया तो वे विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे.लेकिन मुझे बेहद खुशी हुई थी. मैं व्यक्तिगत रूप से आमिर खान की तरह काम करना चाहूंगा. आइएम कलाम ने मुझे नयी जिंदगी दी है. मुझे इस फिल्म में मौका अपने ही मोहल्ले में खेलते हुए मिला था. फिल्म के कास्टिंग निदर्ेशक विदु भूषण पांडा ने मुझे वहां देखा. और मुझे बुलाया. और कहा छोटू मिल गया. और बस फिर यही से मेरा कारवां शुरू हो गया. मेरी बस यही ख्वाहिश है कि इतना काम कर लूं कि मेरे मां पापा की जिंदगी में खुशियां ला सकूं.
बाल दिवस ः इस दिन तो मैं मोहल्ले के बच्चे के साथ क्रिकेट खेलना ही पसंद करता हूं.
बच्चों के साथ शूटिंग अधिक सरल है ः विकास बहल, निदर्ेशक
चूंकि बच्चे मासूम होते हैं और उनमें जरा भी एट्टीटयूड या घमंड नहीं होता. वह हद से अधिक ओवर एक्टिंग करने की भी कोशिश नहीं करते. उनकी वह वास्तविकता जब कैमरे पर कैद होती है तो वह खूबसूरती बयां करती है.
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