20111107

मैं सुशील कुमार...



मैं सुशील कुमार. बिहार में मोतिहारी के हनुमान गढ़ी के हेनरी बाजार का एक सामान्य- सा आदमी. अब शायद लोग मुझे पंचकोटि महामनी के विजेता के रूप में जाने. लेकिन मैं तो खुद को अपने गांव का एक आम आदमी ही मानता हूं, जिसने जिंदगी में पैसों की कमी के कारण बहुत कुछ खोया है. लेकिन आज जब वह खुशी मुझे मिली है तो मुझे लगता है कि मैंने कुछ खोया नहीं, शायद ऊपरवाला मुझसे तैयारी करवा रहा था. ताकि मैं यहां पहुंच पाऊं और आज इतनी बड़ी रकम जीत पाऊं. कभी कभी सोचता हूं कि व्यक्ति जिस व्यक्ति जो चाहता है अगर उसी वक्त उसे वह चीज मिल जाये तो जिंदगी कितनी आसान होती. आज मेरे पास 5 करोड़ रुपये हैं. लेकिन एक वक्त था, जब मैंने पैसों की कमी के कारण चाह कर भी दिल्ली के जेएनयू जैसे संस्थान में शिक्षा ग्रहण कर पाने की निराशा झेली थी. करता भी क्या. मेरा परिवार इतना बड़ा था और परिवार में कमानेवाले सिर्फ एक मेरे पिता थे. वे मजदूरी किया करते थे. और हम थे पांच भाई. मैं तीसरे स्थान पर था. पिता अगर मजदूरी करते हों और परिवार पांच भाईयों का है तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि घर का गुजारा कैसे चल पाता होगा. शुरू से ही परिवार में हम सभी भाईयों ने कुछ कुछ कर परिवार की मदद करने की कोशिश की. लेकिन वह भी तब जब हम उम्र में थोड़े बड़े हुए. बचपन में जब बाकी बच्चों के मुख से सुनता कि उनके पास पैसे हैं. मैं भी जिद्द करता. लेकिन मां समझाती. और उस वक्त मैं सिर्फ मन को समझा कर रह जाता था. हां, मेरी जिंदगी में मैंने एक चीज को बहुत अहमियत दी, वह थी पढ़ाई को. शुरू से ही पढ़ाई की तरफ मेरा झुकाव रहा. और उसी ने आज मुझे यहां तक पहुंचा दिया. पढ़ाई करते करते ही मैंने कंप्यूटर ऑपरेटर का काम शुरू किया. चूंकि मेरे बाकी कई दोस्त दिल्ली चले गये थे पढ़ने. वहां हमारे गांव में सभी मानते हैं कि आइपीएस बनने के लिए दिल्ली से अच्छी पढ़ाई और माहौल कहीं नहीं मिलता. सो, मेरी भी लालसा थी. लेकिन घर के हालात देख कर मैं चुप रह गया. कई बार अपने दोस्तों के साथ पढ़ाई करता, क्योंकि किताबें खरीदने के लिए तो पैसे होते नहीं थे. फिर लगा कि अगर घर घर जाकर टयूशन पढ़ाना शुरू कर दूं तो थोड़ी आमदनी हो जायेगी, तो वह भी शुरू किया. आइपीएस बनने का चस्का तब लगा था, जब मैंने अपने गांव में कई लोगों को अपने ही गांव के एक लड़के के बारे में बात करते हुए सुना था. साथ ही जब भी मैं टीवी पर देखता था तो मुझे लगता था आइपीएस तो देश दुनिया के लिए कितना कुछ करते थे. और सबसे अहम अपने परिवार की मुफलिसी को शायद दूर कर पाता. मुझे अपनी जिंदगी में कभी इन बातों का अफसोस नहीं रहा कि मैंने और से कम स्तर के कपड़े पहने या खाना खाया या किसी त्योहार में हमारे यहां औरों के घर से कम पकवान बने, या फिर कई बार राशन के लिए घर में पैसे कम हो जाते थे. कभी उधार ही स्थिति हो जाती थी. उन सभी बातों का मैं रोना नहीं रोना चाहता. बस, एक ही बात की टिश रहती है कि दिल्ली जाकर पढ़ाई पूरी करने का सपना समय पर पूरा नहीं कर पाने का अफसोस रहा. मुझे याद है. जब मैं कॉलेज में था. और फिल्म रब ने बना दी जोड़ी आयी थी, तो लड़कियां मुझे बेहद छेड़ती थी, कहती थी कि मैं शाहरुख खान के किरदार सुरविंदर सहानी जैसा दिखता हूं. वो, मेरी मूंछों की वजह से...तो मैं भी बहुत खुश होता था कि चलो इसी बहाने सही मुझे लोग शाहरुख खान तो समझते हैं. शुरू से मेरी इच्छा थी कि मैं कभी ऐसा कुछ करूं कि अपना नाम अखबार में देख पाऊं. आज हर जगह जब मेरी ही बात हो रही है तो बेहद खुशी हो रही है. वह इंसान जिसने जिंदगी में केवल दो बार जूते पहने हों. पहली बार उसे केबीसी की वजह से फ्लाइट पर चढ़ने का मौका मिला हो और पंच सितारा में अपना वक्त बिताने का मौका मिले तो यह किसी सपने जैसा ही लगता है. मैं जहां रहता हूं, अगर वहां अपने जैसे बच्चों को देखता हूं जो पैसों की कमी के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. तो मैं उनकी मदद करता हूं. आज भी जबकि मैंने 5 करोड़ रुपये जीते हैं. मुझे केवल 25-30 लाख की ही जरूरत है. शेष तो मैं ऐसे बच्चों की पढ़ाई के लिए जरूर खर्च करूंगा. एक स्कूल जरूर खोलूंगा. और साथ ही मैं एक बार अपना सपना पूरा करना चाहता हूं. मैं दिल्ली जाकर पढ़ना चाहता हूं. आज जब कोई मुझसे पूछता है कि क्या मैंने कभी सोचा था कि मैं करोड़पति बन पाऊंगा. तो मैं मन में यही सोचता हूं, कि जिस इंसान ने हमेशा ईकाई, दहाई में जिंदगी बितायी है. जिसके लिए लाख भी बहुत हैं. वह करोड़पति बनने का सपना कैसे देख सकता है. लेकिन खुशी होती है कि मैंने पढ़ाई के लिए जो तपस्या की वह रंग लायी और मुझे केबीसी के कॉल आया. वरना, हमारे घर तो टीवी भी नहीं था. उस वक्त मैं अपनो पड़ोसी के घर यह कार्यक्रम देखने जाता था. मैं पिछले 11 साल से यह शो देख रहा था. और केबीसी के साथ साथ खुद भी इसे खेलता जाता था. कम से कम 50 लाख तक मैं सही तरीके से पहुंच जाता था. तो मुझे लगा कि मैं कर सकता हूं कोशिश. इसी क्रम में मैंने पिछले केबीसी के सीजन से कोशिश शुरू की. और यह मेरा दूसरी कोशिश थी. जिसमें मैं कामयाब हुआ. मुझे 17 अक्तूबर को कॉल आया. जब मुझे पता चला कि मुझे हवाई जहाज से जाना है. मैं फूला नहीं समा रहा था. मेहनत की कमाई से बचे पैसों से मैंने अपने लिए नये कपड़े खरीदे. आखिर अमिताभ बच्चन के सामने बैठना था. जब मैं यहां आया. उनसे पहली बार मिला तो मैंने उनके पैर छू लिये. चूंकि उस वक्त मुझे पता नहीं था कि मैं यहां तक पहुंच पाऊंगा. फिर जब मेरा नाम आगे आया और अमिताभ बच्चन ने मुझे गले लगाया तो मैं फूला नहीं समाया. मैं वहां तक पहुंचा और खेलता गया. वो कहते हैं कितनी शिद्दत से तुम्हें पाने की कोशिश की है कि जर्रे जर्रे ने मिलाने की साजिश की है. कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ. जैकपॉट सवाल मेरे सिविल सर्विस से संबंधित ही थे. सो, मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया. जब अमिताभ बच्चन ने मुझे बताया कि मैंने पांच करोड़ जीत लिया. मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैंने वहां पानी के गिलास को खुद पर डाल लिया कि कहीं कोई सपना तो नहीं देख रहा. एपिसोड की समाप्ति के बाद मुझे अमिताभ जी ने एक अभिभावक की तरह समझाया कि जिंदगी में आपने बहुत मुफलिसी देखी है. अब जब आपको धन मिला है तो बिल्कुल सोच समझ कर सही जगह पर ही निवेश करें और खूब तरक्की करें और अपने सपने को पूरा करें. उन्होंने मुझे कहा कि खुशी होती है. जब बिहार झारखंड जैसे राज्यों से ऐसे होनहार आते हैं. उनके यह अल्फाज सुनकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा था कि वाकई मैंने अपने राज्य का नाम ऊंचा किया है. उस राज्य का नाम. जिसकी भाषा को लेकर लोग बेहद मजाक उड़ाते थे. खुद मेरी बिहारी भाषा का लोग कितना मजाक उड़ाते थे. लेकिन हम बस ऐतने जान तानि मेहनत के फल नागा जाला... हमारे मेहनत रंग लाईल. और एकरा से बेसी और का कहीं... सभी के मुंह बंद होई, जे हमार मजाक उड़ावत रहलन. आज सब केहू हाथ मिलावे के चाहत बा. खैर...कामयाबी मिलल बा तो अपन दम पर. बात के सबसे अधिक खुशी रही कि केकरो एहसान चुकावे के पड़ी...लेकिन मैंने सपने में नहीं सोचा था कि केबीसी में मेरी यह दूसरी कोशिश मेरी जिंदगी बदल देगी. चार महीने पहले मेरी शादी हुई है. मैं खुश हूं कि अपनी पत्नी और अपने पूरे परिवार. खासतौर से माता-पिता के लिए सबकुछ कर पाऊंगा. और उन तमाम लोगों को जवाब दे पाऊंगा. जो मेरा मजाक उड़ाया करते थे. मुझे सामान्य सा ऑपरेटर समझते थे. मेरे माता पिता को कहते कि यह लड़का किताबी कीड़ा बन चुका है. लेकिन मैं बताना चाहूंगा कि प्रभात खबर जैसे हिंदी अखबार के संपादकीय से भी मुझे बहुत सारी जानकारी मिलती रही है. करोड़पति का खेल जीतने में एक प्रश्न ऐसा भी आया था, जिसकी जानकारी मुझे पहली बार इसी अखबार के संपादकीय से मिली थी. मैं हिंदीभाषी हूं और क्लिष्ठ शब्द नहीं समझ पाता. लेकिन इसके बावजूद प्रभात खबर की सरल हिंदी ने मेरे सामान्य ज्ञान को बढ़ाने में मदद की. आज मैं मानता हूं कि दुनिया में सब साथ छोड़ दे. लेकिन आपकी शिक्षा आपका साथ कभी नहीं छोड़ती. मैं नियमित रूप से प्रतियोगिता संबंधी किताबें पढ़ता रहा. और आज उसका परिणाम मिला. अब मैं मानने लगा हूं कि जीवन में संघर्ष करो, तो फल जरूर मिलता है और उसका फल मीठा ही होता है.

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