20111103

दर्जी हमारे दीवाली के कपड़े लेकर भाग गया था ः आशा भोंसले



हम सभी भाई बहनों ने अपनी जिंदगी में दीवाली का त्योहार खुशियों के साथ कई सालों बाद मनाया था. चूंकि शुरुआती दौर से ही हमारे परिवार ने हमेशा मुफलिसी झेली. मेरी बड़ी दी लता ने हमेशा हम भाई बहनों के लिए यह कोशिश की, कि वह दीवाली में हमें खुश रख सकें. मुझे याद है. जब भी दीवाली आती थी, वह हम सभी को मनोबल देती कि अगले साल निश्चित तौर पर हम सभी की दीवाली बेहद धूमधाम से मनेगी. लेकिन हर बार, खुशियां आते आते रह जाती. मुझे शुरुआती दौर से ही खासतौर से दीवाली में नये कपड़े पहनने का शौक रहा है. तो दीदी हमेशा कहती कि आशा, तू चिंता मत कर.अगले साल तक स्थिति ऐसी हो जायेगी कि हम सही तरीके से दीवाली मना सके. तूझे तेरी पसंद की ड्रेस दूंगी. हम सभी ने इंतजार किया. अगले साल की दीवाली आयी भी. लता दीदी ने पूरे साल भर पैसे इक्ट्ठे कर नये कपड़े के लिए यूं ही थान से जाकर कपड़े खरीदे. काफी शिद्दत और प्यार से उन्होंने हम सभी भाई बहनों के लिए कपड़े खरीदे. हमने खुशी खुशी उसे लिया और फिर हम अपने पुराने दर्जी के पास उसे देने गये. मुझे याद है मैंने गुलाबी रंग की सलवार कमीज का ऑर्डर दिया था. दीदी ने पीले रंग की और भाई के लिए हमने लाइनिंग वाले कमीज के कपड़े लिये थे. खुशी खुशी हम सभी भाई बहनों ने जाकर अपना नाप दर्जी को दे दिया. दर्जी ने कहा चार दिनों बाद आकर ले जायें. लेकिन यह क्या. इस बार दीवाली की खुशियां हमारे नसीब नहीं थी. वह दर्जी हमारे कपड़े ही लेकर भाग गया. हम चार दिन बाद जब उस दुकान पर पहुंचे. तो ताला लगा मिला. लोगों ने बताया कि वह दर्जी बेहद धोखेबाज था. वह सभी ग्राहकों के कपड़े लेकर भाग गया. आज भी वह दिन याद करती हूं तो आंसू जाते हैं. चूंकि नये कपड़ों के रूप में जो तोहफा दीदी ने दिया था. उन्होंने उसके लिए पैसे बहुत शिद्दत से और मेहनत से जोड़ जोड़ कर इक्ट्ठा किया था. लेकिन दीदी ने उस दिन भी अफसोस जाहिर नहीं होने दिया था. उन्होंने सबको खिलखिलाते हुए कहा, कोई बात नहीं. हम दूसरी ले लेंगे. दीदी ने आज तक हमें यह बात नहीं बतायी कि दोबारा उन्होंने कैसे कपड़े खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम किया. पूछने पर बस यही कहा कि तुमलोगों के चेहरे पर मुस्कान की कीमत है मेरी नजर में. इन पैसों की. फिर हम सबने मिल कर खूब फुलझड़ियां जलाई थीं. और दीये जलायें. आज भी मैं भगवान का शुक्रगुजार करती हूं कि हमें दीदी जैसी बड़ी बहन मिली, जिसने हमें कभी भी किसी त्योहार में दुखी नहीं होने दिया. हमेशा हंसते मुस्कुराते रहने की वजह देती रही. भले ही आज हम सभी अलग अलग रहते हों. लेकिन दीवाली में कोशिश यही होती है कि हम सभी इक्ट्ठे होकर दीदी का आशीष लेने अवश्य जायें.

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