जग जीतनेवाले जगजीत सिंह का जाना...
25 अप्रेल, 2011 को दिल्ली के अशोका होटल में फिल्म गांधी टू हिटलर की म्यूजिक लांच के दौरान उनसे पहली और आखिरी मुलाकात हुई. उन्होंने आखिरी बार इसी फिल्म में अपनी आवाज दी. गीत के बोल थे...हर ओर तबाही का मंजर है... फिल्म का म्यूजिक उन्होंने ही लांच किया. वे बेहद हड़बड़ी में थे. मीडिया या पत्रकारों से बातचीत करने में उन्होंने अधिक रुचि नहीं दिखाई थी. इसके बावजूद कुछ मिनटों के लिए ही सही म्यूजिक लांच के बाद उनसे बातचीत करने का सुनहरा अवसर प्राप्त मिला. मन में यही उत्सुकता थी कि किसी ऐसी फिल्म जिसके निदर्ेशक बिल्कुल नये हैं. उनकी फिल्म में उन्होंने अपनी आवाज दी, कुछ खास वजह? उन्होंने बड़ी सादगी से इस प्रश्न का जवाब दिया. बेटा, देखिए ,संगीत में कुछ भी छोटा या बड़ा या कम ज्यादा नहीं होता. संगीत बस संगीत होता है. संगीत दिल से आती है. सो, दिल को जो भी अच्छा लगा, गाता रहा हूं. इसलिए इस फिल्म के गीत के लिए भी तैयार हुआ. दूसरी खास बात यह भी थी कि फिल्म एक गंभीर मुद्दे को लेकर बनी है. अब इस तरह की फिल्में बननी बंद हो चुकी हैं. और फिल्म के जो गीत के बोल हैं...वह विश्व शांति के उद्देश्य से तैयार किया गया है. इतनी बातें कर उन्होंने कहा कि शायद इतनी वजह काफी है कि किसी गायक के लिए, अपनी आवाज देने के लिए. उन्होंने वर्तमान सिनेमा, संगीत पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं है. जो बदलाव हो रहे हैं. वह स्वभाविक है. बस दुख इस बात का है कि आत्मा मरती जा रही है. सुननेवालों की भी और सुनानेवालों की भी. बेतरतीब गानें बन रहे हैं और सुननेवाले उस पर आपत्ति भी नहीं जता रहे. फिल्मों में तो धीरे धीरे गजल गायिकी समाप्त ही हो चुकी है. किसी दौर में अच्छा लगता था निदर्ेशक, संगीतकार, गीतकार बैठते थे. यह सोचते थे कि चाहे जो भी हो फिल्म में एक गजल तो रखेंगे ही. अब उनकी जगह आयटम सांग है. अब चाहे जो हो आयटम सांग रखेंगे ही. इस छोटी सी बातचीत को उन्होंने बस यही कहते हुए विराम लगाया और कार में बैठ गये कि मुझे बस एक बात ही याद रखनी है. कलाकार होने के नाते. राज कपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर की. कलाकार की जिंदगी में चाहे कितना भी गम हो, दुख हो. जब परदे पर आना है. लोगों के सामने. तो मुस्कुराते हुए ही आना है. और लौटना है उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देख कर. उनकी यही पंक्तियां दरअसल, उनके पूरे जीवन का सार थी. अपनी इसी बात पर वे आज तक कायम रहे. अपनी आवाज से ही उन्होंने जग को जीता. शायद उनके माता-पिता बचपन में ही इस बात से वाकिफ हो चुके होंगे कि उनका पुत्र जगमोहन एक दिन अपनी गायिकी से न सिर्फ जग को मोह लेगा, बल्कि वह जग पर जीत भी हासिल करेगा. इसलिए वे जगजीत सिंह थे. यानी जग को जीतनेवाले. उनका जाना, गजल की एक खास दौर की तहजीब का जाना है. आज वह हमारे बीच नहीं, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी आवाज के साथ हम सभी की धड़कनों के साथ रहेंगे. जगजीत सिंह पिछले महीने से ही बीमार थे. उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां 10 अक्तूबर को ब्रेन हैंबरेंज की वजह से उनका देहांत हो गया. जगजीत सिंह गजल सम्राट बने. चूंकि उन्होंने गजल गायिकी को एक अलग स्वरूप दिया. सबसे जुदा, सबसे उम्दा.
निदा फाजली, गीतकार, लेखक, शायर
जगजीत का जाना एक खास दोस्त की क्षति है. हमने साथ में बहुत काम किया. कई रचनाएं कीं. खास बात यही थी कि मैं उनसे और वह मुझसे सीखने में हमेशा तत्पर रहते थे. वे संगीत में किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे. वे संगीत को सर्वोपरि मानते थे. यही वजह थी कि उन्होंने अपने स्टूडियो का नाम भी संगीत ही रखा था. वह ईश्वर द्वारा भेजा गया अनमोल रत्न था, जिसने बेटे की मृत्यु के बाद भी अपनी कला को नहीं छोड़ा. उत्साही, नयी प्रेरणा लेनेवाला. और सरल शब्दों के साथ गजल को प्रस्तुत करनेवाला गायक जगजीत ही हो सकता है. उसे प्रकृति से बेहद लगाव था और प्रायः हम दोनों शांत किसी कमरे में बैठने की बजाय पेड़ पौधों के बीच, प्राकृतिक खूबसूरती के बीच बैठ कर बातें किया करते थे. उनकी एक खास बात यह भी थी कि उनकी कोशिश होती थी कि उनके गाये गीतों में जो भी शब्द हों उनका इस्तेमाल इस कदर हो कि श्रोताओं को बिना किसी डिक्शनरी के सार समझ में आ जाये. आप गौर करेंगे. तो यह होता भी रहा. उन्होंने अपने गीतों द्वारा लोगों को रोमांस करना सिखाया. वे जब कांसर्ट करते थे तो क्या बात होती थी. सभी हंसते थे. मुस्कुराते थे. उनकी गायिकी के साथ साथ. मुझे याद है...एक बार मजाक में उन्होंने जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन की जगह धन...गा दिया था जिसे सुन कर वहां बैठे लोगों ने खूब तालियां बजायी.तो वह एक अच्छा परफॉरमर भी था. उसे पता था कि किस तरह दर्शकों का मनोरंजन करना है. उनके द्वारा गाये गीतों में सरफरोश का गीत मुझे अधिक प्रिय है.
नलिन सिंह, गांधी टू हिटलर के लेखक, को-प्रोडयूसर
गांधी टू हिटलर में एक गीत था जो विश्व शांति के लिए था. इसे पल्लवी जी ने लिखा था. गाने लिखने के बाद जब हम सभी के जेहन में यह बात आयी तो हमने यही सोचा कि जगजीत सिंह जैसे गायक इसे गाने के लिए तैयार होंगे. चूंकि हम पहली बार फीचर फिल्म बना रहे थे. हम न्यूकमर्स थे. और जगजीत ठहरे गजल उस्ताद. लेकिन हमें आश्चर्य हुआ. जब वह तैयार भी हो गये और उन्होंने कहा कि अगर यह गीत विश्व शांति के लिए तैयार किया गया है तो मैं इसके लिए कोई पैसे नहीं लूंगा. तय हुआ. मुंबई के स्टूडियो में हम सभी रिकॉर्डिंग करने पहुंचे. वहां उनका एक अलग ही अंदाज निकल कर सामने आया. हमने सोचा था कि वे काफी गंभीर होंगे. लेकिन वह बहुत मजाकिया अंदाज में नजर आये. गाने की रिकॉर्डिंग के बाद उन्होंने कहा कि अगर सही न हुआ हो तो फिर से कर लेंगे. प्रायः कुतर्े पायजामे में नजर आनेवाले जगजीत सिंह उस दिन जींस टी शर्ट में थे. वाकई गांधी टू हिटलर की टीम खुशनसीब है कि जगजीत सिंह जैसे महान गायक के साथ काम करने का अवसर हमें प्राप्त हुआ. खुशी दोगुनी हो गयी थी, जब उन्होंने खुद दिल्ली आकर फिल्म का म्यूजिक लांच भी किया.
जसवींदर नरुला, गायिका
जगजीत अंकल पंजाब से थे. और मैं भी. शायद यही वजह थी कि वह मुझे देखकर बहुत खुश होते थे.मुझे याद है 9 साल की उम्र में पहली बार मुझे उनके साथ स्टेज पर गाने का मौका मिला था. मैं बहुत नर्वस थी. लेकिन उन्होंने अपना हाथ देकर मुझे बगल में बिठाया. और शालीनता से समझाया बिल्कुल परेशान न हो. समझो कि सामने कोई नहीं है. बस सही तरीके से गाओ. उनका वह आशीर्वाद आज भी मेरे साथ है. चूंकि जीवन में वह मेरा पहला परफॉरमेंस था और मेरे मन से डर उन्होंने तो हटाया.
श्याम बेनेगल, निदर्ेशक
जगजीत सिंह की गायिकी से समाज को यही योगदान मिला, कि वे लोग जो केवल यह सोचते थे कि गजल वही सुन सकते हैं, लिख सकते हैं, गा सकते हैं या समझ सकते हैं. जिनका उर्दू भाषा पर कमांड हो. उनके इस भ्रम को जगजीत ने तोड़ा. बेहद सामान्य अंदाज में प्रस्तुति, सरल भाषा, भाव के साथ उन्होंने गायिकी की. और गजल को आम लोगों तक पहुंचाया. बल्कि गजल को आम दर्शकों और भारत के बाहर भी लोकप्रिय बनाने का श्रेय जगजीत सिंह को ही जाता है.
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