20110823

बचपन के इंद्रधनुषी रंग



फिल्म ः चिल्लर पार्टी

कलाकार ः इरफान खान, सनथ मेनन, रोहन ग्रोवर, नमन जैन, अरनव खन्ना, विशेष तिवारी, चिन्मय चंद्रणसुख, वेदांत देसाई, दिविज हांडा, श्रेया शर्मा.

निदर्ेशक ः नितेश तिवारी, विकास बहल

रेटिंग ः 4 स्टार

चिल्लर पार्टी फिल्म का ही एक गीत है. अब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं...फिल्म के गीत के बोल हैं. ये तो मुर्गियों के चुज्जे से निकले...ये तो जलेबियों के टुकड़े हैं...चाशनी से उभरे हैं. टेड़े-मेड़े. लेकिन मीठे भी हैं. फिल्म का यह गीत फिल्म की पूरी कहानी बयां कर देता है. जिस तरह जलेबी वाकई टेढी-मेढी होने के बावजूद मुंह में जाते ही मिठास घोल देती है. कुछ इसी तरह चिल्लर पार्टी की पूरी गैंग भी है. वे सीधे हैं. लेकिन चलने के लिए रास्ता थोड़ा हट कर चुनते हैं. वे गलतियां तो करते हैं. लेकिन अपनी गलती होने पर जल्द ही माफी भी मांग लेते हैं. वे मुर्गियों के चुज्जे की तरह तितर बितर हैं. लेकिन फिर भी खूबसूरत हैं. सौम्य हैं. चिल्लर पार्टी के बच्चों की इससे सटीक व्याख्या और कुछ नहीं हो सकती. फिल्म ने बचपन के खूबसूरत हसीन पलों को दर्शकों के सामने तो रखा ही है. साथ ही यह भी प्रस्तुत करने की कोशिश की है कि उन्हें बच्चा समझ कर आप कुछ भी नहीं कर सकते. वे ईमानदार हैं मासूम हैं तो जानकार भी हैं. आप उन्हें बस लॉलीपॉप देकर नहीं फुसला सकते. साथ ही अगर वह चाहें तो सत्ता पर बैठे शक्तिशाली व्यक्ति को भी बता सकते हैं कि वह क्या हैं, दरअसल, चिल्लर पार्टी फिल्म के रूप में कई मायनों से एक पूरा पैकेज है, जिसमें बचपन की खूबसूरत कहानी है. अभिभावकों का बच्चों के प्रति सही दायित्व है.साथ ही कई अहम मुद्दों पर प्रकाश डालने की भी कोशिश की गयी है. फिल्म में पटकथा के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की गयी है कि वह नेता तभी तक शक्तिशाली है. जब तो उसके पास लोगों का सहयोग है. मतलब लोकतंत्र की सही परिभाषा को दर्शाने की कोशिश की गयी है. इसके साथ ही जिंदगी में एक सच्चे दोस्त का साथ क्या होता है. इसे भी खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है. मीडिया की प्रचलित परिभाषा व उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शकों के समक्ष रखने की कोशिश की गयी है. चिल्लर पार्टी बच्चों के लिए बनाई गयी अन्य फिल्मों से खुद को इसलिए अलग कर पाती है, चूंकि अन्य फिल्मों की तरह इसमें अभिभावकों के खुंखार रवैये को दिखाने की बजाय उन्हें बच्चों का साथ देते हुए दिखाया गया है. बशतर्े कि बच्चे सही हों. फिल्म के किरदारों को बेहद सोच समझ कर तैयार किया गया है. यह फिल्म समाज के वर्तमान स्थिति की वास्तविक छवि प्रस्तुत करती है. जिस तरह समाज में हमेशा शांत रहनेवाला व्यक्ति जब अचानक बोलता है तो वह कमाल कर जाता है. कुछ इसी तरह फिल्म में साइलेंसर के मुख से महत्वपूर्ण समय निकली आवाज पूरी कहानी को मोड़ देती है. फिल्म की कहानी चंदन नगर कॉलोनी की है. कॉलोनी में बच्चों की गैंग है. लेकिन कोई एक दूसरे को उनके वास्तविक नाम से नहीं बुलाते. सभी के अपने नाम हैं. जो उन्हें उनके स्वभाव के मुताबिक दिये गये हैं. जो पढ़ने में तेज है वह इनसाइक्लोपीडिया है, मस्ती करनेवाला जंघिया, जो बिल्कुल शांत रहता है. वह साइलेंसर है. इसी तरह अकरम( चूंकि अच्छी बॉलिंग करता है), सेकेंड हैंड( हमेशा बड़े भाई के कपड़े पहनता है), अफलातून( हर काम में पारंगत) पनौती( जो कहे उसका उल्टा होता) है.अचानक एक फटका अपने कुत्ते ( बीड़ू) को लेकर आता है. वह वहां के लोगों की कार साफ करने की नौकरी करता है. पहले चिल्लर उसे पसंद नहीं करती. फिर उसे टीम में शामिल कर लेती है. फटका भले ही अनपढ़ है, लेकिन उसके पास कई इनोवेटिव आइडिया है. वह अच्छा बॉलर भी है. फिल्म में एक पुरुष जो कि लड़कियों की आवाज में बात करता है. उसे आरजे बनने की सलाह दे देता है. लेकिन अचानक एक दिन कुछ ऐसा होता है. जब सारे बच्चे दोस्ती के लिए कुछ भी करने को तैयार होते हैं. फिल्म में कुछ भी बनावटी दिखाने की कोशिश नहीं कि गयी. मंत्री को गलत सबक सिखाने के लिए बच्चे वही चीजें करते हैं जो वे सुनते या देखते रहे हैं और अपने किताबों के अच्छी पंक्तियों से ही वह इसका जवाब देते हैं. यही वजह है कि फिल्म की ईमानदार कोशिश दर्शकों के सामने आती है. फिल्म में हर बच्चे ने अपना किरदार बखूबी निभाया है. खासतौर से जंघिया के किरदार ने बच्चों का भरपूर मनोरंजन किया है. कह सकते हैं कि बच्चों के विभिन्न रंगों का इंद्रधनुष है यह फिल्म. जहां एक ही फिल्म में लगभग सारे नजर जाते हैं. हिंदी सिनेमा में ऐसी फिल्मों की सख्त जरूरत है. चिल्लर पार्टी अंगूर का वह पेड़ है, जिसके कुछ खट्ठे हैं ,कुछ मीठे. लेकिन फिर भी लाजवाब हैं. निदर्ेशन के रूप में नितेश विकास ने मिल कर बेहतरीन पटकथा, बेहतरीन किरदार, महत्वपूर्ण मुद्दे और बिना तामझाम के एक ईमानदार कोशिश की ै.

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