आशुतोष गोवारिकर जब पहली बार मेरे पास आये. उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट सुनायी. मैंने कहा. कुछ और सोचो यार. लगान जैसी फिल्में नहीं चलतीं. लेकिन आशुतोष अड़े रहे और फिल्म लगान बनी. और उसने न सिर्फ ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की. बल्कि साबित कर दिया कि हिंदी सिनेमा में नये प्रयोगों को भी महत्व मिल सकता है. लगान से जुड़ी कुछ ऐसी ही यादों को तरोताजा करते हुए फिल्म लगान में भुवन का किरदार निभानेवाले व फिल्म के निर्माता आमिर खान ने अनुप्रिया अनंत से लगान के 10 साल पूरे होने पर विस्तार से बातचीत की.
भुवन के किरदार में दर्शकों ने आमिर खान को तहे दिल से स्वीकारा और हिंदी सिनेमा में वह यादगार किरदार बन गया. लेकिन इस फिल्म को बनने में न सिर्फ अधिक वक्त लगा. बल्कि फिल्म के दौरान कई परेशानियां भी आयी. लेकिन जब इतिहास रचा जाता है तो परेशानियां तो आती ही हैं. लगान के साथ भी आयी. हाल ही में फिल्म पीपली लाइव में रिपोर्टर ने मजाकिया अंदाज में कहा था कि पागल हो गया है क्या आमिर कुछ भी बना रहा है. रोज रोज नहीं बनती लगान. सच्चाई भी यही है कि लगान रोज रोज नहीं बनती. खुद आमिर भी ऐसा ही मानते हैं.
आपके सपने को आज 10 साल पूरे हो गये.
नहीं यह दरअसल, सपना मेरा नहीं आशुतोष का था. मैंने बस उसे सच करने की कोशिश की है. मैं बेहद खुश हूं कि आज दस साल पूरे होने के बावजूद आज भी यह फिल्म दर्शकों के जेहन में है और दर्शकों ने भुवन की टीम को स्वीकारा है. मैं मानता हूं कि इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा की दशा दिशा बदली.
लेकिन आप पहले इस फिल्म को बनाने के लिए तैयार नहीं थे. जबकि बाद में आपने ही फिल्म का ब्योरा उठाया.
जी हां बिल्कुल सही बात है कि मैं इस फिल्म को बनाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था. जब आशुतोष मेरे पास आये थे. मैंने उसे साफतौर पर कहा था कि सुनो कुछ और सोचो यार. मैंने उसके साथ पहले भी फिल्म बाजी में काम किया था. जिसमें हम दोनों असफल हुए थे. आशुतोष से मैंने कहा भी कि तुम निर्माता ढूंढो. फिर इस पर बात करेंगे. लेकिन आशुतोष को निर्माता नहीं मिला. मेरे पास दोबारा आये. तो मैंने कहा कि यार, लेकिन आज के दौर में कौन देखेगा क्रिकेट. लोगों को इतनी लंबी और पुराने टाइम पीरियड की फिल्में पसंद नहीं आयेंगी. लेकिन आशुतोष अड़ा है. दोस्त है वह मेरा. मुझे इस बात का इल्म था कि वह बहुत परेशान रहा होगा. और वह था भी.लेकिन मैं रिस्क लेने की स्थिति में नहीं था. मुझे याद है कि निर्माता बनने के शौक की वजह से ही मेरे वालिद ने क्या कुछ नहीं खोया था.
आपने लगान बनने का सारा श्रेय अपनी पहली पत्नी रीना को दिया है हमेशा
मैं आशुतोष को टालते जा रहा था. लेकिन फिर भी वह एक दिन जिद्द पर अड़ा कि नहीं उसे स्क्रिप्ट सुनानी है. वह जब मुझे स्क्रिप्ट सुना रहा था. रीना मेरी जिंदगी में थी उस वक्त. वह चाय बना रही थी. मैं सोफे पे बैठा था. आशु ने सुनाना शुरू किया. रीना आकर साथ में बैठ गयी. हर किरदार को बेहतरीन ढंग से बता रहा था आशु. रीना ध्यान से सुन रही थी. कहना चाहूंगा कि उसने ही मुझे इस फिल्म को बनाने के लिए प्रेरित किया. आशु चला गया तो रीना ने कहा कि मुझे स्क्रिप्ट में खास बात लग रही है.फिल्म बनाते हैं. मैंने रीना की बात मानी. और आज मैं कहूंगा कि लगान बनी, इसका श्रेय रीना को ही है. उसने प्रेरित किया. तो मैंने भी साफतौर पर कहा कि रीना, तुम्हें ही पूरा प्रोडक्शन का खर्च देखना होगा. रीना तैयार हुई. फिल्म की स्क्रिप्ट के बाद सारे कलाकारों का चयन शुरू हुआ. चयन भी हुआ.
शूटिंग गुजरात के कच्छ और भुज में हुई?
हां, यही तो असली कहानी शुरू हुई. चूंकि सारे कलाकार हिंदी सिनेमा के जाने माने कलाकार थे. और हमें मरुस्थल में जाकर शूटिंग करनी थी. यह उनके लिए उतना आसान नहीं था. वहां दूर दूर तक होटल नहीं थे. हमने कैसे भी करके कुछ होटलों का प्रबंध किया. वह होटल नहीं. उसे गेस्टहाउस कह सकते हैं. वहां कलाकारों के रहने का इंतजाम कराया. लेकिन वहां हर दिन उनकी तूतू मैं मैं होती थी. ( हंसते हुए) आखिर वे मुंबईवासी मरुस्थल में जाकर शूटिंग इतना आसान भी नहीं था. फिर भी वे तैयार हुए. धीरे-धीरे तो कई कलाकार पूरी तैयारी में थे कि वह लौट जायेंगे. लेकिन फिर भी आशु ने और मैंने उन्हें समझाया. तैयार हुए. शूटिंग शुरू हुई. दुख होता है अब. जहां हमने इतिहास रचा था लगान बना कर आज वह स्थान अस्तित्व में ही नहीं( भूंकप की वजह से गुजरात का वह स्थान अब अस्तित्व में न रहा)
लगान बनाने में वाकई बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा.
हां, बिल्कुल चूंकि ऐसी फिल्मों में आपकी छोटी सी भूल भी फिल्म को उबाउ बना सकती थी. बजट भी लगातार बढ़ता जा रहा था. लेकिन फिर भी रीना ने कमान संभाल रखी थी. वहां हमने शूटिंग इसलिए तय कर रखी थी कि फिल्म की कहानी के अनुसार उपयुक्त थी वह जगह. साथ ही वहां गांववाले हमें पहचानते भी नहीं थे. आपने गौर किया होगा कि आशुतोष अपनी फिल्मों में खासतौर से भीड़ को बेहतरीन तरीके से दर्शाते हैं. लगान में मैंने उसकी वह परख देखी थी. मुझे याद है कि किस तरह से वह पूरी मेहनत के साथ भीड़ को एकत्रित करता था.
बतौर निर्माता आप इस फिल्म से उभरे. और आज दस साल लगान के साथ आपके प्रोडक्शन के भी दस साल पूरे हो गये.
हां, लगान के लिए हां कहने में वक्त जरूर लगा. मैं बहुत डरा सा था. लेकिन पुराने दौर के निर्माता निदर्ेशकों ने मेरी मदद की. उन्होंने समझाया कि ऐसी फिल्में बनायी जा सकती है. साथ ही जब हिंदी सिनेमा का इतिहास देखता हूं तो ऐसी कई फिल्म बिमल रॉय, राज कपूर और महबूब खान के निदर्ेशन में दिखती है तो लगा कि इस पर काम कर सकता हूं.
अधिकतर लोगों ने इस प्रोजेक्ट को बंद करने की सलाह दी थी आपको?
हां, यह सच है चूंकि वक्त के साथ पैसे भी बहे जा रहे थे. फिल्म के लिए एआर रहमान को मनाना भी आसान नहीं था. मेरे लिए. आशु भी परेशान था. आपको बता दूं कि लगान के संगीत को हमने दो बार रिकॉर्ड किया था. रहमान ने बमुश्किल समय दिया था. इधर पूरी फिल्म की शूटिंग भी हो रही थी. मुझे बड़े से बड़े निर्माता ने कहा, कहां फंस गये हो. प्रोजेक्ट बंद कर दो. करन ने भी कहा. पागल हो गये हो क्या. लेकिन लगान ने विश्वास दिया कि हम प्रयोग कर सकते हैं. मुझे याद है फिल्म देखने के बाद राकेश रोशन और शेखर ने आकर कहा मुझसे भई भुवन कमाल कर दिया तुमने. मुझे उस वक्त बेहद खुशी हुई, क्योंकि मुझे उन्होंने भुवन कह कर बुलाया था. शेखर ने बाद में कहा भी कि क्या फिल्म बना दी है तुमने.आशु दूर खड़ा था. मैंने उसे बुलाया और कहा कि श्रेय इसे जाता है.
भुवन के किरदार के बारे में बताएं.
सोच आशु की थी. भुवन नायक था. क्रिकेट का गेम था. उसके आधार पर लगान की वसूली होनी थी. भुवन के लिए मुझे उसी गांव में जाकर वहां के परिवेश में रह कर जीना पड़ा. फिर इसे मैं जी पाया था.
विदेशी लोगों को शामिल करने में परेशानी हुई होगी.
हां. उस दौर में अधिक विदेशी हिंदी सिनेमा में नजर नहीं आते थे. लेकिन उनके बिना तो हमारी फिल्म पूरी हो ही नहीं सकती थी. मेरे विदेशी पीआर एजेंसी ने मदद की. कई लोगों का ऑडिशन हुआ. खासतौर से प्रीसेंज एलिजा के किरदार पर खासतौर से काम करना था. इसके लिए हमने दो बार ऑडिशन किया था. एक बात और बताता चलूं कि यहां लगातार पानी की तरह पैसे बह रहे थे. दिमाग में डर भी था कि फिल्म कलेक्शन कर पायेगी या नहीं.
आप मानते हैं कि लगान जैसी फिल्में हिंदी सिनेमा के परिदृश्य को बदलने में सफल होती है.
हां, बिल्कुल. मैं मानता हूं कि लगान रोज रोज नहीं बन सकती. लेकिन इस फिल्म ने पीरियड फिल्मों में लोगों की रुचि बढ़ायी है. हालांकि इसके बाद की गयी फिल्म मंगल पांडे ने खास कमाल नहीं किया. लेकिन फिर भी मैं मानता हूं कि लगान जैसी फिल्मों ने साबित किया है कि अगर आपके स्क्रिप्ट के साथ वीजन के साथ काम करें तो आप बिल्कुल सफलता हासिल कर सकते हैं. लगान मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट हैं. लगान की वजह से ही इंडस्ट्री के लोगों ने मुझे बतौर निर्माता के रूप में भी स्वीकारना शुरू किया. मैं लगान की वजह से ही हिम्मती बना. और इसका सारा श्रेय मैं आशुतोष को और रीना को ही देना चाहूंगा.
आज के दौर में क्या प्रासंगिक है लगान?
लगान हमेशा प्रासंगिक रहेगा. वह पीरियड फिल्म थी. उसने एक अहम मुद्दे को उठाया था. दुख था कि वह ऑस्कर तक नहीं पहुंची. लेकिन इससे उसकी एहमियत कम नहीं हो जाती. लगान से मैंने सीखा कि एक ही शेडयूल में फिल्म पूरी करने के क्या फयदे हैं. मैं मानता हूं कि लगान की स्क्रिप्ट, उसकी प्लानिंग ने फिल्म मेकिंग के तरीके में भी बदलाव किया. आशु ने बिल्कुल सही तरीके से न सिर्फ फिल्म बनाई थी. उसने पूरे प्रोडक्शन के तौर तरीकों और मैनेजमेंट का भी पूरा ख्याल रखा था. यह फिल्म आशु की थी. मैं सिर्फ मोहरा मात्र था. लेकिन यह भी सच है कि लगान का सीक्वेल बनाना या इसका रीमेक बनाने की सोच रखना मेरे लिए सिर्फ बचकानी सी बात होगी और कुछ नहीं.
टीम लगान की तरह काम किया था.
यशपाल शर्मा,
लगान में लाखा का किरदार निभाया
लगान से पहले भी कई नाटकों में काम किया था. मेरे लिए जड़ीबुटी का काम लगान ने ही किया है. लेकिन पहचान दिलायी लगान ने ही. एनएसडी के तीन सालों के बाद लगान ने सबसे अधिक नाम मिला है. आज भी मैं इस बात पर फक्र महसूस करता हूं कि मैंने एक माइलस्टोन फिल्म में काम किया है. वहां लगान के साथ साथ एक और चीज बन रही थी वह थी टीम. हम केवल फिल्म में नहीं, अब वास्तविक जिंदगी में भी एक टीम के रूप में एक दूसरे को जानते हैं. हम सभी को वहां हमारे वास्तविक नाम से नहीं. कैरेक्टर के नाम पर बुलाया जाता था. आमिर खान और आशुतोष ने कैप्टन की नैया को पार लगाया है. वन शेडयूल और पूरी टीम के साथ अच्छी फिल्म बनाई जा सकती है. यह लगान ने साबित किया. स्ट्रांग टीम पर बन कर आयी. भुज में पांच महीने तक शूटिंग करना खास रहा. आमिर खान के बारे में हम सोचते थे कि वह बड़े स्टार हैं. वह हमसे बातचीत नहीं करेंगे. लेकिन वह बिल्कुल विपरीत निकले. वे जमीन पर बैठकर प्लास्टिक की कप में चाय पीते थे. सभी को बराबरी का दर्जा किया. स्पॉटब्वॉय से लेकर प्रोडयूसर तक का ध्यान रखा. वह सुझाव भी मांगते थे. खुल कर बात करते थे. आज भी फिल्म देखता हूं तो खुश होता हूं. मुझे खुशी होती है कि मेरे सुझाव पर आधारित कई दृश्य फिल्माये गये हैं. इस बात की मुझे खुशी होती है. मैंने सुझाव दिया था कि फिल्म में वास्तविकता दिखाना है तो गांव के बूढ़े लोगों के क्लोज अप लें जिनके लिए आस भुवन ही है. गेंद को लेकर मैंने कहा था कि गांववालों के लिए गेंद नयी चीज है. तो, वह जब भी उनके हाथ में जायेगा, उसे गौर से देखेंगे ही. तो यह शॉट भी शामिल किया गया था. फिर जब वह जाने लगते हैं देश छोड़ कर. मुड़ कर अपना झंडा उतरते देखते हैं. यह सीन भी मैंने सुझाया था. आशुतोष ने मेरी बात सुनी और फिल्म में उसे शामिल भी किया.यह नहीं भूल सकता. वहां बेहद अनुशासन के साथ काम हुआ था. एक बार आमिर ने 6-7 मिनट की देरी की. गाड़ी उसे छोड़ कर चली आयी थी. आशु ने वाकई फिल्म के साथ अपने बच्चे के पिता की तरह बर्ताव किया था. हम शूटिंग होने के बाद गप्प करते थे. आमिर भी साथ में शामिल होते थे. ताश खेलते थे. तो इधर उधर की बातों पर ध्यान ही नहीं गया. मुझे याद है जब हमें गये थे कड़ाके की ठंड थी, और 5 महीने में धूल भरी आंधियां चलने लगी थी. भयंकर धूप थी. 48 से 49 तक पहुंच जाता था तापमान. लेकिन फिर भी सभी काम करते थे. खासतौर से एके हंगल बीमार होने के बावजूद काम करते रहे थे.यह थी टीम लगान.
एके हंगल, शंभू काका
मैं बेहद बीमार था. लेकिन इसके बावजूद मैं लगान का हिस्सा बनना चाहता था. जिस वक्त आशुतोष मेरे पास आये थे. उस वक्त मैं तैयार तो हो गया.लेकिन वहां जाकर मेरी तबियत बिगड़ती गयी. आशु ने सलाह दी. हम बदलाव कर लेते हैं आप आराम करें. लेकिन मेरी इच्छा थी कि नहीं मुझे काम करना ही है. मैं शॉट देता.फिर आमिर आर आशु मुझे आराम करने देते. मैं मानता हूं कि आशु ने मेरा पूरा ख्याल रखा. मेरे किरदारके साथ पूरा न्याय भी किया था. मेरे लिए शंभू काका का किरदार हमेशा खास रहेगा.
आशुतोश गोवारिकर, निदर्ेशक
लगान से पहले सिर्फ फ्लॉप फिल्मों के निदर्ेशक का ठप्पा लग चुका था. लगान भी एक बड़ी चूक हो सकती थी. लेकिन हिम्मत किया. सबने कहा. पागल हूं. सफल नहीं रहूंगा. आमिर ने विश्वास जताया. आगे बढ़ा. इस स्क्रिप्ट को लेकर कई करीबी दोस्तों के पास गया था. लेकिन सबने ठुकराया. अंततः लगान टीम के साथ बनी. मुसीबतों से दोस्ती सी हो गयी थी. हमने शूटिंग पूरी की और वहां भूकंप आया, लगान के साथ सबकुछ शुरुआती दौर में बुरा ही हो रहा था. सबने कहा फिल्म छोटी करो. बहुत लंबी बन गयी है. मैंने राय हीं मानी. अंततः लगान ने फिल्म में भुवन की टीम की तरह ही जीत दिलायी. खुशी है कि आज लोग आशुतोष गोवारिकर की लगान को अहमियत देते हैं.
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