( चित्रकार व हुसैन के करीबी दोस्तों में से एक )
एमएफ हुसैन मेरे बेहद करीबी रहे हैं. मेरी उनसे पहली मुलाकात एक आर्ट गैलेरी में हुई थी. दोनों के ही करीबी दोस्त ने हमें मिलवाया. एक गैलरी में. उसके बाद हमारा मिलने जुलने का सिलसिला बना रहा. मैं जहां भी रहा. वे वहां आये. कानपुर, मुंबई, दिल्ली हर जगह वे मेरी गैलरी में आते रहे. उन्होंने मेरी चित्रकारी देखी. मुझे कई चीजों को सिखाया. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा भी. हम किसी भी विषय पर घंटों बात करते थे. हाल ही में उनसे बात हुई. उन्होंने कहा कि कृषन यहां लंदन आ जाओ. कुछ बातें करेंगे और पेंटिंग बनायेंगे. मैंने उनसे कहा भी था कि मैं आऊंगा लेकिन वक्त न मिल पाने की वजह से मैं उनसे मिल नहीं पाया.शुरुआती दौर से ही जब से मेरी यह इच्छा हुई कि मुझे चित्रकारी करनी है. मैंने एमएफ हुसैन को अपना आदर्श माना है. इसकी खास वजह यह थी कि एमएफ हुसैन की चित्रकारी में खास भावना थी. भले ही उसे लोग समझ न पायें. लेकिन जिस व्यक्ति ने भी गंभीरता से उनकी चित्रकारी को देखा है. वह उनका मुरीद हो गया है. मुझे याद है वह दौर शायद उनकी पहली या दूसरी पेंटिंग रही होगी वह. एक औरत कुछ चीजें पीस रही हैं बैठ कर सिलवठ( मसाले पीसनेवाला एक पारंपरिक पत्थर से बना सिलवठ) पर. उन्होंने इसकी पेंटिंग की थी. मुझे यह पेंटिंग बहुत पसंद आयी थी और मैंने उसे किसी आर्ट गैलरी से 50 रुपये में खरीदी थी. हाल ही में उस पेंटिंग को मैंने चित्रकार प्रिया खन्ना को दिया. उन्होंने उसे दुरुस्त किया और हाल ही में वह पेंटिंग 30, हजार रुपये में बिकी है. अभी कुछ दिनों पहले ही. मैंने सोच भी रखा था कि मैं उनसे इस बारे में जिक्र करूंगा कि उनकी 50 रुपये की पेंटिंग की कीमत अब 30 हजार हो गयी है.जब मैंने वह पेंटिंग खरीदी थी. उस वक्त वह उतने मशहूर चित्रकार नहीं थे. लेकिन इसके बावजूद मुझे उनकी चित्रकारी ने प्रभावित किया था. उस पेंटिंग को देखने के बाद मुझे यह एहसास हुआ था कि वह कितनी गंभीरता से किसी औरत के कामों को समझते होंगे और वह इस बात का भी ध्यान रखते होंगे कि उनकी बारीकियां क्या हैं. उन बारीकियों को उन्होंने अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की थी. मुझे आज भी याद है कि एक दिन कहा कि चलो तुम्हारे घर चलते हैं और वही बैठ कर बातें करेंगे. वे आये. हमने कई पेंटिंग्स पर चर्चा की. जाते वक्त उनकी निगाह मेरी मेज पर पड़ी. वहां एक किताब रखी थी. कहा, कृषन इसे ले जाता हूं. लौटा दूंगा. लेकिन जिस दिन वे उसे लौटाने आ रहे थे. वे भूलवश वह किताब टैक्सी में भूल आये. उस दिन वे आये. मुझसे मुलाकात की. फिर उनके जाने के बाद मैंने देखा कि उन्होंने एक पेंटिंग रखी थी और पत्र था. पत्र में लिखा था. तुम्हारी किताब मुझसे गुम हो गयी है. मैं इसकी भरपाई नहीं कर सकता. मैं मानता हूं और जानता भी हूं कि किसी भी कलात्मक व्यक्ति के लिए उसकी किताबें उसकी अमानत होती है. लेकिन फिर भी उम्मीद करता हूं कि मुझे क्षमा कर दोगे. एक दोस्त मानकर. इस नाचीज का छोटा सा मामूली सा तोहफा स्वीकार करो. लेकिन यह पेंटिंग मेरी बेहद अजीज है और आज इसे मैं अपने एक अजीज मित्र को दे रहा हूं. मुझे हमेशा हुसैन साहब याद आते रहेंगे. उन्होंने अपनी चित्रकारी व कला के माध्यम से पूरे विश्व में भारत का नाम गौरवा्न्वित किया है. जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता. दुख मुझे तब हुआ था कि जब उनके द्वारा बनाई गयी पेंटिंग विवादों में घिरी थी. जबकि वे खुद सभी देवी देवताओं को मानते थे. वे धर्म निरपेक्ष इंसान थे. आज तो हर व्यक्ति इस तरह की चित्रकारी कर रहा है. फिर उनपर ही विवाद क्यों छिड़ा. मैं समझ नहीं पाया. उनसे पूछता तो वह कहते. जाने दो कृषन यह सब राजनीतिक मुद्दे हैं. हमें तो दुख होना चाहिए कि भारत में इतने महान चित्रकार का जन्म तो हुआ लेकिन वह भारत में अपनी अंतिम सांसे नहीं ले पाये. हुसैन साहब लेकिन हमेशा से भारत के रहे और भारत से जुड़ी चीजों पर मुद्दों पर वह हमेशा बातचीत करते थे. मुझे याद है पाकिस्तान से युध्द पर विराम लग चुका था. एक दिन मुझे फोन किया कि पाकिस्तान चलोगे क्या. फिर मैं, तयब मेहता और हुसैन साहब वहां गये. वहां जाकर हमने कई वास्तविकता को अपनी आंखों से देखा. फिर उसका चित्रण भी किया. ंहुसैन साहब कभी किसी धर्म के खिलाफ नहीं थे. बेहद हंसमुख इंसान थे और हमेशा खुश रहते थे. मुझसे वे खूब मजाक भी करते थे. होली भी बेहद धूमधाम से मनाते थे. मैंने उनके साथ कई बार साथ में यही दिल्ली में दिवाली भी मनाई है. वे कभी नहीं चाहते थे कि उनके किसी कार्य से कोई विवाद हो. लेकिन इसके बावजूद वे हमेशा विवादों से घिरे रहे. इस बात का दुख था.जबकि वे खुद कहते थे कि वे सभी धर्मों पर विश्वास करते हैं. मैं मानता हूं कि भारत ने स्वर्ण खोया है. वे अद्वितीय थे. उनकी भरपाई कभी नहीं हो सकती.
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