20220701

लम्बे समय से अक्षय कुमार की फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज ‘का दर्शकों को इंतजार रहा है, लम्बे समय के बाद पीरियड फिल्म दर्शकों के सामने आई है, ऐसे में कहानी जब भारत के एक ऐसे योद्धा की है, जिन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय होना क्या होता है, इस गाथा की कहानी को देखने के लिए उत्सुक होना तो पूरी तरह से लाजमी है। सो, मैं यहाँ विस्तार से बताने जा रही हूँ कि अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर , सोनू सूद और संजय दत्त की यह फिल्म कैसी है और फिल्म देखते हुए मैंने क्या महसूस किया। क्या है कहानी कहानी शौर्य सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी है। कहानी मूल रूप से महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो‘ पर आधारित है। फिल्म की शुरुआत में ही मेकर्स ने इस बात का डिस्क्लेमर दे दिया है। पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) हिन्दू साम्राज्य के ऐसे शाषक थे, जिन्हें सिर्फ सत्ता से प्यार नहीं था, वह धर्म के लिए ही जीते थे और धर्म के लिए ही मरते थे। वह शत्रु के साथ भी न्याय करने में पीछे नहीं रहते थे। उन्होंने न सिर्फ अपनी आवाम की, बल्कि अपनी धर्म पत्नी को भी सम्मान दिलाया। वह नारी जाति के सम्मान के लिए किस तरह खड़े हुए थे, यह कहानी में विस्तार से दिखाया है। फिल्म में संयोगिता( मानुषी छिल्लर) संग उनका प्रेम रस और प्रेम का सम्मान भी करते हुए दिखाया गया है और इन सबके बीच सुल्तान मोहम्मद गौरी, जो कि एक लालची शाषक था, किस तरह से उसकी कैद में रह कर भी पृथ्वीराज ने अपनी वीरता को नहीं छोड़ा, फिल्म में इसे विस्तार से दिखाया गया है। कहानी दिल्ली, अजमेर और कन्नौज के बीच घूमती है। सिर्फ युद्ध में ही नहीं, निजी जिंदगी में भी किस तरह अपनी जीवन संगिनी को उन्होंने धर्म की रेखा में रह कर पाया, यह भी कहानी में दिखाया गया है और इन सबके बीच पृथ्वी भट्ट (सोनू सूद ) काका ( संजय दत्त) साये की तरह पृथ्वी के साथ रहे, फिल्म में इस पर फोकस किया गया है। बातें जो मुझे बेहतर लगीं फिल्म की सबसे खासियत जो मुझे लगी कि निर्देशक चंद्रप्रकाश ने फिल्म में सहयोगी कलाकारों को लीड किरदारों के बीच खोने नहीं दिया है, उन्हें गढ़ने में उन्होंने मेहनत की है। साथ ही फिल्म में म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर ने कहानी को पूरी तरह से सपोर्ट किया है। साथ ही फिल्म में संयोगिता के किरदार को बखूबी प्रेजेंट किया गया है। अमूमन राजा-महराजाओं और ऐतिहासिक किरदारों को देखते हुए या गढ़ते हुए मेकर्स, महिला किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं, इस फिल्म में ऐसा नहीं हुआ है। फिल्म में संयोगिता का नारी अधिकार के लिए आवाज उठाना और वह भी उस दौर में, इसे खूबसूरती से पर्दे पर प्रस्तुत किया गया है। बातें जो और बेहतर होने की गुंजाईश थीं फिल्म की कहानी अपने आप में एक महाकाव्य है, जाहिर है कि टीवी और बाकी अन्य माध्यम से भी हम इस कहानी को देख चुके हैं, ऐसे में जब बड़े पर्दे पर, बड़े बजट के साथ कोई फिल्म बनती है तो इसी फिल्मों से एक सिनेमेटिक अनुभव की उम्मीद की जाती है, इस लिहाज से फिल्म पर और मेहनत की जा सकती थी। कॉस्ट्यूम पीरियड ड्रामा के हिसाब से और बेहतर होने की गुंजाईश थी। फिल्म में थोड़े और वॉर सीन्स होते, तो फिल्म और अधिक दिलचस्प बनती। संवाद दमदार हैं, लेकिन याद रह जाते और बेहतर हो सकते थे। फिल्म यादगार बनने से कुछ कदम पीछे रह जाती है। अभिनय अक्षय कुमार के लिए यह पहला मौका था, जब उन्होंने किसी पीरियड फिल्म में काम किया है, उन्होंने अच्छी कोशिश की है, संवाद बोलते हुए दमदार लगे हैं। मानुषी छिल्लर की पहली फिल्म है, उस हिसाब से उन्हें पहली फिल्म में ही कठिन परीक्षा देनी पड़ी है, पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में वह और बेहतर करेंगी, यहाँ उनका प्रयास अच्छा है। फिल्म में मुझे जो सबसे अधिक अपील कर गए, वह हैं सोनू सूद, जिनके पूरे अभिनय में मुझे आत्मा नजर आई, पूरी तरह से महसूस हुआ कि वह जी रहे हैं किरदार को, आशुतोष राणा ने भी अच्छा अभिनय किया है। साक्षी तंवर के लिए खास करने को कुछ नहीं था, इस बात का अफ़सोस हुआ मुझे। संजय दत्त की भी कोशिश अच्छी रही। मानव विज ने गौरी को भूमिका में जान डाली है। कुल मिला कर कहें, तो सिनेमेटिक अनुभव के लिहाज से फिल्म को और बेहतरीन स्तर पर प्रस्तुत किया जा सकता था, लेकिन चूँकि यह एक शौर्य और एक वीरता के शाषक की कहानी है, ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए। नए जेनेरेशन को पृथ्वीराज की शौर्यता दर्शाने के लिए दिखाई जा सकती है फिल्म। फिल्म : सम्राट पृथ्वीराज कलाकार : अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर , सोनू सूद और संजय दत्त, आशुतोष राणा, साक्षी तंवर, मानव विज निर्देशक : डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी निर्माता : यशराज फिल्म्स


 सलीम खान ने अक्षय कुमार को लेकर हमेशा यह बात कही है कि अक्षय कुमार में वह सारे गुण हैं, जिसकी वजह से वह अपने समकक्ष के सारे सितारों से आगे रहेंगे। बहरहाल, अक्षय कुमार ने इंडस्ट्री में 30 बेमिसाल साल पूरे कर लिए हैं।  ऐसे में उन्होंने अपने करियर में अनुशासन को खास तौर से अहमियत दी है। यही वजह है कि वह 30 साल के बाद भी फ्रेशनेस के साथ फिल्में करते हुए नजर आते हैं। इन दिनों वह अपनी फिल्म ‘पृथ्वीराज ‘को लेकर काफी उत्साहित हैं और मुझे ट्रेलर के बाद, पूरी उम्मीद भी नजर आ रही है कि दर्शक उन्हें योद्धा ‘पृथ्वीराज ‘के रूप में जरूर पसंद करेंगे। ऐसे में उन्होंने फिल्म और अपनी जिंदगी के कुछ अहम पहलुओं पर बातचीत की है, मैं यहाँ उसके अंश शेयर कर रही हूँ। 

शुरुआत में मैं कन्विंस नहीं था कि पृथ्वीराज बन सकता हूँ 

अक्षय कुमार ने यह बात स्वीकारी है कि शुरू में उन्हें ऐसा नहीं लगा था कि वह इस किरदार में फिट बैठेंगे। 

वह इस बारे में विस्तार से बताते हैं 

जब मुझे फिल्म के निर्देशक डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि वह मेरे साथ यह फिल्म बनाना चाहते हैं, मैं बहुत अधिक कन्विंस नहीं था, वह एक राजा हैं और मैं खुद को उस इमेज में नहीं देख पाता हूँ।  मैंने उनसे कहा कि मैं इमेज से मेल नहीं खा रहा हूँ। उन्होंने मुझे बताया कि किसी के पास भी वास्तविक इमेज नहीं है, हर किसी के इमेजिनेशन में ही हैं वह। पृथ्वीराज का देहांत महज 36 साल में हो गया था और उन्होंने अपनी जिंदगी युद्ध लड़ते हुए दी।  उन्होंने मुझे कन्विंस किया कि एक योद्धा कभी मोटे कद-काठी के नहीं होंगे, वह एक एथलीट भी रहे, मैं फिर उनके ऑब्ज़र्वेशन के बारे में सुन कर हैरान हो गया। वह युद्ध के मैदान में 35 किलो के आर्मर पहन कर रह जाते थे।  सो, मुझे डॉक्टर साहब ने कन्विंस कर ही लिया। उन्होंने इस कहानी को 18 साल दिए हैं, इस कहानी की खासियत  यह भी लगी कि यह एक प्रोग्रेसिव सोच रखने वाले योद्धा की कहानी है, जो महिलाओं का सम्मान करते थे। पृथ्वीराज अपनी पत्नी को बराबर का दर्जा देते थे और कहते थे कि हम मिल कर शासन करेंगे। ये बातें मुझे कहानी में आकर्षित कर गयीं। 

ऐसा एक्शन पहले नहीं किया है 

अक्षय कुमार एक्शन के खिलाड़ी माने जाते हैं, लेकिन उनका कहना है कि  पृथ्वीराज में उन्होंने अलग तरह का एक्शन किया है। 

वह बताते हैं 

मैंने अपने करियर में ऐसा एक्शन कभी नहीं किया है, खासतौर  सीक्वेंस जो इस फिल्म के शुरुआती और आखिरी दृश्यों में हैं।  मैंने केसरी में कुछ कुछ ऐसा एक्शन किया था, लेकिन इस फिल्म में आर्मर पहन कर फाइट सीक्वेंस करना आसान नहीं था।  मुझे याद है, मेरी माँ पृथ्वीराज की कहानियां सुनाती थीं, उनकी वीरता की कहानी काफी इंस्पायर करती थीं।  मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं वह किरदार निभाऊंगा, काश ! मैं यह फिल्म अपनी माँ को दिखा पाता। 

रॉ एक्शन को मिस करता हूँ 

अक्षय ने यह भी कहा कि पहले रॉ एक्शन फिल्मों में होते थे, अब स्पेशल इफेक्ट्स से सारे काम हो जाते हैं, लेकिन वह इस मोमेंट को मिस करते हैं। 

वह बताते हैं 

हाँ, मैं उस एक्शन को मिस करता हूँ, उस वक़्त जो रॉनेस था, हम सारे एक्शन खुद से करते थे। वीऍफएक्स ने काफी लोगों को लेथार्जिक बना दिया है और वह सारे फन छीन लिए हैं, लेकिन यह भी सच है कि वीएफएक्स  जरूरी है, क्योंकि पृथ्वीराज चौहान जैसे किरदारों पर जब फिल्में या बायोपिक बनती हैं, तो काफी कुछ रिक्रिएट जाता है और वह यूं ही क्रिएट करना संभव नहीं है।  यहाँ हमें तकनीकी मदद लेनी ही पड़ती है। 

वाकई, अक्षय कुमार की इस फिल्म के ट्रेलर में उनके एक्शन को देख कर मैं तो हैरान हूँ , मुझे पूरी उम्मीद है कि दर्शक उन्हें इस फिल्म में जरूर पसंद करेंगे। फिल्म 3 जून 2022 को रिलीज हो रही है। 

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