भ्रष्टाचार के विरुध्द अन्ना हजारे ने पूरे देश में क्रांति की एक नयी अलख जगा दी है, जिसने पूरे भारत को एकजुट कर दिया. जब जब आंदोलन हुए, आम लोगों के साथ-साथ सिनेमा के निदर्ेशकों को भी इन विषयों ने प्रभावित किया. फिर चाहे वह मौजूदा दौर हो या दशक पहले की बात. श्याम बेनेगल की वेलडन अब्बा से दशकों पुरानी फिल्म इंकलाब तक बनी कई फिल्मों में भ्रष्टाचार का विरोध अपने -अपने अंदाज में किया गया है. अगर गौर करे तो रूपहले परदे पर क्रांति हमेशा दो रूपों में प्रस्तुत की गयी है. एक हिंसा का रास्ता तो दूसरा अहिंसा का मार्ग. हिंदी सिनेमा में आंदोलन के उन सभी स्वरूपों को प्रस्तुत करती उर्मिला कोरी की रिपोर्ट
मार्क हरमन द्वारा बनाई गयी फिल्म द मैन इन स्टि्रपल्ड पायजामा में खानबदोशों के साथ दूसरे देश में हो रही बदसलूकियों को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है. फिल्म में अंत में किरदारों ने फिर उस भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजाया. पूरे विश्व में जब जब आंदोलन हुए हैं, उन्हें सिनेमा के स्वरूप से दर्शकों तक पहुंचाने की पूरी कोशिश की जाती रही हैं. अगर आप गौर करें तो भले ही इतिहास की किताबों ने आम लोगों को कई आंदोलन की जानकारी दी हो. लेकिन उसका जीता जागता स्वरूप सिनेमा के माध्यम से ही लोगों तक पहुंचाया जाता रहा है. जापान, रूस, जर्मनी व ईरान में ऐसी कई फिल्में बनाई जाती रही हैं, जिनसे दर्शकों को उस दौर में हो रहे आंदोलन की जानकारी मिल सके. इसी क्रम में भारतीय सिनेमा ने भी अहम भूमिका निभाई है. न सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन के स्वरूप को बल्कि और भी कई अन्य मायनों से आंदोलन की तसवीर प्रस्तुत की जाती रही है. कभी नायक के रूप में एक दिन का सीएम हमें नजर आता है तो कभी वेलडन अब्बा के अरमान अली के रूप में. रूप चाहे जो भी, नायक के माध्यम से ही सही एक सार्थक छवि प्रस्तुत की जाती रही है.
मैं आजाद हूंः अमिताभ बच्चन अभिनीत यह फिल्म आम आदमी के हीरो की कहानी बयां करता है. इस फिल्म में आजाद की मौत के बाद आम लोगों में क्रांति की ज्योत को कैंडल मार्च के जरिये दिखाया गया था.
क्रांतिवीरः प्रताप नारायण तिलक ( नाना पाटेकर) के क्रांति की कहानी क्रंातिवीर है. अपने आसपास हो रहे अन्याय के विरोध में वह हथियार उठा लेता है, बाद में उसकी इस क्रांति से आम आदमी भी जुड़ जाते हैं.
गुलामः सन 1998 में रिलीज हुई आमिर खान की फिल्म गुलाम टप्पोरी सिद्दू की कहानी है. बाक्सिंग चैंपियन रोनी का पूरे इलाके पर एकछत्र राज्य है. वह वसूली करता हैं लोगों को मारता है लेकिन उसके खिलाफ किसी को कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं होती है लेकिन सिध्दू उसे चैलेंज करता है. सिध्दू का चैलेंज आम लोग में भी एक जोश भरता है.
दिल हैं हिंदुस्तानीः चैनल की टीआरपी भूल जब दो पत्रकार इंसाफ की लडाई में उतरते हैं तो पूरा देश एकजुट होकर उनका साथ देता है. इसी की कहानी फिर भी दिल हैं हिंदुस्तानी है. अजीज मिर्जा निदर्ेशित इस फिल्म में जुही और शाहरुख की अहम भूमिका थी.
घातकः राजकुमार संतोषी की यह फिल्म कात्या भाई की अराजकता के खिलाफ लोहा लेते एक अकेले इंसान की कहानी हैं जो अंत में एक जन आंदोलन तक पहुंच जाती है. फिल्म काफी मारधाड से भरी है. फिल्म का डायलाग जिसके पास गुर्दा है उसे ही जीने का अधिकार है. कहीं न कहीं से इस फिल्म के स्वरूप को बयां कर देता है.
चिंगारीः गांव के मंदिर का पुजारी भुवन पंडा,जो अपने ताकत का इस्तेमाल सिर्फ गांव वालों को शोषित करने के लिए करता है. एक के बाद एक कुकृत्यों से गांव में नफरत की ऐसी चिंगारी उठती हैं जो भुवन पंडा को जला देती है. कल्पना लाजमी निदर्ेशित यह फिल्म भूपेन हजारिका द्वारा लिखे गयी सच्ची कहानी पर आधारित थी.
रंग दे बसंतीः राकेश ओम प्रकाश मेहरा की यह फिल्म अहिंसा और हिंसा दोनों तरह की आंदोलन की बात करती हैं. फिल्म में कैप्टन की मौत के बाद कैंडल मार्च कर जहां आमिर की टीम इंसाफ की गुहार लगाती नजर आती हैं वही अनदेखी पर वह गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए हाथ में बंदूक तक थाम लेता है.
नायकः भष्ट नेताओं के बीच एक सच्चे नेता को राजनीति में लाने के लिए एक अनोखा जन आंदोलन इस फिल्म में नजर आया था. इस फिल्म के निदर्ेशक शंकर थे.
गंगाजलः प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल अपराधी प्रवृति के राजनेताओं की कहानी कहता है. जब पुलिस कानून के जरिये उन्हें सजा नहीं दे पाती हैं तो वे एसिड के जरिये उन्हें सजा देते हैं. अपराधी प्रवृति के लोगों से खुद को बचाने के लिए इस गंगाजल को आम आदमी भी अपना लेता हैं. आम आदमी के इसी आक्रोश की कहानी गंगाजल है.
हल्ला बोलः साल 2008 में रिलीज हुई राजकुमार संतोषी की यह फिल्म एक साथ कई मुद्दों को छूती नजर आयी. जेसिका लाल हत्याकंाड , नर्मदा बचाओं से अभिनेता आमिर खान का जुड़ाव, जन नाटय मंच के लीडर सफदर हाशमी की हत्या से लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता के एकजुट होकर आंदोलन करने की बात भी यह फिल्म सामने लाता है. इस फिल्म में जन आंदोलन को अहिंसात्मक तरीके से दिखाया गया है.
नो वन किल्ड जेसिकाः हालिया रिलीज हुई राजकुमार गुप्ता की फिल्म नो वन किल्ड जेसिका कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की कहानी कहता है. एक पैक शराब के लिए रसूख वाला इंसान किसी का खून भरी पार्टी में कर देता है लेकिन उस घटना का कोई चश्मदीद नहीं होता है. जिस वजह से वह छूट जाता है. किस तरह एक पत्रकार की पहल पर यह मुद्दा जन आंदोलन का रूप ले लेता है. लोग सडको पर कैंडल मार्च करते हैं और अंत में गुनाहगार सलाखों के पीछे पहुंचा है. एक जन अंादोलन की सच्ची तस्वीर इस फिल्म में देखने को मिली है.
कोटेशन ः बोमेन ईरानी
वेलडन अब्बा हमेशा मेरी प्रिय फिल्म रहेगी. चूंकि इस फिल्म के माध्यम से लोगों के सामने एक सार्थक छवि प्रस्तुत की गयी है. और मुझे खुशी है कि आज अन्ना हजारे के रूप में दर्शक किसी वेलडन अब्बा के अरमान अली को ही देखेंगे जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की कोशिश करता है.
बॉक्स में ः सिनेमा के वास्तविक अन्ना हजारे
फिल्म वेलडन अब्बा अगर आपने देखी तो आप इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि कैसे इस फिल्म में अरमान अली और उनकी बेटी मुस्कान ने अपने गांव में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठायी और अपने चोरी किये गये बावरी को वापस लिया. फिल्म में अरमान अली भी अहिंसक रूप से अपने गांव की पंचायत को झकझोर देने में सफल हो जाते हैं. एक एक कर भ्रष्टाचार कर रहे सभी पुलिस, प्रशासन व व्यक्ति उस अरमान अली के कदम के सामने घुटने टेक देते हैं. आज के दौर में वह बी किसी आंदोलन से कम नहीं.
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