अप्रेल 2011, बीबीसी हिंदी रेडियो सेवा पर पूर्णविराम के साथ ही एक बेहद अजीज आम लोगों से कोसो दूर चला जायेगा. जिस दिन यह घोषणा की गयी. उस दिन से लेकर अब तक आम लोगों के साथ-साथ इस खबर ने फिल्म सितारों व फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी शख्सियतों को भी मायूस किया है. चूंकि वे भी मानते हैं कि बीबीसी का मतलब था सच. जहां आज मीडिया फिल्मी दुनिया पर बेबुनियाद खबरें बनाती हैं. वे मानते हैं बीबीसी के माध्यम से उनकी वास्तविक छवि लोगों तक पहुंची है. इससे यह साफ जाहिर है कि बीबीसी न सिर्फ आम लोगों का बल्कि सिनेमा की दुनिया का भी इकलौता, दुलारा चहेता बच्चा था. अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट
वे अंधे थे, लेकिन बीबीसी की वजह से अंधकार में नहीं थे ः संजीव श्रीवास्तव
संजीव श्रीवास्तव बीबीसी हिंदी सर्विस के प्रमुख संपादक रह चुके हैं. उन्होंने ही बीबीसी के मुंबई ब्यूरो की शुरुआत की थी. बीबीसी से उनका जुड़ाव लंबे समय तक रहा. उन्होंने बीबीसी की सफलता की कहानी अपने आंखों से देखी, रची है. कार्यकाल के दौरान उनके सुनहरे अनुभव वे सांझा कर रहे हैं.
मुंबई के नरीमन प्वाइंट में वर्तमान में जहां एक विशाल होटल है. वहां कभी नटराज होटल हुआ करता था. उस दौर में तकनीक इतनी विकसित थी नहीं. न ही इंटरनेट की सही तरीके से सुविधा और न ही मोबाइल फोन की. सो, उस वक्त हमें अपनी स्टोरी दूरभाष के माध्यम से पहले भेजनी होती थी, फिर टेप के माध्यम से. होटलवाले किसी पीसीओ से हमारा संपर्क कराते थे. लगभग हर दिन बात होती ही थी. मैं जिस पीसीओ कके माध्यम से बात करता था. जब उनसे कहता कि मैं बीबीसी के काम के लिए यह संपर्क कराना चाहता हूं तो वह मुझे तुरंत पहचान लेते. कहते आप संजीव हैं बीबीसीवाले हम आपको अच्छी तरह पहचानते हैं. िफर मेरे कार्यक्रम की सुर्खिया, बकायदा उन्हें सारी बातें याद रहती थीं. उस ट्रीप के आखिरी दिन जब मैं उनसे मिलने गया ताकि सारा भुगतान कर दूं. उन्होंने मेरी आवाज से मुझे पहचान लिया. और काफी देर तक हमारी बात हुई. बीबीसी के शोज के बारे में. थोड़ी देर बाद मुझे पता चला कि वह अंधे हैं. मेरे जीवन की इससे बड़ी खुशी की बात और नहीं हो सकती थी कि मुझे लगा कि चलो पत्रकारिता और बीबीसी के माध्यम से हमने कुछ तो ऐसा किया है कि किसी अंधे के जीवन में अंधकार नहीं है. वह बीबीसी से ही पूरी दुनिया को जानते थे. सारी जानकारी रखते थे. यह था बीबीसी. दुख की बात है कि अब ऐसे मानकों के बावजूद अब बीबीसी हमारे साथ न होगा. मेरा मानना है कि हमें भविष्य के बारे में जरूर सोचना चाहिए. लेकिन भविष्य के बारे में भयभीत होकर इस कदर निर्णय नहीं लेना चाहिए कि जो स्थापित चीजें हैं उन्हें समाप्त कर नयी चीजों के बारे में सोचें.
उस दिन एक प्रेस वार्ता के दौरान शाहरुख खान से जब यह पूछा गया कि क्या उन्हें जानकारी है कि बीबीसी हिंदी सेवा पर पूर्णविराम लगाया जा रहा है. उनके चेहरे पर अचानक मायूसी आ गयी थी. उन्होंने बेहद अफसोस के साथ यह बात जाहिर कि अरे यार बीबीसी में क्रिकेट की कंमेट्री सुनने का एक अलग ही मजा था. वहां जब किसी इंटरव्यू के लिए आमंत्रित किया जाता था तो मन में डर बैठ जाता था कि यार बीबीसी में जा रहे हैं. पूरा होमवर्क करके जाना होगा. यह बीबीसी की विश्वसनीयता ही थी जिसने वर्षों तक सिर्फ सिनेमा नहीं बल्कि सिनेमा की संस्कृति को भी बनाये रखा. शशि कपूर अपनी यादों को तरोताजा करते हुए बताते हैं कि पृथ्वी थियेटर जैसे सांस्कृतिक धरोहर को बनाये रखने में ऐसे माध्यम ने अहम भूमिका निभाई थी. श्याम बेनगल जैसे निदर्ेशक इस बात से इनकार करते हैं कि बीबीसी जैसे माध्यम को बंद किया जाना चाहिए. महेश भट्ट मानते हैं कि कुछ चीजें माकर्ेटिंग व बाजार से परे भी सोचनी चाहिए थी. हम लोगों को कुछ कदम उठाने चाहिए थे ताकि कुछ तो अच्छी चीज व उसका अस्तित्व जिंदा रह सके. महेश भट्ट मानते हैं कि बीबीसी ने अब तक सिनेमा पर आधारित जो भी पत्रकारिता की. वह गंभीर पत्रकारिता होती थी. उसने इस्लामिक देशों में उस वक्त जाकर भारतीय सिनेमा की लोकप्रियता की खबरें लोगों तक पहुंचाई थीं. जब वहां तक पहुंचना लोगों की पहुंच से बाहर था. हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत व पूरे विश्व की कई महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी भी हमें इससे ही मिली है. निदर्ेशक सुधीर मिश्रा भी इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि हम धीरे-धीरे खुद अपनी धरोहरों को खोते जा रहे हैं. जिस तरह आज के दौर में दूरदर्शन कोई नहीं देखता. ऐसी अवधारणा के बावजूद हम दूरदर्शन को बंद नहीं कर रहे . फिर बीबीसी ने तो कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं. बीबीसी का मतलब था विश्वसनीयता. किसी फिल्म में अगर मीडिया पार्टनर या साभार में बीबीसी का नाम जुड़ा होता था उसके प्रति विश्वास और बढ़ जाता था. श्याम बेनेगल बताते हैं कि बीबीसी की जितनी पकड़ और पैठ राजनीतिक मुद्दों में रही उतनी ही सिनेमा की समझ भी रखी. 15 अगस्त व 26 जनवरी पर स्वतंत्रता दिवस के बेहतरीन शो ्ायोजित होते थे. बाद के कई सालों तक भी उन्होंने हिंदी सिनेमा के लेजेंड लोगों से जुड़ी रोचक बातें लोगों तक पंहुचायी. मनोज कुमार बताते हैं कि बीबीसी की सबसे खास बात थी कि वह कभी बाते नहीं बनाता था. जिसने जैसा कहा, वह वही बात कहता. अब तक जितना बेहतरीन इंडरव्यू बीबीसी रेडियो ने आयोजित किया था मेरा. किसी ने नहीं किया.सिनेमा, टीवी व थियेटर में सक्रिय रजीत कपूर मानते हैं कि बीबीसी हिंदी रेडियो ने आम लोगों तक, गांव के लोगों को पढ़ना लिखना सिखाया. हमें लोगों तक पहुंचाया. दरअसल, सच्चाई बी यही है कि बीबीसी ने आम लोगों के दिलों में जिस कदर जगह बनायी थी. उसी तरह सेलिब्रिटिज की नजर में बीबीसी सेलिब्रिटी है. सुपरस्टार्स भी मानते हैं कि वह इसके लिए बेचैन रहते थे कि कैसे उन्हें बीबीसी से बुलावा आये और वे वहां लोगों से रूबरू हों. खुद अमिताभ बच्चन इस बात को स्वीकारते हैं कि जया से शादी के बाद वे बीबीसी स्टूडियो गये थे हजारों की संख्या में श्रोताओं ने उनका अभिवादन किया था. उस इंटरव्यू के दौरान उन्हें और जया को बहुत मजा आया था. चूंकि अमिताभ खुद रेडियो में काम करना चाहते थे. इसलिए उन्हें बीबीसी रेडियो स्टूडियो का दिन बेहद रोचक लगा था.
अनपढ़ों की पाठशाला....बीबीसी
भले ही बीबीसी हिंदी रेडियो सेवा को बंद करने की बात पर इससे जुड़े अधिकारी यह दलील दें कि अब इसके श्रोता कम हो गये हैं. इसकी प्रासंगिकता कम हो गयी है. इस वजह से इसे बंद करने का निर्णय लिया गया है. लेकिन अब भी सच्चाई यह है कि इसकी वास्तविक तसवीर हमें किसी गांव में जाकर देखनी चाहिए. गौरतलब है कि 73 वर्षीय हरदेवा राम जितना बीबीसी के जाने से आहत हैं. उतना ही 28 वर्षीय बीएचयू से पढ़ाई कर रहे राजीव के लिए भी बीबीसी उतना ही अजीज है. आम लोगों की नजर में क्या है बीबीसी की अहमियत. उनकी ही जुबानी...
तब गांव में हम खाते थे बीबीसी की कसम
हरदेवा राम, उम्र 73 साल, गांव बिरानियां
फतेहपुर शेखावटी, जिला सीकर, राजस्थान
यह कोई 30 पैंतीस साल पुरानी बात है. मेरा एक भतीजा रामेश्वर बगदाद में नौकरी करता था. गांव के कुछ और लोग भी रहते थे. खाड़ी पे के देशों में लेकिन वह हमेशा इराक की तारीफ करता था. दूसरे इस्लामिक देशों सउदी अरब, कतर, दुबई, मस्कट में रहनेवाले लोग उससे चिढ़ा करते थे. मेरे आग्रह पर वह एक ट्रांजिस्टर लाया था. उस समय क्रिकेट की कमेंटरी गांव के युवा ट्रांजिस्टर में सुनते थे. लेकिन मेरी दिलचस्पी सचमुच इसमें नहीं थी. मैं बीबीसी लंदन से आनेवाले समाचार ही सुनने में दिलचस्पी रखता था. वही शाम को पहले आधा घंटे आया करते थे. फिर चालीस मिनट हुए और फिर एक घंटा. मेरे पास रेडियो आते ही मैं गांव के स्कूल गया था और वहां के शिक्षकों से पूछा कि बीबीसी किस जगह आता है. उन्होंने बताया कि बताया कि मीटर वेब में जहां 140 लिखा है, उसी के आस-पास साढ़े सात बजे के आस-पास सुई हिलाएं तो बीबीसी सुनाई देगा. मैं उस दौर के ज्यादातर नामों से परिचित हूं. ओंकारनाथ श्रीवास्तव, परवेज आलम, राजनारायण बिसारिया, अचला शर्मा, विजय राणा और बाद में जुड़े नरेश कौशिक, ममता गुप्ता, सलमा जैदी भी मुझे याद हैं. समाचारों के बाद आनेवाला आजकल बहुत पसंद रहा है मुझे. बाद में बीबीसी हिंदी की कुल चार सभाएं हो गयी थीं मेरे खयाल से. बाद के सालों में बीबीसी समाचार सुनने की आदत इसलिए रही कि मेरे चचेरे भाई दुलाराम का बेटा आर्मी में था और वो सोमालिया में यूएन की शांति सेना में भेजा गया था तो केवल बीबीसी पर ही हम रोजाना सोमालिया के हालात सुन सकते थे. अभी भी रवांडा और दूसरे अफ्रीकी देशों में गांव के कुछ और बच्चे सेना में हैं तो हमें वहां की खबरें सुनने की उत्सुकता रहती है. बीबीसी के अलावा कोई भी वहां की खबरें देता ही नहीं है. मेरा हमेशा परिवार और अपने बेटे पर दबाव रहता था कि वे नियमित रूप से बीबीसी रेडियो पर आनेवाले समाचार सुनें. कई बार समय से पहले लगता था कि बंगाली की सभा चल रही होती थी और बंगाली बोलते हुए लोग अच्छे लगते थे. दोबारा सुनना होता था तो हिंदी की सभा खत्म होते ही वहां से उर्दू समाचार शुरू होते थे और मैं लगातार क्रम में उन्हें सुन सकता था. कितनी ही यादें हैं इंदिरा की हत्या, हमारा पूरा मोहल्ला उदास था और शाम को सब लोग हमारे ही घर में रेडियो से चिपक कर बैठे थे. बीबीसी ने जैसे ही उदास ढंग से पहली पंक्ति बोली कि भारत की प्रधानमंत्री नहीं रहीं. विश्वास नहीं हो रहा था. लेकिन बीबीसी का मतलब था कि खबर तो सच्ची ही होगी. मेरे गांव में बीबीसी एक मुहावरा भी है. जब किसी भी आदमी की सूचना पर यकीन करने का मन न हो तो उससे वह यकीन दिलाने के लिए कहता था कि कसम से पक्का कह रहा हूं. बीबीसी की खबर समझो इसे. पिछले कुछ सालों से मैं शाम की सभाएं सुनने का आदी रहा हूं . पिछले कुछ सालों से गांव में मोबाइल के टावर लग गये हैं और देश दुनिया की दूरियां कम हो गयी हैं. लेकिन बीबीसी के बंद होने की खबर पर मैं परेशान हूं. असल में मेरे जिस भतीजे ने मुझे रेडियो दिया था, वह बगदाद में 25 साल पहले मर गया था. मेरे घर में मेरे सख्त रवैये के कारण मेरा नाम सद्दाम हुसैन रखा गया था. यह मेरे भतीजे और बेटे के बीबीसी सुनने की वजह से ही था. वे राजनीतिक गतिविधियों से वाकिफ रहते थे. अकेला बीबीसी ही ऐसा रहा है जिसने पूरी दुनिया की खबरें सुनाते हुए मुझे ऐसा आदमी बनाया जिसमें इस दुनिया को खूबसूरत बनाने की हमेशा इच्छा रही.मेरा भतीजा जिसने मुझे यह रेडियो दिया था वह नहीं है और अब बीबीसी भी जा रहा है. मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरे परिवार से मेरा हिस्सा अलग हो रहा है.
मां की तरह था बीबीसी
राजीव कुमार, छात्र, बीएचयू,राजीव कुमार, छात्र, बीएचयू, 28 वर्षीय
मेरा जुड़ाव बीबीसी से पुराना रहा है. लेकिन बीच में संपर्क टूटा. फिर पिछले दो सालों से मैं इसे नियमित सुन रहा था. मेरे लिए बीबीसी एक मां की तरह था. सुबह की शुरुआत उसी से होती थी. उसकी खबरें सुन लेना. मतलब कुछ ऐसा था कि मानो किताब पढ़ ली पूरी. मैंने बीबीसी के आम लोगों से जुड़े प्रोग्राम में कई बार टेलीफोनिक बातचीत भी की थी. हम आम लोगों को प्रायः सिनेमा से जुड़ी खबरें पढ़ने सुनने व अपने स्टार्स के बारे में जानना बेहद अच्छा लगता था. सो, इस लिहाज से भी बीबीसी ने हमारे लिए एक मुलाकात जैसे कार्यक्रम व संजीव श्रीवास्तव की आवाज में श्याम बेनगल व प्रतिष्ठित कलाकारों से उनके वक्त की जुड़ी बातें सुनना बेहद रोचक था. तो दूसरी तरफ आइएस की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए वह किसी इनसाइक्लोपिडिया से कम नहीं था
बीबीसी हिंदी रेडियो सेवा जिस तरह सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विषयों पर गहरी पकड़ रखता था. उसी तरह उसके रिपोर्टर सिनेमा पर भी गंभीर पैठ व समझदारी रखते थे. शायद यही वजह है कि बीबीसी रेडियो पर हाल के कुछ वर्षों तक भी व्यस्तताओं व मीडिया से कतराने के बावजूद यह बीबीसी की विश्वसनीयता ही थी कि कोई कलाकार इस माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में नहीं कतराते थे.उनकी यादों में बीबीसी...
शशि कपूर ः हिंदी सिनेमा के जगत के महान शख्सियत में से एक शशि कपूर को बीबीसी हिंदी रेडियो से बेहद लगाव रहा. वे बताते हैं कि कभी शूटिंग के दौरान उन्होंने पहली बार बीबीसी सुना था. घर पर चूंकि कला, इतिहास व सामाजिक गतिविधियों के बारे में चर्चा होती रहती थी. इसलिए भी बीबीसी से जुड़ाव हुआ. वे बताते हैं कि उनके स्पॉट ब्वॉय भी यही कहा करते थे कि सर अगर कोई जानकारी चाहिए तो बीबीसी लगाएं. उस वक्त वैनिटी वैन या मोबाइल फोन या इंटरनेट ये सारी चीजों का प्रचलन तो था नहीं. सारी जानकारी इससे ही मिलती थी. निस्संदेह रेडिये हमेशा हमारा साथी रहा है. पॉकेट ट्रांजिस्टर कहीं भी रख कर सुना जा सकता था. मुझे याद है 2006 की बात रही होगी. हालांकि उससे पहले भी मैं वहां गया हूं. लेकिन बीबीसी रेडियो ने आमंत्रित किया था. विशेष कर कपूर खानदान की पांच पीढ़ियों पर लंबी बातचीत होनी थी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि 2006 में जबकि मैं इतना बूढ़ा हो चुका था. लोगों नयी फिल्मों को तवज्जो दे रहे थे. लेकिन श्रोता के रूप में दर्शकों के इतने फोन आये. मुझसे सवाल पूछने के लिए. मुझे याद है उस लंबी बातचीत में मैंने अपने परिवार के कई अनछुए पहलुओं पर बातचीत की थी. खासतौर से पृथ्वी थियेटर की नींव, फिर उसका पतन, और उसे अपने कार्यक्रमों के द्वारा बार-बार लोगों से गुजारिश करने पर कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाएं. मुझे फिर से हिम्मत मिली और पृथ्वी दोबारा शुरू हुआ. मैं नहीं लगभग हर अभिनेता इस बात को मानेंगे कि बीबीसी बेफिजूल की नहीं, बल्कि आम लोगों तक पहुंचायी जानेवाली ज्ञानवर्ध्दक बातें ही करेगा. दुख है कि अब वह हमारे साथ नहीं रहेगा.
श्याम बेनेगल ः अधिकतर हम पर मीडिया यह आरोप लगाती रहती है कि हम मीडिया से बातचीत नहीं करते. लेकिन मैं मानता हूं कि हम फिल्मकारों को इस बात से परेशानी नहीं कि हम बात नहीं करना चाहते. बल्कि इससे है कि विषयपरक बातों की बजाय हम निजी और व्यक्तिगत सवालों को ज्यादा तरजीह देते हैं. इस तरह के बेफिजूल बातें करनेवालों को एक बार बीबीसी रेडियो जरूर सुनना चाहिए. बीबीसी रेडियो की जो शैली है. सामान्य, आम लोगों से जोड़नेवाली शैली. मुझे सबसे अधिक यही आकर्षित करती थी. यही वजह है कि मैंने कई बार बीबीसी के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचायी है. हाल के वर्षों तक उनका कार्यक्रम एक मुलाकात सुनता रहा हूं. और उसका हिस्सा भी.
माधुरी दीक्षित ः हां, मैंने सुना और मुझे इस बात का बेहद अफसोस है. चूंकि कॉलेज व स्कूल के दिनों में हम सभी बीबीसी की कसम खाते थे. जो बीबीसी की कसम खाता था. हम समझते थे कि अच्छा सच कह रहा होगा. चूंकि बीबीसी बिल्कुल सच, व विश्वसनीय खबरें सुनाता था. खासतौर से मैं मानती हूं कि उनके लिए जो गांव में हैं. जहां टीवी की पहुंच नहीं वहां लोगों को पूरी दुनिया से जोड़ने का काम तो बीबीसी ने ही किया था. मेरे घर पर पापा अब भी उसे सुनते हैं और फिर उसकी खबर हमें बताया करते थे.
शाहरुख खान ः सबसे अधिक कुछ रोचक था बीबीसी का तो वह था. क्रिकेट मैच सुनना. स्कोर क्या हुआ है. हालांकि ऑल इंडिया रेडियो भी था. लेकिन बीबीसी की खूबी यह थी कि वह पूरे विश्व की खबरें हमें पहुंचाता था.
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