20110515

किसी माध्यम को कला पर हावी न होने देंः रवींद्र


1.शर्मिला टैगोर, अभिनेत्री

वैचारिक से अधिक व्यवहारिक सोच रखते थे रवींद्र ः

कुछ इंसान होते हैं, जो सिर्फ अपने लिये जीते हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें नाम से पहचान से कोई मोह नहीं होता. यही वजह होती है कि जब वह कल्पनाशील व्यक्ति कुछ गढ़ता है तो एक रचना निकल कर सामने आती है. जो किसी तरह के दबाव से परे होती है. कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व थे रवींद्रनाथ टैगोर व उनकी रचना. मेरे जीवन में उनका प्रभाव बहुत रहा है. इसकी खास वजह यह रही कि वह मुख्य रूप से केवल सैध्दांतिक बातें नहीं करते थे. वे वैचारिक होने के साथ साथ व्यवहारिक भी थे. वे जिंदगी में दार्शनिक तो रहे, लेकिन उन्होंने व्यवहारिक बातों को महत्व दिया. उनकी लेखनी पर गौर करें तो सामाजिक मुद्दों से जुड़ी वे तमाम बातें मौजूद भी हैं और वर्तमान में वे सारी चीजें नजर भी आती हैं. उन्होंने महिलाओं को हमेशा अपने जीवन में सम्मान की नजर से देखा. गौर करें तो वर्तमान में वे सारी चीजें हो रही हैं जिसके बारे में कभी रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था. मैं रवींद्रनाथ की गीतांजलि से बेहद प्रभावित हूं और हमेशा उसकी चर्चा करती हूं. मैं खुद कई बार शांति निकेतन गयी हूं. वहां मैं देखती हूं कि किस तरह लोग आज भी रवींद्र को मानते हैं. इसकी वजह है कि वह बेहद व्यवहारिक थे. मुझसे उनकी यह बात भी प्रभावित करती थी कि वे अपने विचारों को लेकर ईमानदार थे. उन्होंने कभी कुछ छुपाया नहीं. सबकुछ लोगों के सामने रख दिया.

2. रवींद्र जैन, संगीतकार

बचपन से रवींद्र संगीत से प्रभावित

मैं रवींद्र संगीत से उस वक्त से प्रभावित हूं. जब मैं बहुत छोटा सा था. उनके संगीत की खास बात यह थी कि उसमें मिठास होने के साथ साथ पूरी एक कहानी होती थी. यही वजह थी कि मैंने अपनी फिल्मों में रवींद्रनाथ के संगीत को जरूर शामिल किया है. मुझसे कई बार लोगों ने पूछा है कि क्या मैं रवींद्रनाथ से प्रभावित होकर अपना नाम रवींद्र रखा. तो, सच यही है कि मेरे परिवार में बचपन से रवींद्र संगीत हद से अधिक सुना जाता रहा है. और खासतौर से पिताजी उन्हें सुननेवालों में खास थे. मैंने बांग्ला भाषा इसलिए सीखी, ताकि मैं रवींद्र के संगीत को समझ सकूं. और जब मैं इसे समझने लगा तो मुझे लगा कि रवींद्र संगीत में जो भाव है. वह कहीं और नहीं. रवींद्र संगीत पर गौर करें तो इसमें जीवन के सारे रस नजर आयेंगे. मन को शांति मिलती है. उससे सुन कर यह एहसास होता है कि हमेशा जिंदगी में भागना दौड़ना जरूरी नहीं. कुछ पल ठहर कर भी सोचा जाना चाहिए.

3.सोबरोना विस्वास

उंगली कूची, स्याही था रंग उनके लिए

मुझे उनके जीवन का यह प्रसंग सबसे अधिक प्रभावित करता है.. कि उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद लिखा था ऐ मुनिहार हमार. मतलब यह सम्मान मेरे लिए खूबसूरत हार भी है. लेकिन मुझे इसे स्वीकारने में एक हिचक हो रही है, कि कहीं इस सम्मान को स्वीकार कर मैं अपने देश के साथ गलत तो नहीं करूंगा. मैं अपने देश की गरिमा रखने में नाकामयाब तो नहीं हो जाऊंगा. साथ ही वह अपने मन में छुपे बच्चे की बात भी कहते हैं कि मुझे मणी की लालसा भी है. तो अब हे धरती मां तुम ही बताओ मैं क्या करूं. रवींद्रनाथ टैगोर की एक खास बात यह भी थी कि उन्होंने अब तक जितनी भी रचनाएं की है. उसमें भावनाओं को बहुत महत्व दिया है. रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं की चर्चा आज तक जितनी हुई है. उतनी चित्रकारी की नहीं. लेकिन सच तो यह है कि वह बेहतरीन चित्रकार भी थे. वे चित्रकारी के लिए स्याही का इस्तेमाल करते थे और उससे जो भी रंग उकेर सकते थे. उकेरते और ब्रश की बजाय उंगली का इस्तेमाल किया करते थे. एक बेहतरीन तसवीर उभर कर सामने आ जाती थी. उन्होंने समाज के उत्थान के लिए अपनी रचनाओं के माध्यम से बहुत योगदान दिया.

4. कोमोलिका गुहा ठकुराता, अभिनेत्री व मुंबई में रवींद्र संगीत पर आधारित स्कूल का संचालन )

हम बचपन से ही यही चाहते हैं कि हमारे बच्चे रवींद्रनाथ टैगोर की किताबें, उनकी रचनाओं, कविताओं व खासतौर से उनके संगीत का अनुसरण करे. इसकी खास वजह यह है कि रवींद्र संगीत में हर वर्ग के लोगों के लिए खास विचारवर्धक बातें व रस छुपी है.हमने बचपन से ही उनकी कई किताबें पढ़ी हैं और चाहते हैं कि युगों युगों तक उनको लोग जाने, यही वजह है कि मैंने मुंबई में रवींद्र संगीत पर आधारित स्कूल की शुरुआत करे. मैं अचंभित हो जाती हूं जब यहां के बच्चों में उनके बारे में जानने की लालसा देखती हूं. वे बेहद उत्साहित होकर उनके बारे में पूछते हैं. मैं खुद रवींद्र संगीत के माध्यम से बहुत शांति महसूस करती हूं. मैं मानती हूं कि रवींद्र संगीत के माध्यम से उन्होंने कई गंभीर बातों को लोगों तक सरल भाव में पहुंचाया है. मैं मानती हूं कि रवींद्र संगीत जिंदगी में आनेवाली तमाम बातों को सिखाता है. और फिर उससे निकलने का रास्ता भी सुझाता है. रवींद्र संगीत जिंदगी जीने की कला सिखानेवाला एक ठोस माध्यम है. न सिर्फ संगीत उनकी रचनाओं में देखें कि उन्होंने किस तरह लिंग भेद को हटाने के लिए आवाज उठाई थी. वे महिलाओं को बिल्कुल बराबरी का दर्जा दिया करते थे. किसी पुरुष का उस दौर में जब हर तरफ सिर्फ महिलाओं को चहारदीवारी में कैद रखने की बात होती थी. रवींद्र मानते थे कि उन्हें आगे बढ़ना चाहिए और बाहर निकल कर पुरुषों के साथ आगे बढ़ना चाहिए.

5. तुहिन ए सिन्हा,उपन्यासकार

चित्रागंदा-सी हैं महिलाएं

नेहरुजी के जीवन पर रवींद्रनाथ टैगोर का खास प्रभाव रहा था. नेहरुजी रवींद्रनाथ टैगोर की रचना चित्रांगदा की छवि से बिल्कुल सहमत थे. रवींद्रनाथ स्वयं महिलाओं को हमेशा अव्वल दर्जा देते थे. उनका मानना था कि महिलाएं शक्तिशाली होती हैं और पुरुषों से भी अधिक ताकतवर, अपनी इसी सोच को उन्होंने चित्रांगदा के रूप में लोगों तक पहुंचायी थी. नेहरु जी उनकी इन बातों से हमेशा सहमति रखते थे. और यही वजह रही कि कई बार टैगोर के दृष्टिकोण से सोचने की वजह से महात्मा गांधी और नेहरुजी में कई विषयों को लेकर मन मुटाव हो जाया करते थे.

6. प्रोदिप्तो, चित्रकार व रवींद्र चित्रकारी पर खास अध्ययन कर चुके हैं

किसी माध्यम को कला पर हावी न होने देंः रवींद्र

रवींद्रनाथ टेगोर की चित्रकारी ने मुझे हमेशा प्रभावित इसलिए किया क्योंकि मुझे उनकी चित्रकारी में सबसे खास बात यह नजर आती है कि वह हमेशा अपनी चित्रकारी को लेकर धैर्य नहीं रखते थे. उनका सोचना था कि किसी भी माध्यम को इस कदर खुद पर हावी नहीं करना चाहिए कि उसे आपकी कला से अधिक तवज्जो मिलने लगे. यही वजह रही कि उन्होंने ब्रश की बजाय कूची व स्याही को रंग के रूप में इस्तेमाल किया क्योंकि वह रंगों के सुखने का इंतजार नहीं कर सकते थे. उनकी चित्रकारी में भावनाओं का खास रूप नजर आता है. वे जो बातें कहते थे. जो विचार रखते थे. वे उस पर अमल भी करते थे और ठीक उसी रूप में उसे उकेर भी देते थे. उन्होंने कभी भी किसी एक रूप में बंध कर चित्रकारी नहीं की. उनकी चित्रकारी को देख कर कोई इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता है कि वह किसी भावना या बात से प्रभावित हैं. यही वजह रही कि उन्हें कई वर्षों तक चित्रकार के रूप में पहचान नहीं मिली. रवींद्रनाथ ने ही इस बारे में भी लोगों में जागरूकता फैलायी कि हमारी संस्कृति में ऐसी कई चीजें हैं जिसे हमें सहेजना है, वरना यह सब विलुत्प हो जायेंगी. उन्होंने कहा कि पूरे विश्व फलक की चीजें देखना भी जरूरी है. अपनी आंखों को खुला रखना होगा.

7. शेखर भट्टाचार्य, चित्रकार व एनआइडी में प्रोफेसर

उनकी रचनाओं में एक खास रहस्य था ः रवींद्र

मैं मानता हूं कि रवींद्रनाथ टेगोर ने भारत में एक अलग तरह की चित्रकारी की कला का उत्थान किया. उन्होंने बिना किसी कूची या रंग के सहारे चित्रकारी शुरू की और मॉर्डन आर्ट जैसी विधा को बढ़ावा दिया. रवींद्रनाथ की पेंटिंग को देख कर यह बात समझ में आती है कि उनके संगीत व रचनाओं की तरह ही उनकी पेंटिंग्स में भी हर मौसम, हर मिजाज का रूप निखर कर सामने आता है. उनकी चित्रकारी में वह बात है कि अगर कोई व्यक्ति उदास बैठ कर सूरज को देख रहा है, तो जाहिर है सूरज की रोशनी उसे चुभती ही नजर आयेगी. तो वह उस व्यक्ति के क्रोध की कल्पना करके भी उस दृष्टिकोण से तसवीरों में उकेरते थे. उनकी कला मुझे इसलिए भी प्रभावित करती है कि उसमें हमेशा एक रहस्य छुपा होता है. हर पेंटिंग में कहीं न कहीं कोई रहस्य नजर आता है. साथ ही पेंटिंग्स में मनोवैज्ञानिक आधार पर कई विचार भी नजर आते हैं.

8. श्रीपर्णा, ( रवींद्रनाथ टैगोर की लगभग 100 से भी ज्यादा किताबों का अध्ययन)

मैथिली भाषा में भी रवींद्र की रचना

रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में यह बात बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि उन्होंने बांग्ला भाषा के साथ साथ उन्होंने मैथिली भाषा में भी कई रचनाएं रची हैं. उन्होंने 16 साल की उम्र की पहली रचना की भानुशी. सावन गगने घोर घन घटा निशित यामिनी रे... को मैथिली के रूप प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी. उन्होंने इसे सखी कैसे जावत अवला कामिनी रे के रूप में लिखा. उन्होंने और भी कई मैथिली भाषा में रचनाएं की है. अपनी जिंदगी की अंतिम दिनों में वे बिस्तर पर थे और वे किसी दूसरे से कविता लिखवाते थे. लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी रचना जारी रखी.

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9.अनिरबन बोस, मशहूर फैशन डिजाइनर व रवींद्रनाथ टैगोर की किताबों का विशेष अध्ययन

उनमुक्त वातावरण में घूमना चाहते थे रवींद्र

रवींद्रनाथ टैगोर अपने विचारों की तरह ही शारीरिक रूप से भी बहुत उनमुक्त रहना चाहते थे. लेकिन चूंकि वह जमींदारी परिवार से संबध्द थे. सो, उन्हें जमीनदारों की तरह ही वेशभूषा व बर्ताव रखना पड़ता था. जबकि वे खुद इस तरह से बिल्कुल रहना नहीं चाहते थे. उन्हें खुले वातावरण पसंद था. उनके घर पर सभी बच्चे प्रायः एक ऐसे कमरे में रहते थे. जहां सिर्फ एक खिड़की खुलती थी. उस खिड़की से एक ही तालाब नजर आता था, जहां गरीब के बच्चे मटमैले होकर भी घूम रहे होते थे. मस्ती कर रहे होते थे. वे किसी भी तरह के कपड़े पहन कर मस्ती किया करते थे. बेफिक्र, बिंदास, उनमुक्त. रवींद्रनाथ बचपन से ही खुले विचारों के थे और अपने घर में घुटन महसूस करते थे. वह बचपन की यादें उनके मस्तिष्क में इस कदर घर कर चुकी थी कि उन्होंने अपनी अधिकतर कविताओं में उस खिड़की का जिक्र किया है और कहा है कि मैं उस खिड़की से बाहर की दुनिया देखना चाहता हूं. वे चाहते थे कि गरीब के बच्चे भी पढ़ें आगे बढ़ें. यही वजह रही कि आगे चल कर उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की व कई विद्यालयों का निर्माण किया, वे हमेशा शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते थे. वे जब भी बोर होते थे. कविता लिखते थे और अपनी बालकनी में आकर यही सोचते थे कि मैं क्यों नहीं इस तरह उनमुक्त होकर मस्मौले की तरह घूम सकता.लोगों से बात कर सकता. यही वजह रही कि उन्होंने अपने मन की इस पीड़ा को अपनी रचनाओं में व्यतीत की. वे बेहद सामान्य सा जीवन जीना चाहते थे. लेकिन उन्हें इसकी आजादी नहीं मिलती थी.

10. शुभा मुदगल, गायिका

रवींद्रनाथ टैगोर की गीत-संगीत में जो शांति छुपी है. वह शायद ही हमें किसी और रूप में देखने सुनने को मिले. उनकी हर कृति में जीवन के हर कदम का पाठ छुपा है. टैगोर को बचपन से ही प्रकृति से प्यार था.वह हमेशा सोचा करते थे कि प्रकृति के सानिध्य में ही विद्यार्थियों को अध्ययन करना चाहिए. इसी सोच को मूर्तरूप देने के लिए वह 1901 में सियालदह छोड़ कर आश्रम की स्थापना करने के लिए शांतिनिकेतन आ गये. प्रकृति के सानिध्य में पेड़ों, बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थान की. मैं मानती हूं कि रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता है. उनकी अधिकतर रचनाएं तो अब उनके गीतों में ही शामिल हो चुकी है. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित गीत मानवीय भावनाओं के अलग अलग रंग प्रस्तुत करते हैं. अलग अलग रागों में यह प्रतीत होता है कि उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गयी थी.

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