20200901

 





अनुप्रिया वर्मा,

 “सब पे आती है सबकी बार से मौत मुंसिफ है, कम-ओ-बेश नहीं जिंदगी सब पे क्यों नहीं आती! गुलज़ार साहब की ये पंक्तियां कि मौत मुंसिफ है, कड़वा सच है जिंदगी का. मगर सुशांत, मौत आपके हिस्से यूं आएगी. सोचा न था. सुशांत, आप तो उन होनहार युवा कलाकार में से एक थे, जिन्होंने अपने तप के इंधन से, बाहर खड़ी “आउटसाइडर” कार को बड़ी मशक्कत से इंडस्ट्री की  घाघ दुनिया में बड़े धौंस के साथ पार्क किया था. ऐसे में आप अचानक यूं ब्रेक लगा देंगे. सोचा न था. आपने उन दिनों नया-नया बांद्रा में अपना मकान लियाथा. मेरा सवाल था कैसा लग रहा है? जवाब था, वर्सोवा(जहाँ मुंबई आने के बाद सुशांत सात से आठ लड़कों के साथ रूम रेंट कर रहते थे) वहां से यूं तो आप सड़क से आयें तो एक से डेढ़ लगते हैं बांद्रा आने में, मगर मुझे काफी साल लगे हैं. फौरन नहीं पहुंचा, वक़्त लगा. आपका जवाब सुन कर, मेरे चेहरे पर बड़ी स्माइल थी, इसलिए नहीं कि आपके ऑरा में थी. चूंकि आपकी शिद्दत आपके काम के प्रति दिखती थी. स्टार किड्स की जिंदगी मर्सिडीज सी है, आपने हजारों आउटसाइडर वाली लोकल ट्रेन में धक्का-मुक्की करके पहचान बनाई. बिना गॉड फादर के. वह भी छोटे से शहर से आकर. अभी कुछ दिनों पहले की ही तो बात है, सोन चिड़िया फिल्म आई थी आपकी. उस दौरान इंटरव्यू में यह सवाल करने पर कि एक एक्टर अगर लोकप्रिय होने के बाद लोकप्रियता खो दे, तो इसको आप किस तरह लेंगे. आपने पूरे कांफिडेंस के साथ कहा था कि मुझे फर्क नहीं पड़ेगा, मैंने तो “ जीरो से शुरू किया है, फिर से जीरो हो जाऊंगा, आज बांद्रा से वर्सोवा चला जाऊंगा, मुझे फर्क नहीं पड़ेगा’’. जीरो था जीरो हो गया तो जीरो से शुरू करूँगा फिर से. आपका यह जवाब मेरे लिए उन तमाम नए युवा जो मुंबई आकर सिनेमा की दुनिया से राब्ता रखना चाहते हैं, उनके लिए कैच लाइन बना. उन्हें अक्सर आपका उदाहरण देती थी. छोटे शहर से होने की वजह से एक कनेक्शन तो महसूस होता ही था, आपकी सक्सेस स्टोरी कितनों के लिए इंस्पीरेशन बन गई थी. मैंने ही आपको एक बार जब यह बताया कि छोटे शहर, खासतौर से बिहार, जहाँ से हम दोनों आते हैं, वहां के युवा शाहरुख़ खान के बाद किसी से इंस्पायर हैं तो वह आपसे हैं. आपको तो अगला शाहरुख़ खान माना जाने भी लगा था, आउटसाइडर होने की वजह से. और दोनों की जर्नी में काफी समानता होने के कारण. शाहरुख़ से तुलना पर आप झेप जाते थे, लेकिन सिर झुका कर आपकी वह मासूम सी स्माइल बताती थी, कि आपको यह बात ख़ुशी देती है. आप छोटे शहर के उन तमाम युवा, जो सुपरस्टार का ख्वाब देखते हैं, आप उनके लिए “सिनेमा के धोनी’ बन चुके थे कि सुशांत ने किया है, तो हम भी करेंगे.आज वे तमाम सपने चकनाचूर हुए होंगे, जब धोनी की तरह आखिरी बॉल पर छक्का मार कर मैच जीताने वाले अपने आदर्श को जिंदगी की पिच पर हमेशा के लिए डक होते हुए देखा होगा.

आपसे पहली मुलाकात याद है मुझे, उन दिनों नयी-नयी मुंबई आई थी. पटना के हैं सुशांत, बस यही सोच कर कॉल लगाया, आप पवित्र रिश्ता से जुड़े थे.आपने फोन उठाया. मैंने कहा मैं भी बिहार से हूँ, आपसे मिलना चाहती हूँ. आप फौरन तैयार हुए. अँधेरी ईस्ट के एक स्टूडियो में तय हुआ मिलना. मैं नयी थी तो रास्तों से अनजान.समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ.आपने खुद सामने से फोन किया कहाँ पहुंची.मैंने कहा जगह नहीं मिल पा रहा. बोले आस पास क्या है. मैंने कहा पेट्रोल पम्प. कहा वहीं रुको, आता हूँ. वह कार लेके आये. फिर हम स्टूडियो गये. दो घंटे बातें हुई. शामक डाबर से लेकर, अपनी माँ, पटना, थेयटर, दिल्ली, इंजीनियरिंग से एक्टिंग, परिवार, डांस, अभिनय, स्ट्रगल, लगभग सबकुछ. हैरान थी मैं, इतने डाउन टू अर्थ. आपसे पहली बातचीत में ही यह स्पष्ट हो गया था कि आप अपने करियर को लेकर स्पष्ट हैं. आप क्लियर हैं कि सिनेमा तो करना ही है. और इस तरह काय पोचे आपकी पहली फिल्म आ भी गई. हम  फिर मिले. मिलते ही आपने फ़ौरन पहचाना. आपसे तो मिला हूँ.अब तो मुंबई समझ गई होंगी आप. रास्ते वगेरह. फिर हमने ढेर सारी बातें की. तसल्ली हुई कि बंदा अब भी नहीं बदला है, जाते-जाते मुस्कुराते हुए उनसे कहा आप ऐसे ही रहना बदलना मत. फिर इसके बाद ब्योमकेश बक्शी, धोनी, राबता और बाकी फिल्मों के दौरान मुलाकातें हुईं. हालाँकि पहले जैसी वाली नहीं. फिर भी प्रोफेशनल लिहाज से अच्छी. धोनी फिल्म के दौरान मैं और मेरी महिला मित्र साथ थीं, आपने मस्ती में क्रिकेट में लड़कियों की कम रूचि की बात की थी, लेकिन मेरी महिला मित्र जो कि क्रिकेट में धाकड़ इनसाइक्लो पीडिया है, उन्होंने आपके सवाल के काउन्टर में जो जवाब दिया था. आप एकदम से चौंके थे और हैरान भी थे . लड़कियां और क्रिकेट को लेकर आपकी सोच कुछ हद तक तो हमने बदल दी थी. क्रिकेट के अलावा आप जब भी मिले, आपने स्पेस विषय में रुचि की बात की. इसलिए चंदा मामा दूर के फिल्म से भी आप जुड़े. आपको इस बात पर गर्व भी था कि आपकी गिनती पढ़े लिखे चुनिन्दा कलाकारों में भी होती है. डांसिंग का आपका अपना पैशन था. झलक दिखला जा के वक़्त आप तो इंटरव्यू में थिरक के भी दिखाते थे. आप जब मिले आपको इस बात पर संतुष्टि थी कि आपका कोई गॉड फादर नहीं रहा, आप कॉन्फिडेंट रहे,अपने बूते सब हासिल किया.

आपने अपनी कई मुलाकातों आपने आगे बात बढ़ाते हुए कहा कि मुझे इस बात का डर नहीं है कि मैं कभी रैंक 1 पर रहूंगा कि नहीं, चूंकि मैं इस कम्पटीशन में नहीं हूँ, स्टारडम की चाहत नहीं मुझमें. पैसा मेरे लिए कभी ड्राइविंग फ़ोर्स नहीं हो सकता, मेरा काम मेरा ड्राइविंग फ़ोर्स है.

फिल्म छिछोरे में आपके ही किरदार ने बेटे को सुसाइड से बचा कर लूजर से विनर बनाया था.वहीं रोल जब रियल लाइफ में निभाने की बारी आई तो आप पीछे क्यों नहीं मुड़े. आपने यह कदम क्यों उठाया वजह जानना ठीक उतना ही मुश्किल होगा, जितना पानी से पानी पर पानी लिखना. लेकिन यह छोटे शहर की लड़की, चाहे जो भी वजह रही हो, जिंदगी के पिच पर धोनी की तरह अपनी गिरते, संभलते और फिर अपनी पारी खेलते देखना चाहती थी.असल जिंदगी के उतार –चढ़ाव में बागी होते देखना चाहती थी. ठीक सोन चिड़िया वाले बागी की तरह.

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