पटाखे तो तब भी नहीं जलाती थी
लेकिन तुम्हारी चेतावनी हमेशा याद होती थी
(दिए से दूर रहना, पटाखों से दूर रहना , सूती कपड़े पहनना )
मिठाईआं तो तब भी नहीं खाती थी ( मेरी तरफ से मिठाई खा लेना बुचुन )
लेकिन फिर भी इस दिन में मिठास होती थी
(अगले साल दीवाली बोकारो में मनाओगी निशु तुम बस )
दीवाली में न भी मिलूं लेकिन बाद में घर आने की, तुमसे मिलने की एक आस होती थी
हर दीवाली तुम साथ न होकर भी साथ होती थी