एक पायलट की जिंदगी, आगे कुंआ, पीछे खाई से कम नहीं होती है, इसके बावजूद जिन्हें पैशन है, वह इस क्षेत्र में आते ही हैं। एक पायलट को एयरलाइन की दुनिया में वहीं ओहदा, कम से कम कागजी जुबान में दिया जाता है कि वह एक कमांडो है, जिस पर पूरी तरह से फ्लाइट में उड़ान भर रहे यात्रियों की जिम्मेदारी होती है। दिखने पर तो इस व्हाइट कॉलर जॉब का रुतबा ही हमें नजर आता है, शान ओ शौकत ही नजर आती है, लेकिन आसान नहीं होती है एक पायलेट की जिंदगी। चूंकि अगर पायलट से एक भी चूक हो जाये, तो पूरा दोष उन पर ही मढ़ा जाता है और अगर कोई हादसा हो जाये, तब भी पायलट की गलती बता कर, कई बार एयरलाइंस कम्पनियाँ, अपने मुनाफे की राह पर चलती रहती है। मुझे बेहद ख़ुशी और तसल्ली है कि अजय देवगन ने बतौर निर्देशक, रनवे 34 के माध्यम से लीक से हट कर एक ऐसी कहानी चुनी है, जो इस दुनिया की कहानी दिखाती है। फ्लाइट की दुनिया इमोशन से नहीं मैथ यानी गणित से चलती है और मेरा मानना है कि अजय अपनी इस फिल्म से दर्शकों के दिलों में सेफ लैंडिंग करें। यह गणित एकदम साफ़ है। अमिताभ बच्चन, रकुल प्रीत सिंह के साथ अजय देवगन ने निर्देशन की कुर्सी पूरी सेफ्टी के साथ लैंड करने की कोशिश की है। अमिताभ बच्चन के किरदार ने अजय देवगन के किरदार को फिल्म में एक बात कही है, नेवर ब्रेक द फेथ ऑफ़ योर पीपल, अजय ने अपने फैंस के लिए मेरे ख्याल से कुछ ऐसा ही किया है, इस फिल्म को निर्देशित करके। मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ, आपको यहाँ विस्तार से बताना चाहूंगी।
क्या है कहानी
कहानी साल 2015 में दोहा-कोच्चि फ्लाइट की एमरजेंसी लैंडिंग से प्रेरित है, फिल्म की कहानी पायलट कैप्टन विक्रांत खन्ना ( अजय देवगन) की है, जिसकी फोटोग्राफिक मेमोरी है, वह चीजों को कभी नहीं भूलता, आँख मुंद कर भी वह बटन बता सकता है। उसकी पत्नी समायरा (आकांक्षा सिंह) और बेटी है और जिसके साथ वह खुश है। उसने कई सफल लैंडिंग की है, कई युवाओं का वह आदर्श है। ऐसे में उसे एक दिन दुबई से कोच्चि फ्लाइट लेकर जाना है। अपनी को-पायलट तान्या अल्बर कर्की( रकुल प्रीत सिंह ) के साथ। कोच्चि में खराब मौसम के कारण, अब कैप्टन और को-पायलट को निर्णय लेना है कि वह नजदीकी एयरपोर्ट त्रिवेंद्रम जाएं या बंगलुरु। यहाँ से खेल शुरू होता है, रोमांच शुरू होता है। जैसा कि इस फिल्म की पूरी कहानी ही मैथ यानि गणित पर टिकी है। फ्यूल, ड्यूरेशन और अपने तजुर्बे के अनुसार कैप्टन कुछ निर्णय लेता है, पैसेंजर के रूप में एक दमे की पेशेंट, तो एक छोटे से मासूम बच्चे के साथ उसकी माँ भी है। 150 पैसेंजर की जिम्मेदारी कैप्टन पर है। कैप्टन मे डे यानी इमरजेंसी लैंडिंग करता है । लेकिन, मामला वहीं खत्म नहीं हो जाता है। एक इन्क्वारी बैठती है AAIB की, नारायण वेदांत( अमिताभ बच्चन ) के अंडर में, जो कि ऐसी इन्क्वारी की जांच-पड़ताल के ही विशेषज्ञ हैं। अब कैप्टन का फैसला सही है या नहीं, यह मैं नहीं बताऊंगी। पूरी कहानी ही विक्रांत-नारायण के सही फैसले, गणित, नियम-कानून और तर्कों के बीच चलती है और वहीं असली रोमांच है फिल्म का। कहानी में एक एयरलाइन कम्पनी का सिर्फ अपने मुनाफे के बारे में सोचना और दांव-पेंच खेलना भी इस क्षेत्र से जुड़ीं कई बारीकियों को दर्शाता है .
बातें जो मुझे अपील कर गयीं
मैंने इस फिल्म को देखने के बाद, एयरलाइन से जुड़े कुछ दोस्तों से विस्तार में बात की, जिनसे बातचीत करने बाद, मैंने यह महसूस किया कि अजय और अजय की टीम ने कहानी हवाई उड़ान की बनाई है, लेकिन हवा में नहीं बनाई है। यानी उन्होंने सिर्फ हवा बाजी नहीं की है। बाकायदा, कई लिहाज में रिसर्च है। एक बात जो मैं इन क्षेत्र से जुड़े काम करने वाले प्रोफेशनल्स से बात करके समझ पायी कि एयरलाइन के हर प्रोफेशनल को पूरी तरह से एमरजेंसी हालात की ट्रेनिंग दी जाती है, मेंटल और शारीरिक रूप से स्ट्रांग लोग ही इस प्रोफेशन में आते हैं, लेकिन जब हकीकत में हालात सामने आते हैं, तब एक पायलेट और को-पायलट, क्रू कैसे बिहेव करते हैं, यह सिर्फ उस हालात पर निर्भर करता है। तान्या और विक्रांत के इस कन्ट्रास्ट को भी अजय ने बखूबी दर्शाया है। अजय देवगन और अमिताभ बच्चन के बीच, जो तर्क-वितर्क है, उसके माध्यम से मैं इस क्षेत्र की कई बारीकियों को समझ पायी हूँ और उसे बेहद रोचक तरीके से प्रस्तुत भी किया गया है। अजय ने कोई लफाबाजी ने की है। सामने अमिताभ हैं, तो ऐसी गुंजाइश और कम भी हो जाती है। अजय तर्क, फैक्ट्स पर अधिक गए हैं, उन्होंने बहुत अधिक सिनेमेटिक लिबर्टी नहीं ली है।
फिल्म का तकनीकी पक्ष कहानी को बेहद अपीलिंग बनाता है। असीम बजाज का कैमरा वर्क कहानी की जान है, तो बैकग्राउंड म्यूजिक भी आकर्षित करता है।
फिल्म की एक और खूबी, जो मुझे आकर्षित कर गयी, वह है अमिताभ बच्चन की शुद्ध हिंदी, उन्होंने जिस तरह से फिल्म में हिंदी बोली है, हिन्दीभाषी के रूप में उनका यह लहजा खूब पसंद आया है। सच कहूं तो, उनके किरदार से एक गुरत्वाकर्षण यानी ग्रेविटेशन महसूस किया। कहानी मैलोड्रामैटिक कम है। संवाद भी बेहतरीन हैं, कुछ संवाद फ़िल्मी हैं हालाँकि।
फिल्म में यह भी एंगल खूबसूरती से बयां किया गया है कि पैसेंजर, कम्पनी सब किस तरह सिर्फ ब्लेम गेम खेलते हैं।
इस फिल्म से यह भी पूरी तरह से साबित होता है कि जिस तरह स्टेडियम और टीवी सेट के सामने आप अनुमान लगाते हैं और हर कोई एक्सपर्ट ही बनता है क्रिकेट और सिनेमा का, पायलट के काम को भी लोग वैसे ही देखते हैं और बेतुके तर्क देते हैं, जबकि यह पूरी तरह से माइंड का काम है। और यह कैप्टन की सूझ-बूझ पर भी उस इमरजेंसी हालात की प्लानिंग टिकी होती है, उसका एक फैसला और सबकुछ खत्म, ऐसे में कोई पायलट यूं ही तुक्केबाजी में नहीं, फिर भी गणित में ही काम करता है। फिल्म में एक पायलट के संघर्ष को समझने की अच्छी कोशिश है।
अभिनय
अजय देवगन ने पायलट के लहजे, बॉडी लैंग्वेज को बड़े ही स्टाइलिश अंदाज में पेश किया है। अजय नेचुरल एक्टर हैं और उनकी सहजता पूरी तरह से फिल्म में नजर आयी है। उनकी आँखों ने इस बार भी कमाल किया है, वह स्थिर एक्टर हैं, उन्हें संवाद बोलने या एक्ट करने की सीन में कभी हड़बड़ी नहीं दिखती है, शायद इसलिए वह नेचुरल और सहज दिखते हैं। एक्टर के साथ-साथ, निर्देशन करते हुए अजय किसी जल्दबाजी में नहीं दिखे हैं, यह उनके सालों का अनुभव दर्शाता है। अमिताभ बच्चन का रुतबा, दबदबा इस फिल्म में भी जारी रहा है। अभिनय की पिच पर उनका सानी कोई नहीं। प्रखर आवाज, उम्दा अंदाज और शानदार लहजे के साथ वह नारायण के किरदार में खूब जंचे हैं। अजय और उनके बीच के दृश्य तर्क-वितर्क ही इस कहानी की जान हैं। रकुल प्रीत सिंह के लिए, उनकी बाकी फिल्मों से अधिक चैलेंजिंग इस बार का किरदार है, उन्होंने एक को-पायलेट की मनो: स्थिति को अच्छे से समझ कर परफॉर्म किया है। यह फिल्म उनके करियर के लिए बेहतरीन साबित होगी। आकांक्षा सिंह ने इस फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा है। उनके हिस्से कम दृश्य हैं, लेकिन उन्होंने सार्थक अभिनय किया है, उनमें क्षमता दिखती है कि वह आगे बेहतर करेंगी। बोमन ईरानी एक एयरलाइन के मालिक के किरदार में जंचे हैं। अंगिरा धर के किरदार को और विस्तार मिल सकता था।
बातें जो बेहतर होने की गुंजाइश थीं
फिल्म में एक जगह शोध की बात की गई है कि अक्सर पायलट होम सिकनेस के कारण भी दुर्घटनाओं के कारण बनते हैं, यह बात थोड़ी हजम करनी मुश्किल है। साथ ही एक दो दृश्य में फैक्ट हालात के हिसाब से बचकाने लगते हैं, जैसे कंट्रोल रूम में एक स्टाफ के बीमार पड़ जाने के बाद, सही जानकारी कैप्टन तक नहीं पहुँच पाना। फिल्म की रिसर्च टीम और बेहतर तरीके से इसे दर्शा सकती थी।
कुल मिला कर कहूं, तो अजय देवगन की अभिनीत और निर्देशित की गई यह फिल्म एक अलग रोमांचक अनुभव देती है, कहानी अलग हट कर है और ट्रीटमेंट भी, तो मेरा मानना है कि दर्शक सिनेमा थियेटर के पिच पर इस रोमांचक और दिलचस्प अनुभव को देखने के लिए लैंड कर सकते हैं। खासतौर से अजय के फैंस के लिए यह बेहतरीन तोहफा है।